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भौतिकी का एक विलक्षण हॉकिंग तारा

शिवप्रसाद जोशी
१४ मार्च २०१८

प्रसिद्ध ब्रिटिश भौतिकविद् स्टीफन हॉकिंग सर्वकालिक महान वैज्ञानिकों में एक थे. जब दुनिया उनके निकट पूर्वज और महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन की जयंती मना रही थी, हॉकिंग ने इस दुनिया से विदा ली.

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Stephen Hawking
तस्वीर: picture-alliance/abaca/A. Abd Rabbo

76 साल के जीवन में स्टीफन हॉकिंग ने सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में कमोबेश वैसी ही हलचल मचाई है जैसी कि अपने दौर में आइंस्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत से मचाई थी. उन्हें चुनौती देने वाले अग्रणी वैज्ञानिक हॉकिंग ही थे. ‘ईश्वर पासे नहीं खेलता' कहकर जब आइंस्टाइन अपनी खोज में आगे बढ़ने से ठिठक गये थे तो कई साल बाद हॉकिंग ने आगे बढ़कर ये प्रतिपादित किया था कि ईश्वर न सिर्फ पासे खेलता है बल्कि उसके फेंके पासे कहां गिरते हैं ये तक पता नहीं चल पाता. इस उक्ति से आशय यह था कि ब्रह्मांड के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है और किसी एक शक्ति ने इसकी रचना नहीं की है. ये कथन ‘सिंगुलैरिटी' नामक प्रस्थापना की ओर भी इंगित करता था जिसे दरअसल दिक्-काल (स्पेसटाइम) का एक अनिश्चित झुकाव माना जाता है. हॉकिंग ने ही ब्लैक होल के बारे में यह नतीजा निकाला था कि उससे भी विकिरण के छूट जाने की संभावना है. इसे हॉकिंग रेडिएशन कहा गया. ब्लैक होल के बारे में वैज्ञानिक मान्यता रही है कि प्रकाश तक उसमें जाकर डूब जाता है. लेकिन हॉकिंग का कहना था कि ब्लैक होल से भी बाहर कोई रास्ता जरूर निकलता होगा.

मशहूर भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग का निधन

वो बीमारी जिससे 55 साल तक हॉकिंग लड़ते रहे

हॉकिंग की आज की दुनिया को सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने सैद्धांतिक भौतिकी और ब्रह्मांडीय विज्ञान की गुत्थियों को आमफहम बनाकर लोगों तक पहुंचाया. उन्होंने अपने निराले नटखट अंदाज में भौतिकी की पहेलियां सुलझाईं. यही कारण था कि वह समान रूप से वैज्ञानिकों, बौद्धिकों, शिक्षकों से लेकर छात्रों और बच्चों के बीच लोकप्रिय थे. उन्होंने विज्ञान को कथा, कला और कविता बना दिया. हॉकिंग की एक बड़ी देन यह भी है कि उन्होने संसार या ब्रह्मांड की रचना में ईश्वरीय ‘प्रताप' को खारिज किया, अंधविश्वासों और धार्मिक रूढ़ियों को फटकारते रहे और ताउम्र एक संवेदनशील, मेहनतकश और प्रगतिशील दुनिया का सपना संजोए रहे.

हॉकिंग ने पर्यावरण की दुर्दशा पर तीखी टिप्पणियां की और ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे से दुनिया को आगाह किया. उन्होंने इन्हीं संदर्भों में एलियन की अवधारणा को भी अपने चुटीले और व्यंग्यात्मक अंदाज में हवा दी और बताया कि यह न मानने का कोई कारण नहीं कि आकाशगंगाओं में कहीं कोई एक ऐसी प्राणी व्यवस्था जरूर है जो हमारी धरती के मनुष्यों से हर स्तर पर उच्चतर स्थिति में है. राजनीतिक रूप से सजग हॉकिंग ने फलस्तीनी पक्ष से सहानुभूति रखी और गजा पर इस्राएली कब्जे के विरोध में 2013 में एक व्याख्यानमाला के लिए इस्राएल जाने से इंकार कर दिया.

