फिल्म देखने के बाद वे लोगों को बताते कि फिल्म कैसी है. एक दिन निर्माता-निर्देशक वी शांताराम फिल्म देखने आए हुए थे. उन्होंने लड़कों के समूह में एक लड़के को फिल्म के बारे में लोगों से बातचीत करते हुए देखा और इतने प्रभावित हुए कि उसे अपनी फिल्म में काम करने का मौका देने का फैसला किया. उन्होंने उसे अपनी फिल्म "गीत गाया पत्थरों ने" में काम करने की पेशकश की. यह लड़का रवि कपूर था जो बाद में फिल्म इंडस्ट्री में जीतेंद्र के नाम से मशहूर हुआ.
7 अप्रैल 1942 को एक जौहरी परिवार में जन्मे जीतेंद्र ने अपने सिने करियर की शुरूआत 1959 में प्रदर्शित फिल्म "नवरंग" से की जिसमें उन्हें छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला. लगभग पांच वर्ष तक जीतेंद्र फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता के रूप में काम पाने के लिए संघर्षरत रहे. वर्ष 1964 में उन्हें "गीत गाया पत्थरों ने" में काम करने का अवसर मिला. इस फिल्म के बाद जीतेंद्र अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए.
1967 में जीतेंद्र की एक और सुपरहिट फिल्म फर्ज रिलीज हुई. रविकांत नगाइच निर्देशित इस फिल्म में जीतेंद्र ने डांसिग स्टार की भूमिका निभाई. इस फिल्म में उन पर फिल्माया गीत "मस्त बहारों का मैं आशिक" श्रोताओं और दर्शकों के बीच इतना लोकप्रिय हुआ कि इस फिल्म के बाद जीतेंद्र को जंपिग जैक कहा जाने लगा. "फर्ज" की सफलता के बाद जीतेंद्र की छवि डांसिग स्टार की बन गई. इस फिल्म के बाद निर्माताओं ने जीतेंद्र को एक ऐसे नायक के रूप में पेश किया जो नृत्य करने में सक्षम है. इन फिल्मों में "हमजोली" और "कारवां" जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं. इस बीच जीतेंद्र ने "जीने की राह", "दो भाई" और "धरती कहे पुकार" जैसी फिल्मों में हल्के-फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया.
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बॉलीवुड के अहम पड़ाव
पहली प्रसिद्ध अभिनेत्रीः देविका रानी
हिन्दी फिल्मों की पहली बड़ी अभिनेत्री देविका रानी ने 1933 में पहली बार पर्दे पर किस करके हलचल मचा दी. उनके पति हिमांशु रॉय भी फिल्में बनाते थे. जर्मन फिल्मकार फ्रांत्स ओस्टेन के साथ मिल कर उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों को शक्ल दी.
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बेधड़क नाडियाः मैरी इवैंस
फियरलेस नाडिया के नाम से विख्यात मैरी इवैंस हिन्दी फिल्मों में काम करने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय कलाकार थीं. सुनहरे बालों वाली गोल मटोल ऑस्ट्रेलियाई मैरी ने होमी वाडिया के साथ कई मारधाड़ वाली फिल्मों में काम किया बाद में उन्होंने होमी से शादी भी की.
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हिन्दी सिनेमा की विश्व सुंदरीः ऐश्वर्या रॉय
सुंदरियों के मुकाबले और हिंदी फिल्मों में तो ऐश्वर्या ने पहले ही डंका बजवा दिया था 2003 में कान फिल्म फेस्टिवल की ज्यूरी में शामिल हो कर उन्होंने वो करिश्मा भी कर दिखाया जो पहले किसी और हिंदुस्तानी के हिस्से नहीं आई थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किसी अभिनेत्री को ऐश्वर्या जितनी सुर्खियां नहीं मिलीं.
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बॉक्स ऑफिस पर पहला बवालः शोले
खूब नाच गाना और प्यार मुहब्बत देखने के बाद हिन्दी फिल्मों की मुलाकात गब्बर सिंह से हुई. रामगढ़ में जय वीरू की गब्बर से जंग ने ऐसी आग लगाई कि बसंती की बड़ बड़ करती और जया बच्चन की खामोश मुहब्बत भी उसकी लपटों को मद्धिम न कर सकीं. 38 साल से धधकते शोलों की जुबान आज भी बच्चा बच्चा बोलता है.
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सिनेमा की शुरूआतः राजा हरिश्चंद्र
दादा साहब फाल्के की इसी फिल्म के साथ 1913 में हिन्दी सिनेमा का सफर शुरू हुआ जो अब 100 साल की उम्र हासिल कर चुका है. उस वक्त कहानियां धार्मिक ग्रंथों और ऐतिहासिक चरित्रों से ली जाती थीं. महिलाओं के किरदार भी पुरुष निभाया करते थे.
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बॉलीवुड के बापः दादा साहब फाल्के
आज जिन्हें हम दादा साहब फाल्के कह कर सम्मान देते हैं उन्हीं ढुंडीराज गोविंद फाल्के ने हिंदी सिनेमा की शुरूआत की. फोटोग्राफर के रूप में काम करने वाले दादा साहब फाल्के की मुलाकात जर्मनी के कार्ल हर्त्ज से हुई और उन्होंने लुमियरे बंधुओं के साथ भी काम किया. लुमियरे बंधुओं ने ही सिनेमेटोग्राफी विकसित की. इसके बाद दादा साहब फिल्में बनाने लगे और उनके नाम कोई 100 से ज्यादा फिल्में हैं.
