घरेलू हिंसा के मामले में बंगाल लगातार सातवें साल पूरे देश में अव्वल रहा है. वह भी तब जब बीते चार साल से यहां महिला मुख्यमंत्री का ही राज रहा है. वर्ष 2014 के दौरान पूरे देश में विवाहित महिलाओं पर ससुराल वालों और रिश्तेदारों की ओर से अत्याचार और हिंसा के जितने मामले में दर्ज हुए उनमें से बीस फीसदी इसी राज्य में हुए. इस मामले में यह उदारवादी राज्य पुरुष-प्रधान समाज वाले हिंदी भाषी राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के मुकाबले बहुत आगे है. महिलाओं के 35 संगठनों को लेकर गठित स्वयम की निदेशक अनुराधा कपूर इन आंकड़ों के हवाले कहती हैं, "जो घर महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित होना चाहिए, वहीं वह सबसे ज्यादा असुरक्षित है. घरेलू हिंसा के मामले में हर तबके के लोग समान हैं."
पश्चिम बंगाल में वर्ष 2014 के दौरान घरेलू हिंसा के 23,278 मामले दर्ज हुए यानी रोजाना 64 मामले. आंकड़ों के मुताबिक, बीते 10 वर्षों के दौरान राज्य में विवाहित महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में 235 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है जबकि राष्ट्रीय औसत 110 फीसदी है. लेकिन सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस की दलील है कि बंगाल में महिलाओं को मिली आजादी भी इसकी एक वजह है. सरकार की दलील है कि राज्य में महिलाएं थाने में जाकर हिंसा की रिपोर्ट दर्ज करा सकती हैं जबकि दूसरे राज्यों में यह संभव नहीं है. इसलिए आंकड़े कई बार गलत तस्वीर पेश करते हैं.
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महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
शादीशुदा महिला का बलात्कार
दिल्ली में 2012 के निर्भया कांड के बाद दुनिया भर में भारत की थूथू हुई. लेकिन एक साल बाद ही कानून में एक नई धारा जोड़ी गई जिसके मुताबिक अगर पत्नी 15 साल से ज्यादा उम्र की है तो महिला के साथ उसके पति द्वारा यौनकर्म को बलात्कार नहीं माना जाएगा. सिंगापुर में यदि लड़की की उम्र 13 साल से ज्यादा है तो उसके साथ शादीशुदा संबंध में हुआ यौनकर्म बलात्कार नहीं माना जाता.
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महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
अगवा कर शादी
माल्टा और लेबनान में अगर लड़की को अगवा करने वाला उससे शादी कर लेता है तो उसका अपराध खारिज हो जाता है, यानि उस पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा. अगर शादी फैसला आने के बाद होती है तो तुरंत सजा माफ हो जाएगी. शर्त है कि तलाक पांच साल से पहले ना हो वरना सजा फिर से लागू हो सकती है. ऐसे कानून पहले कोस्टा रीका, इथियोपिया और पेरू जैसे देशों में भी होते थे जिन्हें पिछले दशकों में बदल दिया गया.
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महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
सुधारने के लिए पीटना सही
नाइजीरिया में अगर कोई पति अपनी पत्नी को उसकी 'गलती सुधारने' के लिए पीटता है तो इसमें कोई गैरकानूनी बात नहीं मानी जाती. पति की घरेलू हिंसा को वैसे ही माफ कर देते हैं जैसे माता पिता या स्कूल मास्टर बच्चों को सुधारने के लिए मारते पीटते हैं.
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महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
ड्राइविंग की अनुमति नहीं
सऊदी अरब में महिलाओं का गाड़ी चलाना गैरकानूनी है. महिलाओं को सऊदी में ड्राइविंग लाइसेंस ही नहीं दिया जाता. दिसंबर में दो महिलाओं को गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. इस घटना के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार संस्थानों ने आवाज भी उठाई.
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महिलाओं के खिलाफ अजीबोगरीब कानून
पत्नी का कत्ल भी माफ
मिस्र के कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को किसी और मर्द के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखता है और गुस्से में उसका कत्ल कर देता है, तो इस हत्या को उतना बड़ा अपराध नहीं माना जाएगा. ऐसे पुरुष को हिरासत में लिया जा सकता है लेकिन हत्या के अपराध के लिए आमतौर पर होने वाली 20 साल तक के सश्रम कारावास की सजा नहीं दी जाती.
