2014 के प्रभावशाली युवा
तालिबान के हमले में घायल हुई मलाला यूसुफजई को शांति का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद दुनिया भर में बदलाव के लिए संघर्ष करने वाले युवाओं पर डॉयचे वेले की एक नजर.
शिक्षा के लिए जंग
पाकिस्तान की 17 साल की मलाला यूसुफजई को 2014 के शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने वाली मलाला पर दो साल पहले तालिबान ने जानलेवा हमला किया था. पुरस्कार लेते वक्त मलाला ने कहा कि उनकी जिंदगी की कहानी अनोखी नहीं है बल्कि यह कहानी कई लड़कियों की है. उन्होंने अपना पुरस्कार उन गुमनाम बच्चों को समर्पित किया जो तालीम चाहते हैं.
साहस की मिसाल टूचे
जर्मन छात्रा टूचे अलबायराक पर उस वक्त हमला हुआ जब वे एक रेस्तरां में दो लड़कियों को बचाने के लिए कूद पड़ीं. उस दौरान तीन गुंडों ने टूचे पर हमला कर दिया. टूचे की मौत ने नागरिक साहस के मुद्दे पर बहस छेड़ दी. बहुत सारे जर्मन अब सवाल पूछ रहे हैं कि क्या लोग ऐसे हालात में उतने साहसी होते हैं जैसा उन्हें चाहिए.
लोकतंत्र के लिए रैली
18 वर्षीय जोशुआ वॉन्ग (बीच में) छात्र आंदोलन के नेता हैं जो हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र बहाली को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं. कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर समूह ने ऑक्यूपाई सेंट्रल का नेतृत्व किया. साथ ही कई सरकारी और वित्तीय दफ्तरों पर कब्जा जमा लिया.
बोलने का साहस
घरेलू काम करते हुए हॉन्ग कॉन्ग में अपने मालिक से पिटाई और दुर्व्यवहार की पीड़िता एरवियाना सुलिस्तियानिंगशिष ऐसे लोगों की वकील बन कर उभरी हैं, जो उनकी स्थिति में खुद को पा सकते हैं. 23 वर्षीय इंडोनेशियाई नागरिक ने जिस साहस के साथ अपने खराब अनुभव पर बात की, उसने अंतरराष्ट्रीय आक्रोश भड़काया और साथ ही उसने दुनिया भर में प्रवासी कामगारों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला.
त्रासदी से भड़की बदलाव की चिंगारी
मेक्सिको में सितंबर महीने में 43 छात्र लापता हो गए, सिर्फ एक ही छात्र के शव की शिनाख्त 19 वर्षीय अलेक्जेंडर मोरा के रूप में हुई. वह खेल शिक्षक की पढ़ाई कर रहा था. छात्रों की गुमशुदगी ने देश की एक बड़ी समस्या पर प्रकाश डाला. पिछले सात सालों में कम से कम 26000 लोग लापता हो चुके हैं. इंसाफ की मांग के लिए हजारों निवासी अब भी प्रदर्शन कर रहे हैं.
एक क्रांतिकारी आवाज
ट्यूनीशिया में हुई क्रांति के बाद से ही ब्लॉगर लीना बेन मेहनी लगातार देश में लोकतंत्र के लिए काम करती आ रही हैं. ट्यूनीशिया की क्रांति के बाद ही अरब क्रांति की शुरुआत हुई थी. 31 वर्षीय कार्यकर्ता अरबी, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा में अपने ब्लॉग पर लिखती हैं. वह देश में भ्रष्टाचार और सेंसर के खिलाफ लगातार आवाज उठाती हैं.