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स्वच्छ भारत का सच

कुलदीप कुमार२७ अक्टूबर २०१४

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मोर्चे के सांसदों से स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाने को कहा है. कुलदीप कुमार का कहना है कि जब तक कचरा प्रबंधन की संरचना नहीं बनती स्थायी स्वच्छता संभव नहीं.

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तस्वीर: picture alliance / dpa

एक समय था जब भारतीय जनता पार्टी सार्वजनिक जीवन में शुचिता की बात किया करती थी. अब उसके करिश्माई व्यक्तित्व वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सार्वजनिक स्थलों में शुचिता की बात कर रहे हैं. पिछले कुछ समय से लगातार वे हर भाषण में और हर अवसर पर स्वच्छता अभियान पर जोर दे रहे हैं. दीवाली मिलन समारोह में पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने उन्हें स्वच्छता अभियान का समर्थन करने के लिए धन्यवाद दिया और अपनी कलम को “झाड़ू” में बदलने के लिए बधाई दी. इसके बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सांसदों को ऐसे ही एक दीवाली मिलन समारोह में संबोधित करते हुए (मोदी हमेशा संबोधित करते हैं, कभी संबोधित होते नहीं) उन्होंने उनका आह्वान किया कि वे स्वच्छता अभियान को अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में आगे बढ़ाएं.

भारत के गांवों, कस्बों और शहरों में सफाई बढ़े और गंदगी कम हो, इससे भला किसे आपत्ति हो सकती है? यदि ऐसा हो जाए तो भारत की कायापलट हो जाएगी. लेकिन सवाल यह है कि एक सुंदर सपना देखने के बाद क्या केवल उसका प्रचार करना भर ही पर्याप्त है? क्या यह देखना सरकार और उसके प्रधानमंत्री का कर्तव्य नहीं कि इस सपने को साकार कैसे किया जाएगा? क्या उसके लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं? और यदि नहीं हैं, तो उन्हें किस तरह उपलब्ध किया जा सकता है?

इस समय स्थिति यह है कि सिर पर मैला ढोना गैर कानूनी है, लेकिन आज भी देश के अनेक स्थानों में यही प्रथा जारी है. यदि इस प्रथा को समाप्त करना है, तो कूड़ा-कचरा इकट्ठा करने और उसे गांव या शहर के बाहर किसी एक स्थान पर फेंकने के बाद उससे छुटकारा पाने के लिए आवश्यक आधुनिक उपकरणों और तकनीकी को अपनाना पड़ेगा. इस काम के लिए अधिकांश नगरपालिकाओं और पंचायतों के पास धन नहीं है.

वास्तविकता यह है कि आज भी देश में ऐसे गांवों और कस्बों की संख्या कम नहीं है जहां स्कूलों के लिए इमारतें नहीं हैं और कक्षाएं खुले में लगती हैं. अब जहां स्कूल की बिल्डिंग ही नहीं है, वहां विद्यार्थियों के लिए शौचालय की व्यवस्था क्या होगी? और शौचालय के बिना स्वच्छता की कल्पना भी कैसे की जा सकती है? आज भी नदियों का प्रदूषण रोकने या कम करने के लिए सरकार कोई कारगर योजना नहीं बना सकी है. भले ही गंगा की सफाई के नाम पर सैंकड़ों अरब रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन गंगा का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि प्रधानमंत्री मोदी स्वच्छता अभियान के प्रति स्वयं गंभीरता दिखाएं और ऐसी कारगर योजनाएं बनवा कर उन पर अमल करवाएं जिनसे गंदगी कम हो.

यह सभी जानते हैं कि सफाई एक दिन का काम नहीं है. सफाई जब तक आदत का हिस्सा नहीं बन जाती तब तक गंदगी वापस लौटती रहेगी. स्वच्छता अभियान यदि एक बार सफल भी हो गया, तो भी देश में स्वच्छता टिकी नहीं रह पाएगी यदि सफाई हमारे निजी और सार्वजनिक जीवन का अभिन्न अंग नहीं बन जाती. नगरपालिकाएं और अन्य सरकारी एजेंसियां जब तक सफाई को सुनिश्चित करने के प्रति गंभीर नहीं होतीं और उसके लिए आवश्यक धन एवं अन्य संसाधन नहीं जुटातीं, तब तक स्थायी स्वच्छता की उम्मीद नहीं की जा सकती.

शुचिता केवल काया की ही नहीं, मन-वचन-कर्म की भी होती है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें आरोप लगाया गया है कि पिछले पांच माह के दौरान मोदी सरकार के कई मंत्रियों की संपत्ति में दस करोड़ रुपए या उससे भी अधिक की वृद्धि हुई है. जब तक देश के सार्वजनिक जीवन से गंदगी साफ नहीं की जाएगी, तब तक स्वच्छता अभियान को सफल नहीं कहा जा सकेगा.

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