मंथन 141 में खास
२ जुलाई २०१५जापान के बाजार में ऐसे रोबोट उपलब्ध हैं जो आपसे बातें कर सकते हैं और आपकी भावनाओं को भी समझ सकते हैं. जर्मनी में भी इस तरह की तकनीक को रोजमर्रा की जिंदगी में उतारने की कोशिश हो रही है. वैज्ञानिक ऐसे घर तैयार कर रहे हैं, जो उनमें रहने वालों की जरूरतों को पहचान सकेंगे. सोचिए, कैसा हो अगर आपका पूरा घर ही रोबोट संभाल रहा हो. आपके घर पहुंचने से पहले बत्तियां जल जाएं. आप रसोई में पहुंचें, तो फ्रिज आपको बता दे कि अंदर कौन कौनसी सब्जी रखी है और उससे क्या क्या बन सकता है. खाना बन जाने पर गैस अपने आप ही बंद हो जाए. जी हां, भविष्य में घर कुछ ऐसे ही होने वाले हैं. इस तरह के अल्ट्रामॉडर्न घर की एक झलक मंथन की खास रिपोर्ट में.
सिर्फ घर का ही नहीं, रोबोट बाहर का काम भी संभाल लेंगे. हम अब उस तकनीक तक नहीं पहुंचे हैं जिसके जरिए मालवाही पोत बिना क्रू के ही समुद्र का रास्ता तय कर सके. लेकिन इस दिशा में काम हो रहा है. जर्मनी के हैम्बर्ग में फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट पूरी तरह से ऑटोमैटिक समुद्री जहाज बनाने पर काम कर रहा है. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि मानव रहित जहाज अधिक सुरक्षित होंगे क्योंकि समुद्र में होने वाले अधिकतर हादसे इंसानी गलती के कारण होते हैं. हादसों को रोकने के लिए कोशिश की जा रही है कि आने वाले समय में रोबोट ही समुद्री जहाजों को संभालें.
सी काओ की घास गायब
फिलीपींस के समुद्र में मैनेटी नाम के जीवों की संख्या कम होती जा रही है. इन्हें डागॉन्ग या फिर सी काओ भी कहा जाता है क्योंकि ये अक्सर समुद्र के नीचे जमीन पर घास चरते नज़र आते हैं. अपना पेट भरने के लिए हर दिन इन्हें पच्चीस किलो घास की जरुरत पड़ती है. लेकिन जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण के कारण घास ठीक तरह उग ही नहीं पा रही. यही वजह है कि सी काओ के अस्तित्व खतरे में है. किस तरह से समुद्र के नीचे एक बार फिर से घास उगाई जा रही है, इस पर मंथन में खास रिपोर्ट.
बात कला की
कला की परिभाषा हर इंसान के लिए अलग है. जिन लोगों को पहाड़ों और नदियों की पेंटिंग अच्छी लगती हैं, उन्हें मॉडर्न आर्ट में मजा नहीं आता. हम पहुंचे ब्रिटेन एक ऐसी कलाकार के पास जिसके लिए कला का मतलब रंग और ब्रश नहीं, बल्कि कील और धागे हैं. 27 साल की डेबी स्मिथ पिछले पांच साल से धागों के साथ काम कर रही हैं. आज उनके बनाए एक आर्ट-पीस की कीमत अठरह हज़ार यूरो तक है.
मिलवाएंगे आपको ब्रिटेन के ही एक और स्ट्रीट आर्टिस्ट स्लिंकचु से. इनकी बनाई मूर्तियां इतनी छोटी होती हैं कि सड़क से गुजर रहे लोगों का उस ओर ध्यान ही नहीं जाता. स्लिंकचु जब अपने कैमरे में इन्हें कैद करते हैं, तब लोगों को समझ आता है कि कैसे वे मिनिएचर की मदद से कहानी बयान कर रहे हैं. 2006 में लिटल पीपल नाम के प्रोजेक्ट से स्लिंकचु मशहूर हुए और अब दुनिया भर के कई शहरों में उनके इस्टॉलेशन देखे जा सकते हैं.
देखना ना भूलें मंथन हर शनिवार सुबह 11 बजे डीडी नेशनल पर.
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