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2010 में चमकी भारतीय मुक्केबाजी, स्टार रहे विजेंदर

२२ दिसम्बर २०१०

2010 भारतीय मुक्केबाजों के लिए सोने के तमगों के साथ शुरू हुआ और साल खत्म होते होते भी कई पदक भारत की झोली में गिरे. भारतीय मुक्केबाजी के इस सुनहरे दौर के अगर कोई ओलंपिक हीरो, स्टार हैं तो वह हैं विजेंदर सिंह.

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भारतीय मुक्केबाजी के स्टारतस्वीर: AP

इस साल की शुरुआत ढाका में फरवरी में हुए साउथ एशियन गेम्स में तीन स्वर्ण पदकों के साथ हुईं, जिसमें 57 किलोग्राम वर्ग में छोटे लाल यादव, 51 किलोग्राम वर्ग में एशियन चैंपियन सुरंजोय सिंह और 48 किलोग्राम के वर्ग में अमनदीप सिंह को सोना मिला. कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में भारतीय मुक्केबाजों ने जबरदस्त पंच मारे. कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में विजेंदर, अमनदीप, सुरंजॉय, जय भगवान, दिनेश कुमार परमजीत समोटा ने अलग अलग वर्गों में सोना जीता.

दो साल में विजेंदर का यह पहला स्वर्ण पदक था. वह पूरे साल 75 किलोग्राम की श्रेणी में दुनिया में टॉप पर बने रहे. कॉमनवेल्थ खेलों से पहले अपने पंच में तेजी लाने के लिए विजेंदर और उनके साथी एक महीना क्यूबा में रहे और बॉक्सिंग की आत्मा कहे जाने वाले इस देश में अपने खेल को और मारक बनाया.

सामान्य तौर पर क्रिकेट की फैन भारतीय जनता मुक्केबाजी के मुकाबलों में नहीं आती. लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों में देश के मुक्केबाजों के शानदार प्रदर्शन के कारण दिल्ली का तालकटोरा स्टेडियम हॉल खचाखच भरा रहा. हालांकि कॉमनवेल्थ गेम्स में विजेंदर को कांस्य से संतोष करना पड़ा. लेकिन सुरंजोय, मनोज कुमार (64 किग्रा), परमजीत समोटा (91 किग्रा और अधिक) ने भारत के लिए सोना जीता. सोने के अलावा अमनदीप (49किग्रा), दिलबाग सिंह (69किग्रा), विजेंदर और जय भगवान (60 किग्रा) चार कांस्य पदक लेकर आए.

Flash-Galerie Commonwealth Games Akhil Kumar
अखिल ने भी दिखाया अपना जलवातस्वीर: AP

चीन में हुए एशियाड खेलों में 1998 के बाद मुक्केबाजी में दो स्वर्ण पदक भारत को मिले. इसके अलावा तीन रजत और चार कांस्य भी भारत ने जीते. सबसे शानदार प्रदर्शन 25 साल के विजेंदर का रहा जिन्होंने एशियाड फाइनल में दो बार विश्व चैंपियन रहे उज्बेकिस्तान के अब्बोस अतोएव को शानदार तरीके से हराया. 60 किलोग्राम वर्ग में आश्चर्यचकित करते हुए 18 साल के विकास कृष्ण ने भारत के लिए दूसरा स्वर्ण पदक कमाया.

एशियाड में अद्भुत खेल दिखाने वालों में युवा खिलाड़ी शिवा थापा भी रहे. कृष्ण और शिवा ने यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी भारत का सिर ऊंचा किया, जहां विकास को स्वर्ण और शिवा को रजत मिला. फिर यूथ ओलंपिक्स में इन दोनों ने अच्छा खेल दिखाया. वहां पुरुष मुक्केबाजों में कई युवा नाम भी आए. महिलाओं में एमसी मैरी कोम ही प्रभावशाली खेल दिखा पाई.

कुल मिला कर 2008 में बीजिंग ओलंपिक में कांस्य के साथ आगे बढ़ी भारतीय मुक्केबाजी ने अभी तक सफलता का सफर ही तय किया है और उम्मीद है 2012 में लंदन ओलंपिक खेलों के दौरान भी यह सफर जारी रहेगा.

रिपोर्टः पीटीआई/आभा एम

संपादनः ए कुमार

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