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हिंदी फिल्में प्रेरणा देती हैं

१९ अप्रैल २०१३

हमारी पिछले सप्ताह की प्रश्नावली जो को बॉलीवुड से जुडी थी, पर हमे ढेरो जवाब मिले. क्या लिखते है पाठक, जानिए यहां.....

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Indischer Film: Sometimes Happy, Sometimes Sad

हमने आपसे पूछा था कि आपको बॉलीवुड में क्या खास लगता है. हमें आपसे ढेरों मजेदार जवाब मिले जिनमे से पांच विजेता चुने गए हैं. विजेताओं के विचारों को आप हमारी वेबसाइट पर हिंदी सिनेमा पर हमारे विशेष सिने सदी पेज पर पढ़ सकते हैं.

पाठकों से आए कुछ और चुनिंदा विचार भी हम आपके साथ बांटना चाहेंगे:

भारतीय हिंदी सिनेमा का अपना विशेष महत्त्व है. समय के साथ इसमें बहुत बदलाव आया है. शुरू में फिल्में पौराणिक कथाओं, ऐतिहासिक घटनाओ पर ज्यादा बनती थी. समय बदला और फिर दौर आया प्रेम पर आधारित फिल्मों का. आजकल की फिल्में विविधताओं से भरी हुई हैं. इनकी कहानियां सामाजिक, राजनितिक तथा वर्तमान समस्याओं पर आधारित हैं. मुझे हिंदी फिल्में इसलिए पसंद है क्योंकि ये मुझे प्रेरणा देती हैं. जैसे कि थ्री इडियट्स में ये देश भक्ति की भावना जागृत कराती है. हिंदी फिल्मों में भारत की महान विरासत परंपरा तथा संस्कृति की झलक भी कभी कभी देखने को मिलती है जैसे महाभारत या रामायण. इसलिए मुझे बॉलीवुड पसंद है. भैयालाल प्रजापति, ग्राम मरूफपुर, जिला चंदौली, उत्तर प्रदेश

1913 में प्रदर्शित दादा साहेब फाल्के की फिल्म राजा हरीश्चन्द्र भारतीय सिनेमा की पहली हिंदी फिल्म थी जिसने बॉलीवुड की बुनियाद डाली. 1931 में भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा ने तो भारतीय सिनेमा में एक क्रान्ति सी ला दी, सौ साल के इस सफर में आज बॉलीवुड शोहरत और बुलंदी की एक नयी इबारत लिख चुका है, जिसका प्रमाण राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति तथा हिंदी फिल्मों के प्रति दर्शकों की एक बड़ी दीवानगी का होना है. प्रेम-रोमांस, पारिवारिक, आर्थिक, समाजिक, ऐतिहासिक एवं देशभक्ति से परिपूर्ण हिंदी फिल्मों का आज दुनिया में कोई दूसरा सानी नहीं. वक्त के साथ बॉलीवुड में एक बड़ा बदलाव भी आया है, अश्लीलता परोसते आइटम सौंग्स और सैक्सी दृश्य हिन्दी फिल्मों की जरूरत सी बन गए हैं. यह एक कड़वा सच है कि इन्हीं के चलते अधिकतर फिल्में पारिवारिक महत्तव खोती जा रही हैं. परंतु पर्दे पर जीवंत किरदार, प्यार, समर्पण, खेल, ऐक्शन, कॉमेडी से भरे दृश्य घर बैठे देश-दुनियां के खूबसूरत नजारे बेहद खास लगते हैं, फिल्म की पृष्ठभूमि पर आधारित संगीत तो मानो हिंदी फिल्मों में जान ही फूंक देता है. हिंदी सिनेमा के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष में इन दिनों डीडब्ल्यू हिंदी की खास पेशकश काफी दिलचस्प और मालूमाती लग रही है. आबिद अली मंसूरी, पैग़ानगरी-मीरगंज, बरेली, उत्तर प्रदेश

आधुनिक हिंदी सिनेमा में पहले जहां हमे पारिवारिक फिल्में देखने को मिलती थी व कपडों में फूहड़ता नजर नहीं आती थी, वर्तमान में ऐसी पारिवारिक फिल्में जो घर में सभी के साथ बैठकर देखी जा सके सपनों के समान हो गयी हैं. अब तो फिल्में धूम धड़ाका, मारधाड़, भड़कीले डांस और बोरिंग लगती स्टोरी के साथ आती हैं. इससे हिंदी सिनेमा भले ही तरक्की कर रहा हो लेकिन दर्शकों को सामाजिक और पारिवारिक विषयों के आदर्शोँ से दूर किया जा रहा है. आज की फिल्में वास्तविकता से दूर और सभी वर्गों के लिए नहीं बन रही हैं. ऐसी फिल्में बच्चों को भी गलत तरीके से प्रभावित कर रही हैं. मैं उम्मीद करती हूं कि आने वाले समय में साफ सुथरी फिल्में अच्छे विषयों पर बनेंगी. प्रियांशु द्विवेदी, ग्राम सैदापुर, जिला अमेठी, उत्तर प्रदेश

