अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम में सुधार प्रयासों की विफलता के बाद कयास लगाये जा रहे थे कि ट्रंप सरकार की नयी कर सुधार योजना सरकार के एजेंडे को कुछ हद तक बचा सकेगी. और हुआ भी कुछ ऐसा ही, नये कर प्रस्ताव में नौकरियों पर जोर दिया गया है.
इस प्रस्ताव में कॉरपोरेट टैक्स की दर को 35 फीसदी से घटाकर 20 फीसदी रखा गया है, साथ ही नये विधेयक के अनुसार घरेलू स्तर पर जो पहले सात तरह की टैक्स दरें थीं, उन्हें घटाकर अब तीन कर दिया गया है. इसमें अधिकतम दर 35 फीसदी निर्धारित की गयी है. हालांकि यह योजना बताती है कि सबसे ज्यादा टैक्स देने वालों के लिए एक चौथी कर दर भी हो सकती है. इस प्रस्ताव में विदेशों में जमा पर निम्न कर दर की पेशकश की गयी है ताकि कंपनियों को प्रोत्साहित कर विदेशों में जमा राशि और परिसंपत्तियों को वापस देश लाया जा सके. नए प्रस्ताव के तहत पैतृक संपत्ति पर लगने वाले कर (इन्हेरिटेंस टैक्स) को भी समाप्त कर दिया जाएगा. ट्रंप के मुताबिक, "कॉरपोरेट टैक्स में कटौती एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है." उन्होंने कहा, "कॉरपोरेट टैक्स का सबसे अधिक लाभ मध्यम वर्ग को होगा क्योंकि इससे देश में नौकरियां पैदा होंगी." ट्रंप ने मौजूदा कर व्यवस्था को बेहद पुराना बताया और कहा कि वर्तमान कर प्रणाली ही देश के आर्थिक विकास में बाधा बनी हुई है.
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कहां कहां बंद करेगा अमेरिका अपना कारोबार
वैश्विक कारोबार
वैश्विक कारोबार की बात करें तो उत्तर कोरिया कोई बहुत बड़ा खिलाड़ी नहीं है. साल 2015 के सीआईए फैक्टबुक के आंकड़ों मुताबिक यह दुनिया के 100 आयात-निर्यात करने वालों देशों की सूची में भी नहीं आता. लेकिन हैरानी की बात है कि जिन देशों के साथ इसके कारोबारी संबंध हैं वह दुनिया के बड़ी अर्थव्यवस्थायें हैं.
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चीन
उत्तर कोरिया के साथ लगभग 1420 किमी की सीमा साझा करने वाला चीन इसका सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के आंकड़ो मुताबिक साल 2015 में उत्तर कोरिया के 83 फीसदी निर्यात में चीन की हिस्सेदारी थी वहीं इसके आयात में भी इसका 85 फीसदी हिस्सा रहा.
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अमेरिका और चीन
अब सवाल है कि क्या अमेरिका के लिये चीन के साथ कारोबारी संबंध खत्म करना संभव है. अमेरिका और चीन के कारोबारी संबंध में अगर कोई उतार-चढ़ाव आता है तो उसका असर वैश्विक स्तर पर देखने को मिलेगा. कनाडा और मैक्सिको के बाद चीन ही ऐसा तीसरा बड़ा देश है जो अमेरिका से सबसे अधिक चीजें खरीदता है. वहीं अमेरिका भी चीन से अपनी जरूरत का करीब 21 फीसदी सामान खरीदता है.
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भारत और अमेरिका
भारत, उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. इसका उत्तर कोरिया के साथ 3.1 फीसदी आयात और 3.5 फीसदी निर्यात होता है. लेकिन विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ संबंध खत्म करना भी अमेरिका के लिये आसान नहीं है. रणनीतिक और कारोबारी लिहाज से अमेरिका के लिये भारत एशिया में बेहद महत्वपूर्ण है.
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एशियाई पड़ोसी
उत्तर कोरिया के अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ भी व्यापारिक संबंध हैं. निर्यात की बात करें तो पाकिस्तान के साथ भी इसके संबंध हैं, इसके बाद सऊदी अरब के साथ भी यह निर्यात साझेदारी रखता है. इसके अलावा कई छोटे मुल्कों के साथ इसके कारोबारी संबंध हैं. अफ्रीकी महीद्वीप के बुर्किना फासो और जांबिया जैसे देश भी उत्तर कोरिया के साथ कारोबार करते हैं.
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अन्य साझेदार
उत्तर कोरिया में वस्तुओं की आपूर्ति करने में रूस की अहम भूमिका है. रूस, थाईलैंड और फिलीपींस जैसी अर्थव्यवस्थाओं के भी इसके साथ व्यापारिक संबंध हैं. छोटे स्तर पर ही सही उत्तर कोरिया के जर्मनी के साथ भी व्यापारिक संबंध हैं.
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जर्मनी का साथी
साल 2015 में जर्मनी ने उत्तर कोरिया के साथ 29 लाख यूरो का आयात किया था, जिसमें फेरो एलॉय, तार और एक्स-रे से जुड़े उपकरण शामिल थे. वहीं उत्तर कोरिया ने तकरीबन 74 लाख यूरो का निर्यात किया था इसमें मुख्य तौर पर पैकेज दवाइयां शामिल थीं. (एए/आर्थर सुलिफन)
हेल्थकेयर सिस्टम और अमेरिका-मैक्सिको सीमा पर दीवार जैसे मुद्दों पर अब तक विफल रहे ट्रंप के लिए यह कर सुधार बेहद ही अहम हो गये थे. पिछले साल अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने टैक्स सुधारों पर तमाम बातें की थीं. हालांकि इस प्रस्ताव पर विपक्षी डेमोक्रेट्स को संसद में समझाना ट्रंप के लिए एक बड़ी चुनौती होगा. इन सब के बीच ट्रंप सरकार के इस कर प्रस्ताव का अमेरिकी शेयर बाजार ने जरूर स्वागत किया है.
एए/एके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)