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सुरक्षा हो सरकार की प्राथमिकता

४ जून २०१४

कैबिनेट में महिलाओं को एक चौथाई जगह देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहनीय काम किया है, लेकिन भारत की नई सरकार पर महिलाओं को सुरक्षा और सार्वजनिक जीवन में हिस्सेदारी देने की चुनौती है.

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Sushma Swaraj
तस्वीर: AP

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में महिलाओं के हक में दो सराहनीय कदम उठाए हैं. एक तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट में महिलाओं को लगभग 25 फीसदी प्रतिनिधित्व दिया है. इस समय उनके 45 सदस्यों वाले मंत्रिमंडल में सात महिलाएं हैं. उन्हें विदेश मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय जैसे शीर्ष पद मिले हैं जो इस ओर इशारा करता है कि देश की भावी विदेश, सुरक्षा और राष्ट्रीय नीतियों में महिलाओं की भी अहम भूमिका होगी.

दूसरा अहम कदम महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को कैबिनेट का दर्जा देना है. यूपीए की पिछली सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री को राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का दर्जा प्राप्त था. अब कैबिनेट रैंक मिलने से उम्मीद की जा सकती है की यह विभाग प्रभावशाली भूमिका निभाएगा और महिलाओं के मुद्दों पर सरकार का ज्यादा ध्यान खींच सकेगा.

राजनीति में हिस्सेदारी

निश्चित ही ये शुरूआती कदम सकारात्मक हैं. लेकिन व्यापक महिला सशक्तिकरण के लिए मोदी सरकार को और कदम उठाने की जरूरत है. काफी समय से लंबित महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए. भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी घोषणापत्र में इस बात का उल्लेख किया है कि पार्टी संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के 33 प्रतिशत आरक्षण के हक में है. चूंकि अब भाजपा के नेतृत्व वाली यह सरकार बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आई है तो महिला आरक्षण बिल पारित कर कानून बनाने में उसे कुछ खास कठिनाई नहीं होनी चाहिए. उम्मीद की जा सकती है की मोदी सरकार इस ओर जल्द कदम उठा कर राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी.

दूसरा बड़ा मुद्दा महिला सुरक्षा का है. देश में महिलाओं के विरूद्ध हिंसा और यौन उत्पीड़न के मामले इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं कि इन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. उत्तर प्रदेश में बलात्कार और हत्या की ताजा घटनाओं ने इस समस्या को फिर से उभारा है. भाजपा के नेताओं ने चुनावी भाषणों में मतदाताओं से वादा किया था कि वे महिला सुरक्षा के लिए पुख्ता कदम उठाएंगे. अब जब उनकी सरकार बन गई है तो इस मुद्दे पर बिना देर किये कदम उठाए जाने चाहिए ताकि देश की आधी आबादी बेखौफ जी सके. इसके अलावा जरूरी है कि सरकार बेहतर पुलिस व्यवस्था और फास्ट ट्रैक अदालतों के अलावा पीड़ितों की कॉन्सलिंग और पुनर्वास के लिए ज्यादा संसाधन मुहैया कराए.

अंदर से विरोध

यह काम आसान नहीं होगा. भारतीय जनता पार्टी के समर्थक संगठन जैसे कि दक्षिणपंथी विचारधारा वाले कई गुट, धर्म गुरु और नेता पितृसत्तात्मक सोच रखते हैं और महिलाओं को मां, बहन और पत्नी की परंपरागत भूमिका में देखना पसंद करते हैं. वे 'मोरल पोलिसिंग' के हक में रहते हैं, और महिलाओं के पहनावे, जीवन शैली और आजादी को उनके खिलाफ हो रही हिंसा के लिए दोषी मानते हैं. इस प्रकार के संगठनों और नेताओं की महिलाओं की सुरक्षा की नीति बनाने में क्या भूमिका होगी यह अभी स्पष्ट नहीं है. पर चूंकि प्रधानमंत्री मोदी जनता से विकास और सुशासन के नाम पर वोट लेकर आए हैं, तो उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे ऐसी विचारधाराओं से ऊपर उठकर सोचेंगे.

किसी भी राष्ट्र के विकास में शिक्षा और स्वास्थ्य का योगदान अहम है. महिलाओं की उन्नति के लिए भी उनका शिक्षित और स्वस्थ होना अनिवार्य है. तभी एक बेहतर समाज बन सकता है. 2011 के जनगणना के अनुसार कुल 65 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं. जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 80 फीसदी के करीब है. इस अंतर को जल्द कम करने की आवश्यकता है. सरकार को लड़कियों की शिक्षा और शिक्षण संस्थानों तक पहुंच बढ़ाने के लिए संसाधनों, स्कूल-कालेजों की संख्या और स्कॉलरशिप्स बढ़ाने होंगे और ध्यान देना होगा कि प्राप्त हो रही शिक्षा का स्तर ऐसा हो कि आगे चल कर महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर खुल सकें.

स्वास्थ्य और शिक्षा

महिलाओं के स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो स्थिति काफी चिंताजनक है. पिछली सरकारों की तमाम योजनाओं और कोशिशों के बावजूद लिंग अनुपात घटने, कन्या भ्रूणहत्या, कुपोषण और मातृ मृत्यु के मामले बढ़ने का सिलसिला जारी है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु में दुनिया भर में भारत सबसे ऊपर है. ऐसे में सरकार को महिला स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं पर फोकस करने की आवयश्कता है.

भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान उन राज्यों को रोल मॉडल बनाकर पेश किया जहां उसकी सरकारें हैं. लेकिन मध्यप्रदेश, गुजरात और राजस्थान जैसे इन प्रदेशों में भी महिलाएं शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी पीछे हैं. इसलिए जरूरी है कि नई केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय नीति के तहत इन मुद्दों पर काम करें. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को खासकर इसमें सभी सरकारी, गैर सरकारी महिला संस्थाओं, कार्यकर्ताओं और राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ समन्वय स्थापित कर सक्रियता से काम करना होगा.

ब्लॉग: दिशा उप्पल

संपादन: महेश झा