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स्कूलों में यौन शिक्षा से अंकुश संभव

२४ अगस्त २०१५

कम उम्र में यौन संबंध बनाने वाले किशोर-किशोरियों की लगातार बढ़ती तादाद ने अभिभावकों को चिंता में डाल दिया है. प्रभाकर का कहना है कि किशोरों में यौन संबंधों से पैदा होने वाली समस्याओं पर अंकुश के लिए यौन शिक्षा जरूरी है.

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यौन शिक्षा पर वर्कशॉपतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari

किशोरों को कुप्रभावों से बचाने के लिए जहां एक बार फिर स्कूली पाठ्यक्रमों में यौन शिक्षा को शामिल करने की बहस तेज हो रही है, वहीं इंटरनेट की आसान पहुंच के मौजूदा दौर में युवा पीढ़ी को कम उम्र में बने यौन संबंधों के दुष्परिणामों की प्रति सचेत करने के उपायों पर भी विचार-विमर्श शुरू हो गया है. ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक, देश में 14 साल की उम्र में ही ज्यादातर किशोर यौन संबंधों का आनंद ले चुके होते हैं. किशोरियों में इसकी औसत उम्र 16 साल है. इंटरनेट पर मौजूद पोर्नोग्राफी तक आसान पहुंच की वजह से बेहद कम उम्र में ही बच्चों को सेक्स से संबंधित तमाम सामग्री उपलब्ध है. विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादातर युवा इंटरनेट पर मौजूद सामग्री देखने के बाद दिलचस्पी की वजह से पहली बार यौन संबंध बनाते हैं. लेकिन उनको इसके दुष्परिणामों की जानकारी नहीं होती. नतीजतन कई लोग कम उम्र में ही संक्रामक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाल में सरकार ने जब आठ सौ से ज्यादा अश्लील वेबसाइटों को ब्लॉक कर दिया था तब इस पर काफी हो-हल्ला मचा था. आखिर में कुछ साइटों को छोड़ कर सरकार ने बाकी से पाबंदी हटा ली थी. घर-घर कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट और स्मार्टफोन से यह समस्या और जटिल हुई है. खासकर स्मार्टफोन तो अब ज्यादातर शहरी बच्चों के हाथों में होता है. शहर तो दूर, अब कस्बों और देहातों में स्मार्टफोन के चीनी संस्करणों ने युवा पीढ़ी की पहुंच इन वेबसाइटों तक बना दी है. लगातार सस्ते होते इंटरनेट ने इस समस्या को और जटिल कर दिया है. पहले इसके लिए युवा पीढ़ी को यौन सामग्री के लिए ब्लू फिल्मों की सीडी का सहारा लेना पड़ता था. लेकिन उसमें तमाम दिक्कतें थीं. उसे चलाने के लिए सीडी प्लेयर जरूरी था. अब स्मार्टफोन, टेबलेट और इंटरनेट की तिकड़ी ने वह समस्या दूर कर दी है.

समस्या यह है कि इस पर अंकुश लगाने का कोई उपाय भी अभिभावकों के पास नहीं है. स्मार्टफोन में डाटा पैकेज भरने के बाद दुनिया के तमाम अश्लील साइटों तक पहुंचने के लिए बस एक बटन दबाने की जरूरत है. व्यस्त जिंदगी के मौजूदा दौर में अभिभावकों के पास इतना समय भी नहीं होता कि वह अपने बच्चे की हर गतिविधि पर निगाह रख सके. पहले घर के कंप्यूटर पर कुछ वेबसाइटों को ब्लॉक कर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाना संभव था. लेकिन टेबलेट और स्मार्टफोन की बहुतायत ने वह उपाय अभिभावकों से छीन लिया है.

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि किशोरावस्था में तमाम युवक-युवतियां अपने मित्रों-सहपाठियों की देखादेखी प्रयोग के तौर यौन संबंध बनाते हैं. धीरे-धीरे यह सामान्य हो जाता है. लेकिन इंटरनेट पर कहीं उनको यह सलाह नहीं मिलती कि उसके दुष्परिमाणों से कैसे बचा जाए. उसी की वजह से समस्या धीरे-धीरे गंभीर होती जा रही है. ज्ञान की कमी, सामाजिक संकोच और चौबीसों घंटे इंटरनेट पर बने रहने की वजह से उनको कम उम्र में बने यौन संबंधों से होने वाली बीमारियों के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल पाती. यौन रोग विशेषज्ञ डा. भुवन चंद्र दास कहते हैं, ‘समाज चाहे कितना भी आधुनिक हो रहा हो, भारत में अभी माता-पिता अपने बच्चों से सीधे यौन संबंधों के बारे में बात नहीं कर पाते.' वह कहते हैं कि इसके लिए किशोरों को यौन संबंधों के बारे में सही ज्ञान देना जरूरी है और यह काम तभी हो सकता है जब यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल कर दिया जाए. इससे उनको यौन संबंधों के विभिन्न पहलुओं के बारे में सही ज्ञान मिल सकेगा. इससे उनकी कई जिज्ञासाएं भी अपने-आप शांत हो सकती हैं. मनोवैज्ञानिक डा. सोहिनी चटर्जी का भी मत है कि अभिभावकों व सरकार को यह बात समझनी होगी कि सुरक्षित यौन संबंधों के बारे में युवा पीढ़ी को सचेत करने के लिए स्कूलों में यौन शिक्षा जरूरी है.

भारत में पहले भी स्कूलों में यौन शिक्षा के मुद्दे पर बहस होती रही है. लेकिन हर बार विरोध की वजह से यह मुद्दा ठंढे बस्ते में चला जाता है. अब ताजा सर्वेक्षणों और अध्ययनों के नतीजों को ध्यान में रखते हुए युवा पीढ़ी को असुरक्षित और कम उम्र में बनने वाले यौन संबंधों के दुष्परिणामों से बचाने के लिए इसे स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने के बारे में ठोस फैसला करने का सही समय शायद आ गया है. इससे बच्चों को यौन संबंध बनाने की सही उम्र की जानकारी तो मिलेगी ही, असुरक्षित संबंधों के दुष्परिणामों और उससे बचाव के उपायों के बारे में भी समुचित जानकारी भी दी जा सकती है. इसमें अब और ज्यादा देरी होने पर नतीजे भयावह हो सकते हैं. लेकिन इसके लिए समाज के साथ ही सरकार को भी एक मजबूत इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा.

ब्लॉगः प्रभाकर