जर्मन वैज्ञानिकों के मुताबिक नुकसान सीट पर बैठ कर पढ़ने से नहीं, बल्कि सीट पर देर तक बैठे रहने से है. जर्मन शहर मनहाइम में रेक्टम एंड कोलन सेंटर के प्रवक्ता आलेक्जांडर हेरोल्ड ने बताया कि सीट पर देर तक बैठे रहने से शरीर में पेड़ू संबंधी हिस्से पर जोर पड़ता है और बवासीर की संभावना बढ़ती है. उन्होंने कहा, "आपको टॉयलेट सीट पर सिर्फ तभी बेठना चाहिए जब जरूरत हो."
बवासीर के बारे में बात करने में कई लोग असहज महसूस करते हैं. पेड़ू के स्थान पर संवहनी कुशन रूपी संरचना होती है. बवासीर होने पर यही संरचना असामान्य रूप से फूल जाती है. यह संरचना हम सभी में होती है. होरेल्ड ने बताया कि जब शरीर के इस हिस्से पर बहुत देर तक दबाव पड़ता है तो रक्त प्रवाह प्रभावित होता है. ऐसी स्थिति में बवासीर होने की संभावना होती है.
बवासीर एक आम बीमारी है जो कि 30 साल से ज्यादा की आयु के हर तीसरे व्यक्ति को होती है. 50 साल की उम्र पार करने के बाद इसकी संभावना और बढ़ जाती है, यानि हर दो लोगों में एक को. उम्र बढ़ने के साथ नसें कमजोर पड़ने लगती हैं और ज्यादा देर भार बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं.
अगर समय पर ध्यान न दिया जाए तो यह खतरनाक होता जाता है. डॉक्टर बवासीर की चार अवस्थाएं बताते हैं. शुरुआती बवासीर में संवहन के लिए जिम्मेदार कुशन का फूलना दिखाई तो नहीं देता लेकिन त्वचा से रक्त बहना या खुजली होना लक्षण हैं. मल में खून आने पर इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, फौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. जर्मन त्वचा रोग सोसाइटी के बेर्नहार्ड लेनहार्ड मानते हैं कि भविष्य में बड़ी परेशानी से अच्छा है कि इसे समय रहते डॉक्टर को दिखाया जाए. उन्होंने बताया कि आंतों के कैंसर के भी कुछ ऐसे ही लक्षण होते हैं.
एसएफ/एजेए (डीपीए)
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जीना टॉयलेट के बिना
गरीबी से लड़ते टॉयलेट
बेहतर साफ सफाई और साफ टॉयलेट के लिए दुनिया भर में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. दुनिया की एक तिहाई आबादी के पास साफ शौचालय नहीं है. इससे बीमारियां फैलती हैं. खराब हाइजीन के कारण मरने वालों की संख्या खसरा और मलेरिया के कारण मरने वालों से भी ज्यादा है.
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संकटग्रस्त इलाकों में..
टॉयलेट बनाना मुश्किल है. अक्सर लोग घंटों इंतजार करते हैं. ट्यूनीशिया में भागे सोमालियाई लोगों के लिए अलग से जगहें बनाने की जरूरत है, जो स्थानीय संरचना के लिए बहुत मुश्किल है.
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गंदा काम
भारत के कई हिस्सों में जहां पानी वाले टॉयलेट नहीं हैं, वहां इनकी सफाई के लिए लोग हैं. भारतीय संविधान के मुताबिक इस पर 20 साल से रोक है लेकिन अभी तक किसी पर मुकदमा नहीं चला है. नई दिल्ली में इस साल की शुरुआत से इस तरह के शौचालयों पर रोक लगा दी गई है.
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स्वास्थ्य में निवेश
पानी के कारण होने वाली बीमारियों, जैसे टायफाइड और पेचिश के संक्रमण उन इलाकों में बहुत तेजी से बढ़ते हैं, जहां साफ टॉयलेट नहीं हैं. अफ्रीका के किबेरा में लोग प्लास्टिक की थैली का इस्तेमाल करते और फिर इसे फेंक देते. अब जब नैरोबी के शैंटीटाउन में यह टॉयलेट बनाया गया है, कम लोग बीमार हो रहे हैं.
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पोलियो का संक्रमण
सीरियाई सीमा के आस पास बने शरणार्थी शिविरों में हर दिन हजारों लोग सीरिया से आ रहे हैं. शिविरों में क्षमता से ज्यादा लोग है और इस कारण गंदे पानी से होने वाली बीमारियां और संक्रामक पोलियो भी बढ़ रहा है.
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टिकाऊ हल
बोलिविया की राजधानी ला पाज के नजदीक एल आल्टो में ऐसा शौचालय बनाया गया है जिसमें मल मूत्र अलग अलग होता है और उसका ट्रीटमेंट इस तरह से होता है कि उसे खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके. किसानों को यह मुफ्त में मिलता है और फुटबॉल मैदान में इस खाद का इस्तेमाल हो सकता है.
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यूरोप में भी पुराने तरह के टॉयलेट
यूरोपीय संघ में दो करोड़ लोगों के लिए साफ टॉयलेट्स नहीं हैं. पूर्वी यूरोप में अभी भी पुराने तरह के टॉयलेट हैं. ये वहां पीने के पानी को दूषित करते हैं, जहां कुआं हो. यहां हाइजीन खराब है और अर्थव्यवस्था भी.
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इथियोपिया में मदद
जीवन बेहतर बनाने के लिए एक साधारण सा टॉयलेट भी काफी है. इथियोपिया में अब लोगों को निजी टॉयलेट उपलब्ध हो पा रहा है. टॉयलेट ट्विनिंग जैसी संस्थाएं इसे मुमकिन बना रही हैं. पहले लोग बहुत बीमार रहते थे.
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बिना पानी के
अलास्का के माउंट मैक किनले पर बने इस टॉयलेट के तो कहने की क्या.. यहां से उत्तरी अमेरिका के सबसे ऊंचे पर्वत का शानदार नजारा दिखता है.
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जैविक टॉयलेट
सुलभ शौचालयों ने भारत में एक नई क्रांति लाई थी. ऐसी ही एक और कोशिश की जा रही है जैविक टॉयलेटों के जरिए. ये बायो डाइजेस्टर टॉयलेट ऐसी जगहों पर भी लगाए जा सकते हैं जहां मल निकासी की सुविधा नहीं है.
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कलावती का शौचालय मिशन
भारत में उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में रेल की पटरियों के इर्द गिर्द बसी राजा का पुरवा बस्ती में 1991 से पहले तक मल मूत्र सड़कों पर बहा करता था, लेकिन अब वहां की ही एक महिला कलावती के अभियान के कारण वहां 50 सीटों वाला एक सामुदायिक शौचालय कामयाबी से चल रहा है.
रिपोर्ट: एएम/आरआर