83.5 किलोग्राम भारी स्पुतनिक इंसान की बनाई ऐसी पहली चीज है जो पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर भेजी गई. सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने इस उपग्रह के सफल प्रक्षेपण के बाद कहा कि स्पुतनिक धरती से 900 किलोमीटर ऊपर है. पृथ्वी की परिक्रमा के दौरान स्पुतनिक की गति 29,000 किलोमीटर प्रतिघंटा थी. पहला मानव निर्मित उपग्रह 96 मिनट में धरती का एक चक्कर पूरा कर रहा था.
धातु की गेंद की तरह बनाए स्पुतनिक में चार एंटीने थे. प्रक्षेपण के वक्त वैज्ञानिकों को उम्मीद नहीं थी कि स्पुतनिक अंतरिक्ष से रेडियो सिग्नल भेजेगा. वैज्ञानिकों को लगा कि धरती के वायुमंडल से बाहर निकलते वक्त घर्षण की वजह से धातु का खोल गल जाएगा. हालांकि ऐसा हुआ भी, लेकिन इसके बावजूद स्पुतनिक वहां से रेडियो सिग्नल भेजने में कामयाब रहा.
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ब्लैक होल की दुनिया
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
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विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
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सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
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ब्लैक होल की दुनिया
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
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द्रव्यमान बनाता है इसे
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
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ब्लैक होल की दुनिया
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
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ब्लैक होल की दुनिया
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
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ब्लैक होल की दुनिया
तारा या छेद
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
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ब्लैक होल की दुनिया
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
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सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
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अनसुलझे रहस्य
ब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.
रिपोर्ट: निखिल रंजन
हालांकि इंसानी इतिहास का ये पहला उपग्रह अंतरिक्ष में 22 दिन ही सिग्नल भेज पाया. बैटरी खत्म होने की वजह से 26 अक्टूबर 1957 को स्पुतनिक खामोश हो गया.
आम तौर पर सैटेलाइटों की औसत उम्र पांच से 20 साल के बीच होती है. 2008 तक पूर्वी सोवियत संघ और रूस की करीब 1,400 सैटेलाइटें अंतरिक्ष में है. अमेरिका की करीबन एक हजार, जापान की 100 से ज्यादा, चीन की करीब 80, फ्रांस की 40 और भारत 30 से ज्यादा सैटेलाइटें भी धरती की परिक्रमा कर रही हैं. भारत ने अपनी पहली सैटेलाइट अप्रैल 1971 में छोड़ी. इसका नाम आर्यभट्ट था.
आज करीब 3,000 इंसानी उपग्रह अंतरिक्ष में रहकर धरती का चक्कर काट रहे हैं. इन्हीं की मदद से आज मोबाइल कम्युनिकेशन, टीवी प्रसारण, इंटरनेट, हवाई और समुद्री परिवहन और आपदा प्रबंधन हो रहा है. स्पुतनिक के जरिए इंसान ने वो तकनीक हासिल कर ली, जिसके बिना आज की 21वीं सदी की कल्पना मुश्किल है.
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अंतरिक्ष से वापसी
धरती पर पहुंचे
जर्मनी के अलेक्जांडर गैर्स्ट, रूस के माक्सिम सुरायेव और रीड वाइसमान अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन से धरती पर लौट आए हैं. इस दौरान आईएसएस पर कई तरह के प्रयोग किए गए.
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ऊपर से दुनिया की पढ़ाई
ज्वालामुखी विशेषज्ञ और भूगर्भ भौतिकशास्त्री के तौर पर गैर्स्ट धरती को अंदर से तो बहुत अच्छी तरह जानते हैं. 28 मई से वह इसे ऊपर से भी देख रहे हैं. 400 किलोमीटर की ऊंचाई से वह नियमित रूप से फोटो लेते हैं, जैसे यहां उत्तरी अटलांटिक महासागर के ऊपर फैले बादल.
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कसरत भी चाहिए
अंतरिक्ष यान के सभी लोगों के लिए कसरत अनिवार्य है, क्योंकि पैरों और जांघों की मांसपेशियों में भारहीनता का असर अच्छा नहीं होता. हालांकि इस कसरत के जरिए गैर्स्ट के शरीर पर कई सेहत से जुड़े प्रयोग भी किए जा रहे हैं.
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छह महीने में 106 प्रयोग
अंतरिक्ष में जीने के कई रहस्य अभी भी बरकरार हैं. गैर्स्ट की कोशिश है उन पर से पर्दा उठाना. इसलिए उन्हें छह महीने के दौरान 106 प्रयोग करने की जिम्मेदारी दी गई है. इनमें से 25 जर्मन उद्योग के साथ मिल कर किए जाएंगे. इसमें कोलोन का खेल महाविद्यालय और बर्लिन का चेरिटे शामिल हैं.
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कैसे कैसे शोध
अंतरिक्ष की यात्रा के दौरान अलेक्सांडर के खून के नमूने नियमित रूप से इकट्ठे किए जाते हैं. ये नमूने एक अंतरिक्ष यान से धरती पर भेजे जाते हैं और इनका परीक्षण किया जाता है.
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अंतरिक्ष में वर्ल्ड चैंपियन
आईएसएस पर इतने व्यस्त टाइम टेबल के बावजूद अलेक्सांडर गैर्स्ट ने फुटबॉल वर्ल्ड चैंपियनशिप का फाइनल मिस नहीं किया. बाकायदा जर्मन टीशर्ट के साथ उन्होंने अंतरिक्ष में जीत की खुशी मनाई और तुरंत तस्वीर ऑनलाइन शेयर कर दी.
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अभियान
इस तरह की तस्वीरों के जरिए गैर्स्ट बताना चाहते हैं कि उन्हें आईएसएस से क्या क्या दिखाई देता है. वह धरती की खूबसूरती और उस पर जारी समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक और संवेदनशील बनाना चाहते हैं.
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अंतरिक्ष से लाइव
अपना संदेश पहुंचाने के लिए गैर्स्ट हर दिन थोड़ा समय निकाल कर वीडियो के जरिए धरती के लोगों से रूबरू होते हैं. पिछले महीने उन्होंने सैटेलाइट के जरिए सीधे दो स्कूलों के बच्चों से बात की. इसके अलावा वह नियमित तौर पर आईएसएस पर जीवन के बारे में वीडियो शेयर करते हैं.
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सबका अपना काम
वैज्ञानिक प्रयोगों के अलावा आईएसएस की मरम्मत का काम भी यात्रियों के ही हाथ में होता है. सबका काम निर्धारित है. गैर्स्ट जल शुद्धिकरण प्रणाली और कसरत उपकरणों के लिए जिम्मेदार हैं. हर शनिवार को आईएसएस की सफाई की जाती है.
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सुंदर धरती
अंतरिक्ष से हमारी पृथ्वी कितनी सुंदर दिखाई देती है ये अक्सर गैर्स्ट ट्विटर पर शेयर करते हैं. तस्वीर में देखा जा सकता है आसमान से सहारा का रेगिस्तान.
रिपोर्ट: हेलेना श्वार/आभा मोंढे