बलात्कारी से सुलह की सलाह पर हंगामा
२६ जून २०१५बलात्कार के समय पीड़िता बच्ची थी और रेप के परिणामस्वरूप उसने एक बच्चे को जन्म भी दिया. उच्च अदालत की 'समझौते' वाली सलाह देने से पहले 2012 में कुडालोर के महिला कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को सात साल की जेल की सजा सुनाई थी. हाई कोर्ट के साथ संबद्ध कुछ सुलह केन्द्रों का प्रावधान है जहां विवादों के वैकल्पिक समाधान किए जाते हैं. एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के मामले में अदालत के ऐसे निर्देश पर आम लोगों के साथ साथ वकील बिरादरी में नाराजगी है. वकीलों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को 'चौंकाने वाला' 'नृशंस', 'पितृसत्तात्मक, और सरासर 'अवैध' बताया है.
उच्च न्यायालय में जस्टिस पी देवदास की कोर्ट से बाहर "मध्यस्थता और सुलह" की सलाह से हैरान लोग सवाल उठा रहे हैं कि ऐसे मामले में दोषी को पीड़िता से सुलह करने का विकल्प देना कैसा आदर्श स्थापित करेगा.
वहीं कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही यह निर्देश पहली नजर में अजीब लगे लेकिन सामाजिक यथार्थ की पृष्टभूमि में अगर मामले का मानवीय पहलू देखा जाए तो बात समझ में आती है. बलात्कार के कारण पैदा हुए बच्चे को समाज में स्वीकार्यता दिलाने के लिए उसे पिता का नाम मिलना जरूरी माना जाता है. बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में समझौते का विकल्प देने से लोग न्यायकर्ता पर इसी रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा देने का आरोप लगा रहे हैं.
पीड़ित लड़की अपराध के समय 15 साल की अनाथ थी. अपनी दत्तक मां के साथ रहने वाली लड़की के साथ बलात्कार करने वाले वी मोहन नाम के व्यक्ति ने निचली अदालत में 7 साल की सजा और दो लाख के जुर्माने की सजा मिलने के बाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने उसे अंतरिम जमानत देते हुए एक लाख रूपए पीड़िता के नाम बैंक में जमा करवाने का आदेश दिया है.
आरआर/एमजे