ऑस्ट्रेलियन ओपन 2016 के दौरान हुए डोपिंग टेस्ट में 29 साल की मारिया शारापोवा फंस गईं. मार्च में टेस्ट के नतीजे सामने आए. नतीजों की समीक्षा के बाद इसी हफ्ते अंतरराष्ट्रीय टेनिस संघ ने मारिया शारापोवा पर दो साल का प्रतिबंध लगाया है. हालांकि संघ ने स्वीकार किया कि रूसी टेनिस स्टार ने जानबूझकर प्रतिबंधित दवा नहीं ली. शारापोवा ने खुद भी यह स्वीकार किया. लेकिन इसके बावजूद उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. पांच ग्रैंड स्लैम जीत चुकीं शारापोवा फैसले के खिलाफ अपील करने का ऐलान कर चुकी हैं.
डोपिंग विवाद के चलते ही शारापोवा फ्रेंच ओपन में भी हिस्सा नहीं ले सकीं. लेकिन अब नामी कंपनियां शारापोवा के समर्थन में आ रही हैं. स्पोर्ट्स किट बनाने वाली कंपनी एनवी और नाइकी जैसी दिग्गज कंपनियों ने साफ कहा है कि वह रूसी स्टार के साथ काम करती रहेंगी.
मेल्डोनियम
रैकेट कंपनी ने तो उनके साथ अपना करार भी आगे बढ़ा दिया है. एनवी के सीईओ जोहान एलियास तो टेनिस संघ पर ही बरस पड़े. उन्होंने प्रतिबंध के गलत फैसला करार दिया और कहा कि मेल्डोनियम वाडा की प्रतिबंधित दवाओं की सूची में होना ही नहीं चाहिए क्योंकि इसके पर्याप्त वैज्ञानिक सबूत नहीं हैं कि इसके असर से प्रदर्शन बेहतर होता है. एलियास ने कहा, "कंपनी मिस शारापोवा के साथ खड़ी रहेगी." वाडा ने मेल्डोनियम को एक जनवरी 2016 में प्रतिबंधित दवाओं की सूची में डाला.
मार्च में डोपिंग टेस्ट के नतीजे आने के बाद स्पोर्ट्स वियर कंपनी नाइकी ने शारापोवा को अपनी प्रमोशनल गतिविधियों से हटा दिया था. लेकिन अब कंपनी का बोर्ड एक बार फिर रूसी स्टार के समर्थन में उतरा है. नाइकी को लग रहा है कि अंतरराष्ट्रीय टेनिस संघ ने सजा के नाम पर विवाद खड़ा कर दिया है. दिल की धमनियों और शिराओं की बीमारी में आराम देने वाली मेल्डोनियम के खिलाफ कम वैज्ञानिक सबूत, अनजाने में दवा लेना और स्पॉन्सरों का साथ देना, शारापोवा का डोपिंग मैच अभी खत्म होता नहीं दिख रहा है. अंतरराष्ट्रीय टेनिस संघ को अपना रुख नरम करना पड़ सकता है.
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डोपिंग की ए बी सी
शुरुआत
डोपिंग कोई नई बात नहीं है. मुकाबले में दूसरों को हराने के लिए प्राचीन ग्रीक खिलाड़ियों के भी ऐसा करने की कहानियां हैं. एक खिलाड़ी का करियर आम तौर पर काफी छोटा होता है. अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही वे अमीर और मशहूर हो सकते हैं. इसी जल्दबाजी में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं.
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कानूनी हद
बीमार आदमी के लिए दवा जरूरी हो सकती है लेकिन एथलीट जब दवा लेते हैं तो उसके असर और इस्तेमाल के कानूनी पहलू पर ध्यान देना होता है. जैसे कि दर्दनाशक दवाई इबुप्रोफेन की जगह अगर कोई खिलाड़ी मॉर्फीन का इस्तेमाल करे तो वह डोपिंग की श्रेणी में आएगा. क्योंकि वह आम दवा से कहीं भारी और नशीली है और उस पर प्रतिबंध है.