वह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के संभावित खतरों से भी बाखबर थे. लेकिन यह तय है कि समकालीन विज्ञान जगत में इतना खिलंदड़ और मस्तमौला वैज्ञानिक नहीं देखा गया. आइंस्टाइन की ही तरह पश्चिमी शास्त्रीय संगीत पर हॉकिंग की असाधारण पकड़ थी. मोत्जार्ट उनके प्रिय थे. वह अंतिम समय तक ग्रैविटी और क्वांटम मैकेनिक्स को एकीकृत करने की गुत्थियों में डूबे हुए थे और आखिर तक यह जानना चाहते थे कि वाष्पीकृत होने के बाद ब्लैक होल का क्या होता है. इन्हीं पेचीदगियों के बीच संभव है उन्हें एलियन के धरती पर पदार्पण की बात सूझी हो.   

1988 में प्रकाशित ‘समय का संक्षिप्त इतिहास' (अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम) जैसी किताब ने स्टीफन हॉकिंग को रातोंरात विज्ञान दुनिया का सितारा बनाया.  संडे टाइम्स की बेस्टसेलर सूची में यह किताब अभूतपूर्व 237 सप्ताह तक बनी रही और इसकी बदौलत गिनीज बुक में इसका नाम दर्ज हुआ. एक करोड़ से अधिक प्रतियां बिकीं और 40 भाषाओं में अनूदित हुई. भौतिकी की दुनिया में आइंस्टाइन के बाद यह एक बड़ा तहलका था जिसकी गूंज आने वाले लंबे समय तक बनी रहने वाली थी. 21वीं सदी के दो दशक पूरे होने वाले हैं. और अभी यह जादू कायम है. 1993 में उनकी दूसरी किताब ‘ब्लैक होल्स एंड बेबी यूनिवर्सेस एंड अदर एसेस' प्रकाशित हुई. इसी किताब में हॉकिंग ने ब्रह्मांड से जुड़े अपने अध्ययनों को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया और इसी में वह लेख भी है जिसमें हॉकिंग ने आइंस्टाइन की दुविधाओं पर अंगुली रखी. 2001 में आई उनकी किताब ‘द यूनिवर्स इन अ नटशैल' ने पहली किताब की तरह प्रकाशन जगत में धूम मचाई.

आठ जनवरी 1942 को जन्मे हॉकिंग 21 साल के थे जब एक घातक बीमारी एएलएस का शिकार हो गये थे जिसने उन्हें शारीरिक रूप से अपाहिज और बोलने या चलने फिरने में असमर्थ कर दिया. इस बीमारी को मोटर न्यूरॉन डिसीज भी कहा जाता है. उनके लिए एक खास किस्म की चेयर तैयार की गई थी जिस पर कई अत्याधुनिक उपकरणों के साथ कंप्यूटर लगाया गया जो एक स्पीच सिंथेसाइजर प्रणाली से जुड़ा था. डॉक्टरों का अनुमान था कि इस बीमारी के बाद स्टीफन ज्यादा दिन जीवित नहीं रहेंगे और अगर बच भी गये तो बच्चे पैदा नहीं कर पाएंगे. हॉकिंग न सिर्फ लंबे समय तक अच्छे भले रहे बल्कि उनके तीन बच्चे भी हुए. वह एक भरापूरा परिवार छोड़कर गए.

स्टीफन हॉकिंग को लेकर नोबेल समिति चूक गई. दुनिया भर में तमाम पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया लेकिन नोबेल उनसे दूर ही रहा. हॉकिंग अपनी प्रस्थापनाओं में जितने लोकप्रिय थे, उतना ही विवादास्पद भी. विज्ञान बिरादरी में उन्हें लेकर विवाद, तानाकशी और ईर्ष्या भी देखी जाती रही. हॉकिंग के फलसफे को उनके एक इंटरव्यू में समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि, "मोटर न्यूरान बीमारी की चपेट में आने से पहले मैं जिंदगी से ऊब गया था लेकिन आसन्न मृत्यु की आशंका ने मुझे अहसास करा दिया कि जिंदगी तो वाकई जीने लायक है. करने को इतना कुछ है. इतना कुछ कि कोई भी कुछ भी कर सकता है. मुझे उपलब्धि की एक सच्ची अनुभूति होती है कि मैने अपनी हालत के बावजूद मनुष्य ज्ञान को समर्थ बनाने में एक अदना सा लेकिन महत्वपूर्ण योगदान दिया है.”