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हर फिक्र को धुएं में....

३ दिसम्बर २०१४

बॉलीवुड के सदाबहार अभिनेता देव आनंद मुंबई आए तो हीरो बनने थे, लेकिन बड़े संघर्ष के बाद पहली नौकरी जो मिली उसमें सैनिकों के परिवारों को उनकी चिट्ठियां पढ़कर सुनाना था. फिर कैसे खुला फिल्मों का रास्ता...

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तस्वीर: AP

बॉलीवुड में लगभग छह दशक से दर्शकों के दिलों पर राज करने वाले देव आनंद को अदाकार बनने के ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा था. उनका जन्म 26 सिंतबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. देव आनंद ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर सरकारी कॉलेज में पूरी की. वह इसके आगे भी पढ़ना चाहते थे लेकिन उनके पिता ने साफ शब्दों में कह दिया कि उनके पास उन्हें पढ़ाने के लिए पैसे नहीं हैं और अगर वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी कर लें.

पहुंचे मुंबई

उन्होंने तय किया कि अगर नौकरी ही करनी है तो क्यों ना फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमाई जाए. वर्ष 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रूपये थे और रहने के लिए कोई ठिकाना नहीं. देव आनंद ने यहां पहुंचकर रेलवे स्टेशन के समीप ही एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया. उस कमरे में उनके साथ तीन और लोग भी रहते थे जो देव आनंद की तरह ही फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

कई दिन गुजर जाने पर लगा कि बगैर नौकरी के इस शहर में गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती. बहुत कोशिशों के बाद उन्हें मिलिट्री सेंसर ऑफिस में क्लर्क की नौकरी मिली. यहां उन्हें सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था. उन्हें 165 रूपये मासिक वेतन मिलता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे. लगभग एक वर्ष तक वहां नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उस समय भारतीय जन नाट्य संघ 'इप्टा' से जुड़े हुए थे. उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया. इस बीच देव आनंद ने नाटकों में छोटे मोटे रोल किए.

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तस्वीर: AP

फिल्मी सफर की शुरुआत

वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म 'हम एक हैं' से बतौर अभिनेता देव आनंद ने अपने सिने करियर की शुरूआत की. 1948 में प्रदर्शित फिल्म 'जिद्दी' देव आनंद के फिल्मी कैरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई. इस फिल्म की कामयाबी के साथ ही उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की.

नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म अफसर का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने चेतन आनंद को सौंपी. गुरूदत्त के निर्देशन में बनी फिल्म बाजी की सफलता के बाद देव आनंद फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर अभिनेताओं की लिस्ट में शुमार हो गए.

प्रेम और शादी

फिल्म अफसर के निर्माण के दौरान देव आनंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था. एक गाने की शूटिंग के दौरान देव आनंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई. देव आनंद ने सुरैया को डूबने से बचाया. इसके बाद सुरैया देव आनंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं. लेकिन सुरैया की नानी ने इस रिस्ते के लिए हामी न भरी और यह दास्तां यहीं खत्म हो गई. वर्ष 1954 में देव आनंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली.

सफल निर्माता और निर्देशक

देव आनंद प्रख्यात उपन्यासकार आरके नारायण से काफी प्रभावित थे और उनके उपन्यास 'गाइड' पर फिल्म बनाना चाहते थे. उन्होंने हॉलीवुड के सहयोग से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फिल्म गाइड का निर्माण किया जो उनके सिने कैरियर की पहली रंगीन फिल्म थी. इस फिल्म के लिए देव आनंद को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया. बतौर निर्माता देव आनंद ने कई फिल्में बनाईं. इन फिल्मों में हमसफर, टैक्सी ड्राइवर, हाउस न. 44, फंटूश, कालापानी, काला बाजार, हम दोनों, तेरे मेरे सपने, गाइड और ज्वेल थीफ जैसी कई मशहूर फिल्में शामिल हैं.

वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देव आनंद ने निर्देशन के क्षेत्र मे भी कदम रख दिया. हालांकि यह फिल्म बाक्स आफिस पर मुंह के बल गिरी. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कष्णा का भी निर्देशन किया जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंने हीरा पन्ना, देश परदेस, लूटमार, स्वामी दादा, सच्चे का बोलबाला और अव्वल नंबर समेत कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया.

जिंदादिली की मिसाल

देव आनंद को सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वर्ष 2001 में एक ओर जहां देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ. वर्ष 2002 में हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. अपनी फिल्मों से दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनाने वाले महान फिल्मकार देव आनंद 03 दिसंबर 2011 को इस दुनिया को अलविदा कह गए. लेकिन आखिरी दम तक उनमें हौसले और आगे काम करते रहने के जोश की कोई कमी नहीं थी.

एसएफ/एमजे (वार्ता)