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पहली बोलती फिल्मः आलम आरा
फिल्में तो बनने लगीं लेकिन वो खामोश थीं. 18 साल बाद आई आलम आरा हिन्दी की पहली बोलती फिल्म थी. इसके जरिए लोगों ने आवाज और संगीत से सजी चलती फिरती बोलती तस्वीरें देखी.
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आलोचकों के दुलारेः राज कपूर
राज कपूर की आवारा के साथ हिन्दी सिनेमा ने रूस, चीन समेत कई देशों में कदम रखे. फिल्म बहुत मशहूर हुई और इसे देखने वाले लोग भारतीयों को अब भी इस फिल्म से जोड़ कर देखते हैं. फिल्म का टाइटल सॉन्ग भी खासा लोकप्रिय हुआ. यहां तक कि दुनिया के कई देशों से राजकपूर को न्योते मिलने लगे.
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पहली अंतरराष्ट्रीय कामयाबीः मदर इंडिया
असली भारत के असली गांव और उनकी सच्ची मुश्किलें. मदर इंडिया पर वास्तविकता की इतनी गहरी छाप थी कि किरदारों का दर्द लोगों के दिल में कहीं गहराई तक बैठ गया. फिल्म विदेशी फिल्मों की श्रेणी में ऑस्कर का नामांकन भी ले गई. फिल्म में पश्चिम के लोगों ने भारत की दिक्कतें देखीं और वो उनके मन में गहरी दर्ज हुई. नर्गिस मदर इंडिया बन गईं
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पहला ऑस्करः सत्यजीत रे
बॉलीवुड की आम पहचान से एकदम दूर होने के बावजूद पाथेर पांचाली का जादू ऐसा है कि भुलाए नहीं भूलता. सत्यजीत और उनके सिनेमा ने भारत की दुनिया में जो छवि बनाई उससे वो आज भी पूरी तरह आजाद नहीं हो सका है. 1992 में सत्यजित रे को ऑस्कर मिला और वो तब यह पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे.
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बॉलीवुड का चेहराः शाहरुख खान
कोई एक दशक तक हिन्दी फिल्मों को यश चोपड़ा वाली मोहब्बत करना सिखा कर शाहरुख विदेशों में बॉलीवुड का चेहरा बन गए. खासतौर से जर्मनी में तो वो बेहद लोकप्रिय हैं. लंबे समय तक यहां का एक टीवी चैनल उनकी फिल्मों को जर्मन भाषा में डब कर दिखाता रहा. डॉन 2 फिल्म का बहुत सा हिस्सा जर्मनी में ही शूट किया गया और हर साल शाहरुख यहां कम से कम एक बार तो आते ही हैं.
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दुनिया के पर्दे परः लगान
पहली बार कोई हिन्दी फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज हुई. लगान से पहले भारत के सपनों की दुनिया में या तो आजादी थी या फिर प्यार और पैसा. आशुतोष गोवारिकर और आमिर खान ने एक नया सपना दिया कुछ अनोखा और अच्छा कर दिखाने का. आमिर परफेक्शनिस्ट हो गए और उसके बाद एक एक कर बॉक्स ऑफिस, आलोचक, फिल्म समारोह उस पर मुहर लगाते चले गए.
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ऑस्कर में जय होः ए आर रहमान
'जय हो' गाने के लिए दो ऑस्कर और गोल्डन ग्लोब जीत कर ए आर रहमान ने दुनिया भर में धूम मचा दी. ऑस्कर ने पूरब के संगीत और कलाकारों का लोहा माना.
रिपोर्ट: अनवर जे अशरफ
1973 में प्रदर्शित फिल्म "जैसे को तैसा" के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में उनके नाम के डंके बजने लगे और वह एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए. 70 के दशक में जीतेंद्र पर आरोप लगने लगे कि वह केवल नाच गाने से भरपूर रूमानी किरदार ही निभा सकते हैं. उन्हें इस छवि से बाहर निकालने में निर्माता-निर्देशक गुलजार ने मदद की. और उन्हें लेकर "परिचय", "खुशबू" और "किनारा" जैसी पारिवारिक फिल्मों का निर्माण किया. इन फिल्मों में जीतेंद्र के संजीदा अभिनय से दर्शक आश्चर्यचकित रह गए.
जीतेंद्र के सिने करियर पर नजर डालने पर पता चलता है कि वह मल्टी स्टारर फिल्मों का अहम हिस्सा रहे हैं. फिल्म इंडस्ट्री के रूपहले पर्दे पर जीतेंद्र की जोड़ी रेखा के साथ खूब जमी. अस्सी के दशक में उनकी जोड़ी अभिनेत्री श्रीदेवी और जया प्रदा के साथ काफी पसंद की गयी. अपनी अनूठी नृत्य शैली के कारण इस जोड़ी को दर्शकों ने सिर आंखों पर लिया. 1982 से 1987 के बीच जीतेंद्र ने दक्षिण भारत के फिल्मकार टी रामाराव, के बापैय्या, के राघवेंद्र राव आदि की फिल्मों में भी काम किया. नब्बे के दशक में अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए जीतेंद्र ने खुद को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया.
2000 के दशक में फिल्मों में अच्छी भूमिकाएं नहीं मिलने पर उन्होंने फिल्मों में काम करना काफी हद तक कम कर दिया. इस दौरान वह अपनी पुत्री एकता कपूर को छोटे पर्दे पर निर्मात्री के रूप में स्थापित कराने में उनके मार्गदर्शक बने रहे. जीतेंद्र ने चार दशक लंबे सिने करियर में 250 से भी अधिक फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया है. जीतेंद्र इन दिनों अपनी पुत्री एकता कपूर को फिल्म निर्माण में सहयोग कर रहे है.
एमजे/आईबी (वार्ता)