Mughal-e-Azam ist ein indischer Spielfilm von Karimuddin Asif aus dem Jahr 1960. Er gehört zu den wichtigsten Werken des Hindi-Films.
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बचपन से ही मुझे हिंदी फिल्मों का काफी आकर्षण रहा है. उस समय मैं जो हिंदी फिल्में देखती थी, पूरा पैसा वसूल हो जाता था. इसके पीछे कारण था भावनात्मक फिल्मों का और सभी गीत सदाबहार होते थे. जो बात आम आदमी के लिए असंभव थी वह बात पर्दे पर हीरो संभव कर दिखाता था और साथ में दमदार डायलॉग्स जो फिल्मों को हिट बनाते थे. अब समय के साथ फिल्में भी बदल गयी हैं जिनकी कहानी में दम नहीं दिखता और अभी की फिल्मों में जो कुछ अच्छा लगता है वह सिर्फ कम्प्यूटरीकृत प्रभाव, मार धाड़ और हीरो हीरोइन के नए गीतों पर नए स्टाइल्स के डांस. सविता जावले, मार्कोनी डीएक्स क्लब, परली वैजनाथ, महाराष्ट्र

बालीवुड ने सिनेमा के हर दौर को देखा है. बिना आवाज वाली फिल्म से लेकर बोलती फिल्मों का दौर भी देखा है. आज आधुनिक दौर में नवीनतम टेक्नॉलोजी का प्रयोग हो रहा है जिससे एक से बढ़कर एक फिल्में लगातार बन रही हैं और बॉक्स ऑफिस पर लगातार अपना परचम लहरा रहा है. बालीवुड में हर तरह की फिल्मों की शूटिंग हो रही है चाहे वे राजनैतिक हो या सामाजिक या लव स्टोरी या हास्यप्रद. हर तरह की फिल्मों को भारतीय दर्शकों ने लगातार सराहा है. आज बालीवुड अपने पैरों पे खड़ा है. असलम जावेद, खगरिया, बिहार

खास बात ये लगती है कि यह अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बन गया है. आज हर विषय पर फिल्में बन रहीं है, हर तरह का दर्शक वर्ग उसे देख रहा है और प्रतिक्रिया दे रहा है. ज्वलंत समस्याओं पर आज फिल्मी मीडिया जितना मुखर हुआ है उतना पहले कभी नहीं रहा. आधुनिकता के नाम पर अश्लीलता भी भरपूर परोसी जा रही है. गीतों में से संवेदनशीलता एवं भावुकता निम्न स्तर पर जा रही है. संचार क्रांती ने जहां आधुनिकता को घरों तक पहुंचाया है उसमें आग में घी का काम फिल्म मिडिया भी कर रहा है. पारिवारिक फिल्मों का दौर लगभग समाप्त हो गया है. प्रतिदिन रिलिज होती फिल्मों के 100 गानों में से एक-दो ही ऐसे गानें होते है जिसे एक सामान्य व्यक्ति अपने परिवार के साथ देख सकता है. राहुल उज्जैनकर फराज, जबलपुर, मध्य प्रदेश

***Achtung: Nur zur Berichterstattung über diesen Film verwenden!*** Indian Bollywood personalities Tushar Kapoor, director Milan Luthria, actress Vidya Balan and producer Ekta Kapoor pose during the DVD release event for the Hindi film "The Dirty Picture" in Mumbai on January 30, 2012. AFP PHOTO/STR (Photo credit should read STRDEL/AFP/Getty Images)
तस्वीर: ALT Entertainment/Balaji Motion Pictures

बालीवुड में हमको खास नई फिल्म के बारे मे जानकारी मिलती है. अच्छे अच्छे गीत घर बैठे सुन सकते हैं. शाहरूख खान की अच्छी फिल्में काफी पसंद और खास लगती हैं. घर बैठे काम करते टीवी पर बालीवुड के गाने सुन कर फिल्मों के रंगीन चित्रों की तस्वीरे हमारे सामने आ जाती हैं. इसके अलावा बालीवुड फिल्म देखने से हमारा दिमाग व सिर ठंडा होता है. चेनाराम बारूपाल, गांव बुठ राठौड़ान, जिला बाड़मेर, राजस्थान

संकलनः विनोद चड्ढा

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन