जर्मन बाल फिल्मों ने मचाई जयपुर में धूम
शहर के जवाहर कला केंद्र में हुए "जर्मन बाल फिल्म महोत्सव" का बच्चों ने लिया पूरा आनंद. फिल्मों के पोस्टरों के साथ सेल्फी खींचने की होड़ मची हुई थी.
गोएथे इंस्टीट्यूट, मैक्स म्युलर भवन और जयपुर के जवाहर कला केंद्र ने मिल कर यह आयोजन किया था. मकसद था भारतीय बच्चों को जर्मनी की कला और संस्कृति से परिचित कराना. फिल्म महोत्सव की खासियत थी "नो टिकिट" यानि "फ्री एन्ट्री"
जर्मनी की कुल छह बाल फिल्मों को महोत्सव में प्रदर्शित किया गया और इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि फिल्म में मनोरंजन तो हो ही साथ ही वे बच्चों को प्रेरणा दें.
फिल्म महोत्सव का आनंद लेने जयपुर के प्रमुख स्कूलों के छात्र-छात्राएं बड़ी संख्या में पहुंचे. इनमें से कई जर्मन भाषा सीख रहे हैं जबकि बाकी के लिए अंग्रेज़ी भाषा में सब-टाइटलिंग ने फिल्मों का पूरा आनंद दिलवाया.
सभी फिल्मों को बच्चों के दो आयु वर्गों में बांटा गया था. 7 से 10 और 10 से 13. और इन के लिए हर दिन तीन-तीन शो भी दिखाये गए.
"फिल्म महोत्सव" का बच्चों के अलावा उनके अभिभावकों ने भी पूरा आनंद लिया. यूं लगा जैसे जर्मन लोक कला और संस्कृति भारतवासियों को खूब लुभाती है. कुछ लोगों के हाथ में जयपुर में छपने वाला जर्मन समाचार पत्र "वारुम निष्ट वियर" भी था जो उनके जर्मन प्रेम को इंगित कर रहा था.
1989 में बर्लिन की दीवार के गिरने से कुछ दिन पहले देशवासियों की उत्कंठाओं पर केंद्रित "स्पूतनिक" दिखाई गई. उवे जानसन निर्देशित "सिंड्रेला" देख कर तो बच्चे कल्पना लोक में चले गए और परियों और राजा रानी की कहानियों में खो गए.