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स्टीरॉयड
डोपिंग में आने वाली दवाओं को पांच श्रेणियों में रखा गया है जिनमें स्टीरॉयड सबसे आम हैं. हमारे शरीर में स्टीरॉयड पहले से ही पाया जाता है लेकिन कुछ पुरुष एथलीट मांसपेशियां और पौरुष बढ़ाने के लिए स्टेरॉयड के इंजेक्शन लेते हैं. इसके साइट इफेक्ट के तौर पर पुरुषों में स्तनों का उभरना एवं हृदय और तंत्रिका तंत्र पर बुरा असर देखा गया है.
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उत्तेजक पदार्थ
उत्तेजक पदार्थ शरीर को चुस्त और दिमाग को तेज कर देते हैं. इनका इस्तेमाल प्रतियोगिता के दौरान प्रतिबंधित हैं लेकिन कुछ खिलाड़ी इसे खेल से पहले लेते हैं जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है. 1994 फुटबॉल विश्व कप के दौरान अर्जेंटीनियाई खिलाड़ी मैराडोना ऐसे ही उत्तेजक पदार्थ एफेड्रीन के इस्तेमाल के दोषी पाए गए थे.
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पेप्टाइड हार्मोन
स्टीरॉयड की ही तरह पेप्टाड हार्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं. इसलिए इनका अलग से सेवन शरीर में असंतुलन पैदा करता है. डायबिटीज के मरीजों के लिए जीवन रक्षक हार्मोन इंसुलिन को अगर स्वस्थ व्यक्ति ले तो शरीर से वसा घटती है और मांसपेशियां बनती हैं. इसके ज्यादा इस्तेमाल से शरीर में ग्लूकोज का स्तर अचानक काफी घट सकता है. ऐसे में शरीर जल्दी थकता है और हार्मोनों का तालमेल बिगड़ता है.
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नार्कोटिक्स
नार्कोटिक या मॉर्फीन जैसी दर्दनाशक दवाइयां डोपिंग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती हैं. इनके इस्तेमाल से बेचैनी, थकान और नींद जैसे लक्षण हो सकते हैं. सिर दर्द और उल्टी भी इनसे होने वाले नुकसान हैं. इनकी लत पड़ने की भी काफी संभावना होती है. कई बार इन दवाइयों के सेवन से यह भी मुमकिन है कि खिलाड़ी खुद को कम दर्द के अहसास में ज्यादा चोटिल कर लें.
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डाइयूरेटिक्स
डाइयूरेटिक्स के सेवन से शरीर पानी बाहर निकाल देता है जिससे कुश्ती जैसे खेलों में कम भार वाली श्रेणी में घुसने का मौका मिलता है. डाइयूरेटिक्स का इस्तेमाल हाई ब्लड प्रेशर के इलाज में होता है. लेकिन अगर शरीर से अचानक पानी बाहर निकल जाए तो रक्तचाप भी कम हो जाता है. ब्लडप्रेशर घटने से रक्त संचार तंत्र सही ढंग से काम नहीं कर पाता और व्यक्ति अचानक बेहोश भी हो सकता है.
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ब्लड डोपिंग
ब्लड डोपिंग एक दशक पहले ही पकड़ में आई. आम तौर पर ब्लड कैंसर के मरीजों का खून समान ब्लड ग्रुप के खून से बदलना पड़ता है. ऐसे मरीजों के लिए किशोरों का खून सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उसमें लाल रुधिर कणिकाओं की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे शरीर में ज्यादा ऊर्जा का संचार होता है. लेकिन कुछ खिलाड़ी प्रदर्शन बेहतर करने के लिए किशोरों का खून चढ़ाते रहे, जिसे ब्लड डोपिंग कहा जाता है.
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डोपिंग का भविष्य
वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी और जर्मनी की नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी, डोपिंग को रोकने के लिए इससे होने वाले नुकसान के बारे में जागरुकता फैलाने का काम कर रही हैं. वे दवाइयों की कंपनियों के साथ इसकी जांच के तरीके निकालने और काला बाजारी पर कानूनी रोकथाम की भी कोशिश कर रही हैं.
रिपोर्ट: ऋतिका राय