रिपोर्ट: समरा फातिमा
दूसरी ओर, महिला संगठनों का कहना है कि बंगाल में मामले दर्ज तो होते हैं, लेकिन उसके बाद दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. ज्यादातर मामले फाइलों में ही दम तोड़ देते हैं. महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता श्रुति सेन कहती हैं, "बंगाल में घरेलू हिंसा के मामलों में अभियुक्तों को सजा मिलने की दर महज 2.3 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय औसत 15.6 फीसदी है." सरकार और पुरुषों के विभिन्न संगठनों की दलील है कि कई महिलाएं ससुराल वालों को परेशान करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए का दुरुपयोग भी करती हैं. लेकिन अनुराधा कपूर कहती हैं, "ऐसा कोई अध्ययन अब तक सामने नहीं आया है जिससे पता चले कि इस धारा के तहत दर्ज ज्यादातर मामले झूठे होते हैं." उनका कहना है कि दुरुपयोग तो सभी कानूनों का होता है. इस मामले में भी ऐसा होने की संभावना है. लेकिन ऐसे मामले बेहद कम ही हैं.
आखिर बंगाल जैसे जागरुक और उदार कहे जाने वाले राज्य में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले क्यों बढ़ रहे हैं. एक महिला कार्यकर्ता मधुपर्णा घोष कहती हैं, "इसकी कई वजहें हैं. इसमें महिलाओं का कामकाजी होना भी एक प्रमुख वजह है. इसके अलावा रोजमर्रा के जीवन में बढ़ते तनाव की वजह से कई बार छोटी-छोटी बातें भी भयावह रूप ले लेती हैं और इसका नतीजा हिंसा होता है." वह कहती हैं कि सरकार ने कानून तो कई बनाए हैं. लेकिन राज्य सरकार ने उनके प्रावधानों पर अमल करने या इस मुद्दे को सुलझाने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
लक्ष्मी की ताकत
महिलाओं पर होने वाले एसिड हमलों के खिलाफ अभियान छेड़ने वाली लक्ष्मी को अमेरिका में उनके काम के लिए सम्मानित किया गया. प्रथम अमेरिकी महिला मिशेल ओबामा ने उन्हें 'इंटरनेशनल विमेन ऑफ करेज' अवॉर्ड दिया.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
बदलाव की उम्मीद
अवॉर्ड समारोह में लक्ष्मी ने अपनी भावनाएं कविता के जरिए उकेरीं और कहा कि ये सम्मान मिलने के बाद उन्हें भारत में बदलाव की उम्मीद है. वो मानती हैं कि शायद दूसरी लड़कियां सोचें कि वे भी लड़ाई में शामिल हो सकती हैं.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
लक्ष्मी की अपील के बाद भारत की सर्वोच्च अदालत ने सरकार को हुक्म दिया है कि वो एसिड के कारोबार को नियमों में बांधें. महिलाओं पर हमले के लिए एसिड का दुरुपयोग किया जाता है. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में अकसर महिला से बदला लेने के लिए पुरुष ये हमले करते हैं.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
जब तक है जज्बा
भारत में एसिड हमले की शिकार महिलाओं में जीवन का जज्बा जगाने की कोशिश की जा रही है. उनके पुनर्वसन की भी कोशिश है. लक्ष्मी चाहती हैं कि इस तरह के अपराधों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होनी चाहिए.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
मदद
पाकिस्तान की शरमीन ओबैद चिनॉय की एसिड हमलों के पीड़ितों पर बनाई फिल्म को 2012 में ऑस्कर दिया गया था. लेकिन इसके बाद ये पीड़ित और घबरा गईं कि अब उनसे बदला लिया जा सकता है.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
हजारों शिकार
पाकिस्तान में हर साल हजारों लोग तेजाब हमलों का शिकार बनते हैं. इनमें 60 फीसदी महिलाएं हैं. पाकिस्तान में एसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन के मुताबिक 2012 में 7,516 लोग ऐसे हमलों का शिकार बने.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
एशिया में
महिलाओं पर एसिड हमलों के मामले में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश खासे बदनाम हैं. लेकिन कंबोडिया में भी इस तरह के अपराध होते हैं.
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
अंतहीन दर्द
एसिड हमले के शिकार लोगों का जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है. उनका चेहरा और गला जल जाता है और इसे ठीक करने के लिए फिर बार बार कॉस्मेटिक सर्जरी करनी पड़ती है, जो मध्यवर्ग के लिए बहुत खर्चीली साबित होती है.
