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हद लांघने की छूट नहीं देती राजनयिकों की उन्मुक्ति

निर्मल यादव९ सितम्बर २०१५

दूसरे देशों में काम करने वाले राजनयिकों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं. अक्सर इन अधिकारों के दुरूपयोग के मामले सामने आते हैं. इसका एक मात्र कारण है अपने दायित्व की अनिवार्यता को भूलना.

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तस्वीर: picture alliance / Photoshot

विशेषाधिकार के दुरूपयोग का ताजा मामला भारत में सामने आया है. इसमें सऊदी अरब के राजनयिकों पर नेपाल की महिलाओं के यौन शोषण का आरोप लगाया गया है. दरअसल इस मामले की पेचीदगी ही इसके चर्चा में आने का कारण भी बनी है. मामले के तथ्य एवं परिस्थितियां साफ कर रहे हैं कि इसमें राजनयिक उन्मुक्ति मिलने का ठोस आधार नहीं बनता. सउदी अरब के राजनयिकों पर दिल्ली स्थित दूतावास के बजाय पड़ोसी राज्य हरियाणा के गुड़गांव में निजी आवास में अपराध करने का आरोप है. वह भी दूसरे देश की महिलाओं के साथ चार महीने तक बंदी बना कर सामूहिक बलात्कार का आरोप वाकई में चौंकाने वाला है. मामले की जटिलता का मुख्य आधार इसमें तीन देशों का क्षेत्राधिकार शामिल होना है.

क्या कहता है कानून
ऐसे में कुछ सवालों पर बहस तो हो सकती है लेकिन कुछ बिल्कुल साफ हैं. पहला सवाल क्षेत्राधिकार का है और दूसरा राजनयिक उन्मुक्ति का. कम से कम इस मामले में राजनयिक उन्मुक्ति का कोई आधार ही नहीं बनता. अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी भी राजनयिक को उन्मुक्ति के विशेषाधिकार का लाभ तभी मिलता है जब उससे राजनयिक दायित्व की पूर्ति के दौरान किसी कानून का उल्लंघन हो जाए. ऐसे में अपराध दूतावास में होने पर संबद्ध देश का कानून प्रभावी होता है और दूतावास से बाहर होने पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत मामले का निपटारा होता है. हाल ही में इटली के नौसैनिकों के मामले में भी भारत सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय कानून की प्रभावी भूमिका साबित हो चुकी है. यही वजह है कि दिल्ली पुलिस ने इस मामले में तत्काल मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. हांलाकि आरोपी राजनयिकों की हिरासत में अदालत का दखल अंतरराष्ट्रीय कानून की अनिवार्यता का परिणाम माना जाता है.

अभी नहीं तो कभी नहीं

दूसरा सवाल क्षेत्राधिकार का है, जिसमें नेपाल के नागरिकों का पीड़ित पक्षकार होने के कारण नेपाल अपने कानून के मुताबिक मामले की सुनवाई करने की मांग कर सकता है. वही अपराध भारत में होने का हवाला देकर भारत अपने कानून के तहत मामले की जांच का दावा कर रहा है. ऐसे में भारतीय पुलिस स्थानीयता के आधार पर सबूत आदि जुटाने में सहूलियत का हवाला देकर जांच का अधिकार अपने पास रख सकती है. इसमें नेपाल के साथ आपसी सहमति कारगर हथियार साबित हो सकती है. जिसकी प्रबल संभावना भी है. इसके अलावा इस मामले में अंतरराष्ट्रीय दखल का एकमात्र आधार अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हवाले से बन सकता है. इसमें विदेशी महिला के साथ किसी अन्य देश के राजनयिक द्वारा किसी अन्य देश में बंदी बनाकर यौन शोषण करना मानवाधिकार आयोग के दखल को आमंत्रित कर सकता है. हालांकि इतने स्पष्ट मामले में इसकी संभावना कम ही होती है.

कुल मिलाकर मामले की गंभीरता अंतरराष्ट्रीय जमात के लिए एक बड़ी चुनौती से कम नहीं है. इस पर 'अभी नहीं तो कभी नहीं' की तर्ज पर काम करना न सिर्फ भारत और नेपाल की जिम्मेदारी है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर सक्रियता दिखाने का साहस दिखाना होगा. महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने में यह मामला नजीर बन सकता है.

ब्लॉग: निर्मल यादव