11 नवंबर 1936 को जन्मी माला सिन्हा अभिनेत्री नर्गिस से प्रभावित थीं और बचपन से ही उन्हीं की तरह अभिनेत्री बनने का ख्वाब देखा करती थीं. उनका बचपन का नाम अल्डा था और स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे उन्हें डालडा कहकर पुकारा करते थे. बाद में उन्होंने अपना नाम अल्डा सिन्हा की जगह माला सिन्हा रख लिया. स्कूल के एक नाटक में माला सिन्हा के अभिनय को देखकर बंगला फिल्मों के जाने-माने निर्देशक अर्धेन्दु बोस उनसे काफी प्रभावित हुए और उनसे अपनी फिल्म "रोशनआरा" में काम करने की पेशकश की. उस दौरान माला सिन्हा ने कई बंगला फिल्मों में काम किया.
एक बार बंगला फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में उन्हें मुंबई जाने का अवसर मिला. मुंबई में उनकी मुलाकात केदार शर्मा से हुई जो उन दिनों "रंगीन रातें" के निर्माण में व्यस्त थे. उन्होंने माला सिन्हा को अपनी फिल्म के लिए चुन लिया. माला सिन्हा को 1954 में प्रदीप कुमार के साथ "बादशाह" और "हैमलेट" जैसी फिल्मों में काम करने का मौका मिला लेकिन दुर्भाग्य से उनकी दोनों फिल्में टिकट खिड़की पर विफल साबित हुई.
प्यासा से चमका सितारा
माला सिन्हा के अभिनय का सितारा निर्माता-निर्देशक गुरुदत्त की 1957 में प्रदर्शित क्लासिक फिल्म "प्यासा" से चमका. इस फिल्म की कामयाबी ने माला सिन्हा को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया. इस बीच माला सिन्हा ने राजकपूर के साथ "परवरिश" और "फिर सुबह होगी", देवानंद के साथ "लव मैरिज" और शम्मी कपूर के साथ फिल्म "उजाला" में हल्के फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया.
1959 में प्रदर्शित बीआर चोपड़ा निर्मित फिल्म "धूल का फूल" के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में माला सिन्हा के नाम के डंके बजने लगे और बाद में एक के बाद एक कठिन भूमिकाओं को निभाकर वह फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गयी. "धूल का फूल" निर्देशक के रूप में यश चोपड़ा की पहली फिल्म थी. 1961 में माला सिन्हा को एक बार फिर से बीआर चोपड़ा की ही फिल्म "धर्मपुत्र" में काम करने का अवसर मिला जो उनके सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई. इसके बाद 1963 में माला सिन्हा ने उनकी सुपरहिट फिल्म "गुमराह" में भी काम किया.
राम और श्याम से किया इंकार
माला सिन्हा ने अपने सिने करियर में उस दौर के सभी दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय किया. वे हर अभिनेता के साथ उसी के रंग में रंग जाती थीं. महान अभिनेता दिलीप कुमार के साथ अभिनय करना किसी भी अभिनेत्री का सपना हो सकता है लेकिन माला सिन्हा ने उनके साथ फिल्म "राम और श्याम" में काम करने के लिए इसलिए इंकार कर दिया कि वह फिल्म में अभिनय को प्राथमिकता देती थीं न कि शोपीस के रूप में काम करने को. अभिनेता धर्मेन्द्र के साथ माला सिन्हा की जोड़ी खूब जमी. धर्मेन्द्र के अलावा उनकी जोड़ी विश्वजीत, प्रदीप कुमार और मनोज कुमार के साथ भी पसंद की गयी.
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बॉलीवुड के अहम पड़ाव
पहली प्रसिद्ध अभिनेत्रीः देविका रानी
हिन्दी फिल्मों की पहली बड़ी अभिनेत्री देविका रानी ने 1933 में पहली बार पर्दे पर किस करके हलचल मचा दी. उनके पति हिमांशु रॉय भी फिल्में बनाते थे. जर्मन फिल्मकार फ्रांत्स ओस्टेन के साथ मिल कर उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्मों को शक्ल दी.