रिपोर्ट: आभा मोंढे
कानूनी प्रावधानों के मुताबिक, राज्य के हर ब्लॉक में ऐसे मामलों की निगरानी के लिए एक प्रोटेक्शन आफिसर यानी सुरक्षा अधिकारी की तैनाती की जानी चाहिए. लेकिन पूरे राज्य में महज 21 ऐसे अधिकारी हैं. इसके अलावा ऐसे मामलों में राजनीतिक दखलंदाजी भी होती है. महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा के ज्यादातर मामलों में समझौते का दबाव महिलाओं पर ही होता है. उनको देश-दुनिया, समाज और इज्जत की दुहाई देकर या तो पुलिस में मामला दर्ज नहीं करने या फिर उसे वापस लेने को कहा जाता है.
महिला संगठनों का कहना है कि जब पुलिस के पास दर्ज मामलों की तादाद इतनी ज्यादा है तो इससे कहीं ज्यादा हिंसा के उन मामलों की होगी जो पुलिस तक नहीं पहुंचते. घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाने के लिए वर्ष 2005 में ही एक अधिनियम बनाया गया था. लेकिन उसके एक दशक बाद भी राज्य सरकार ने उसके प्रावधानों को सख्ती से लागू करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. महिला मुख्यमंत्री के सत्ता में आने के बावजूद हालात जस के तस ही हैं. अब महिला कार्यकर्ताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस सप्ताह राज्य की महिला कल्याण मंत्री शशि पांजा से मुलाकात कर उनको समस्या की गंभीरता से अवगत कराया है और साथ ही कानूनी प्रावधानों को सख्ती से भी लागू करने का अनुरोध किया है. बावजूद इसके फिलहाल हालात में सुधार की गुंजाइश कम ही नजर आती है.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी रिपोर्ट बताती है कि शराब के फायदों के बारे में पहले कई दावे बढ़ाचढ़ा कर किए गए थे. ज्यादा शराब पीने का 200 से भी अधिक बीमारियों से संबंध है. रोज केवल एक या दो ड्रिंक लेने वालों को होने वाले फायदे की रिपोर्टों पर इसलिए सवाल उठ रहे हैं क्योंकि उन स्टडीज में कम शराब पीने वालों की तुलना ज्यादा पीने वालों से की गई थी, ना कि शराब बिल्कुल ना पीने वालों से.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया भर में हर साल होने वाली कुल मौतों में से करीब 6 फीसदी का कारण शराब है. रूस और बेलारूस जैसे पूर्वी यूरोपीय देश शराब की खपत के मामले में दुनिया के टॉप पांच देशों में हैं. बेलारूस का एक नागरिक औसतन साल में 17.5 लीटर शुद्ध एल्कोहल पी जाता है जबकि रूस में ये औसत करीब 15.1 लीटर पाया गया.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
जर्मनी को बीयर प्रेमी देश माना जाता है. यहां साल में प्रति व्यक्ति औसतन 11.8 लीटर शराब पी जाती है, जबकि ब्रिटेन का औसत 11.6 लीटर है. उत्तरी अमेरिका और एशिया के मुकाबले यूरोपीय देश बहुत आगे हैं.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
माना जाता है कि एशिया में खपत कम होने का एक कारण ये भी हो सकता है कि कुछ एशियाई समुदायों में एल्कोहल को पचाने में मदद करने वाले एंजाइम ही नहीं होते.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
महिलाओं के शरीर में पुरुषों के मुकाबले बॉडी वॉटर कम होता है जिसके कारण एल्कोहल पूरे शरीर में ज्यादा आसानी से फैल जाता है. डॉक्टर बताते हैं कि महिलाओं में पानी से ज्यादा वसा का भार होता है इसलिए उनमें एल्कोहल कम जगह में ज्यादा सान्द्रता में पाया जाता है.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
चीन और भारत जैसे विकासशील देशों में शराब की खपत लगातार बढ़ रही है. बढ़ते मध्यवर्ग के लोग अब महंगी विदेशी शराब भी काफी खरीदने लगे हैं, जैसे जर्मन बीयर या फ्रेंच वाइन.
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शराब की हकीकत: 7 बातें
उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व के कई देशों में लोग काफी कम शराब पीते हैं. पाकिस्तान, कुवैत और लीबिया जैसे देशों में साल की औसत खपत मात्र 0.1 लीटर के आसपास है.
रिपोर्ट: ऋतिका राय