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बेधड़क नाडियाः मैरी इवैंस
फियरलेस नाडिया के नाम से विख्यात मैरी इवैंस हिन्दी फिल्मों में काम करने वाली पहली अंतरराष्ट्रीय कलाकार थीं. सुनहरे बालों वाली गोल मटोल ऑस्ट्रेलियाई मैरी ने होमी वाडिया के साथ कई मारधाड़ वाली फिल्मों में काम किया बाद में उन्होंने होमी से शादी भी की.
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हिन्दी सिनेमा की विश्व सुंदरीः ऐश्वर्या रॉय
सुंदरियों के मुकाबले और हिंदी फिल्मों में तो ऐश्वर्या ने पहले ही डंका बजवा दिया था 2003 में कान फिल्म फेस्टिवल की ज्यूरी में शामिल हो कर उन्होंने वो करिश्मा भी कर दिखाया जो पहले किसी और हिंदुस्तानी के हिस्से नहीं आई थी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की किसी अभिनेत्री को ऐश्वर्या जितनी सुर्खियां नहीं मिलीं.
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बॉक्स ऑफिस पर पहला बवालः शोले
खूब नाच गाना और प्यार मुहब्बत देखने के बाद हिन्दी फिल्मों की मुलाकात गब्बर सिंह से हुई. रामगढ़ में जय वीरू की गब्बर से जंग ने ऐसी आग लगाई कि बसंती की बड़ बड़ करती और जया बच्चन की खामोश मुहब्बत भी उसकी लपटों को मद्धिम न कर सकीं. 38 साल से धधकते शोलों की जुबान आज भी बच्चा बच्चा बोलता है.
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सिनेमा की शुरूआतः राजा हरिश्चंद्र
दादा साहब फाल्के की इसी फिल्म के साथ 1913 में हिन्दी सिनेमा का सफर शुरू हुआ जो अब 100 साल की उम्र हासिल कर चुका है. उस वक्त कहानियां धार्मिक ग्रंथों और ऐतिहासिक चरित्रों से ली जाती थीं. महिलाओं के किरदार भी पुरुष निभाया करते थे.
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बॉलीवुड के बापः दादा साहब फाल्के
आज जिन्हें हम दादा साहब फाल्के कह कर सम्मान देते हैं उन्हीं ढुंडीराज गोविंद फाल्के ने हिंदी सिनेमा की शुरूआत की. फोटोग्राफर के रूप में काम करने वाले दादा साहब फाल्के की मुलाकात जर्मनी के कार्ल हर्त्ज से हुई और उन्होंने लुमियरे बंधुओं के साथ भी काम किया. लुमियरे बंधुओं ने ही सिनेमेटोग्राफी विकसित की. इसके बाद दादा साहब फिल्में बनाने लगे और उनके नाम कोई 100 से ज्यादा फिल्में हैं.
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पहली बोलती फिल्मः आलम आरा
फिल्में तो बनने लगीं लेकिन वो खामोश थीं. 18 साल बाद आई आलम आरा हिन्दी की पहली बोलती फिल्म थी. इसके जरिए लोगों ने आवाज और संगीत से सजी चलती फिरती बोलती तस्वीरें देखी.
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आलोचकों के दुलारेः राज कपूर
राज कपूर की आवारा के साथ हिन्दी सिनेमा ने रूस, चीन समेत कई देशों में कदम रखे. फिल्म बहुत मशहूर हुई और इसे देखने वाले लोग भारतीयों को अब भी इस फिल्म से जोड़ कर देखते हैं. फिल्म का टाइटल सॉन्ग भी खासा लोकप्रिय हुआ. यहां तक कि दुनिया के कई देशों से राजकपूर को न्योते मिलने लगे.
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पहली अंतरराष्ट्रीय कामयाबीः मदर इंडिया
असली भारत के असली गांव और उनकी सच्ची मुश्किलें. मदर इंडिया पर वास्तविकता की इतनी गहरी छाप थी कि किरदारों का दर्द लोगों के दिल में कहीं गहराई तक बैठ गया. फिल्म विदेशी फिल्मों की श्रेणी में ऑस्कर का नामांकन भी ले गई. फिल्म में पश्चिम के लोगों ने भारत की दिक्कतें देखीं और वो उनके मन में गहरी दर्ज हुई. नर्गिस मदर इंडिया बन गईं
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पहला ऑस्करः सत्यजीत रे
बॉलीवुड की आम पहचान से एकदम दूर होने के बावजूद पाथेर पांचाली का जादू ऐसा है कि भुलाए नहीं भूलता. सत्यजीत और उनके सिनेमा ने भारत की दुनिया में जो छवि बनाई उससे वो आज भी पूरी तरह आजाद नहीं हो सका है. 1992 में सत्यजित रे को ऑस्कर मिला और वो तब यह पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय थे.
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बॉलीवुड का चेहराः शाहरुख खान
कोई एक दशक तक हिन्दी फिल्मों को यश चोपड़ा वाली मोहब्बत करना सिखा कर शाहरुख विदेशों में बॉलीवुड का चेहरा बन गए. खासतौर से जर्मनी में तो वो बेहद लोकप्रिय हैं. लंबे समय तक यहां का एक टीवी चैनल उनकी फिल्मों को जर्मन भाषा में डब कर दिखाता रहा. डॉन 2 फिल्म का बहुत सा हिस्सा जर्मनी में ही शूट किया गया और हर साल शाहरुख यहां कम से कम एक बार तो आते ही हैं.
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बॉलीवुड के अहम पड़ाव
दुनिया के पर्दे परः लगान
पहली बार कोई हिन्दी फिल्म अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिलीज हुई. लगान से पहले भारत के सपनों की दुनिया में या तो आजादी थी या फिर प्यार और पैसा. आशुतोष गोवारिकर और आमिर खान ने एक नया सपना दिया कुछ अनोखा और अच्छा कर दिखाने का. आमिर परफेक्शनिस्ट हो गए और उसके बाद एक एक कर बॉक्स ऑफिस, आलोचक, फिल्म समारोह उस पर मुहर लगाते चले गए.
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ऑस्कर में जय होः ए आर रहमान
'जय हो' गाने के लिए दो ऑस्कर और गोल्डन ग्लोब जीत कर ए आर रहमान ने दुनिया भर में धूम मचा दी. ऑस्कर ने पूरब के संगीत और कलाकारों का लोहा माना.
रिपोर्ट: अनवर जे अशरफ
हिन्दी फिल्मों के अलावा माला सिन्हा ने अपने दमदार अभिनय से बंगला फिल्मों में भी दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया.1958 में प्रदर्शित बंगला फिल्म "लुकोचुरी" माला सिन्हा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म साबित हुई. इस फिल्म में उन्हें किशोर कुमार के साथ काम करने का मौका मिला. बंगला फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में यह फिल्म सर्वाधिक हास्य से परिपूर्ण सुपरहिट फिल्मों में शुमार की जाती है. आज भी जब कभी कोलकाता में छोटे पर्दे पर यह फिल्म दिखाई जाती है तो दर्शक इसे देखने का मौका नहीं छोड़ते.
1966 में माला सिन्हा को नेपाली फिल्म माटीघर में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात फिल्म के अभिनेता सीपी लोहानी से हुई. फिल्म में काम करने के दौरान माला सिन्हा को उनसे प्रेम हो गया और बाद में दोनों ने शादी कर ली. माला सिन्हा ने लगभग 100 फिल्मों में काम किया है.
एमजे/आईबी (वार्ता)