सीवीसी ने कोर्ट को अपनी छवि बेदाग बताई
१ फ़रवरी २०११थॉमस ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार में सचिव के पद पर नियुक्ति के बाद से ही उन्होंने सीवीसी के पद के लिए जरूरी मानदंडों को पूरा किया. उनके मुताबिक जिन नौकरशाहों को शॉर्टलिस्ट किया गया उनमें वह सबसे वरिष्ठ थे और उनमें से सिर्फ उन्होंने ही मुख्य सचिव के रूप में काम किया है.
थॉमस की दलील है कि उन्हें केंद्रीय सतर्कता आयोग से हरी झंडी भी मिल गई थी ताकि सीवीसी पर उनकी नियुक्ति हो सके. पॉमोलीन ऑयल आयात केस में उनके खिलाफ मुकदमे को उस समय तक अनुमति नहीं मिली थी.
थॉमस ने बताया कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कथित मामले की फाइल सीवीसी नियुक्त करने वाले पैनल के पास भेजे जाने या न भेजे जाने का कोई संबंध उनकी नियुक्ति से नहीं है. "मैं कहना चाहता हूं कि तीन सदस्यीय समिति के सामने जांच संबंधी जो दस्तावेज रखे गए वे प्रासंगिक नहीं हैं क्योंकि शॉर्टलिस्ट होने वाले सभी नौकरशाह, सचिव पद पर काम कर चुके थे. सचिव पद पर नियुक्ति की शर्त ही यही है कि अधिकारी बेदाग छवि का हो.
केंद्रीय सरकार में सचिव पद पर काम करते समय माना जाता है कि अधिकारियों के पास गृह, विदेश, वित्त और कानून मंत्रालय की संवेदनशील जानकारी होगी और इसलिए वे ट्राइब्यूनल के चेयरमैन की जिम्मेदारी संभालने के लिए फिट हैं."
वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने सीवी थॉमस की ओर से 12 पन्नों का हलफनामा अदालत में दाखिल किया है. इसमें कहा गया है कि जब सचिव पद के लिए नाम शॉर्टलिस्ट किया जाता है तो सतर्कता विभाग की हरी झंडी जरूरी है. सतर्कता विभाग से 1972 और 1973 के बैच के पीजे थॉमस सहित करीब 9 आईएएस अधिकारियों की क्लीयरेंस मांगी गई.
पीजे थॉमस का नाम एक चार्जशीट में लिया गया है. केरल में उनके सचिव पद पर रहते समय करोड़ों रुपये का पॉमोलीन आयात घोटाला हुआ. सीवीसी की नियुक्ति के दौरान बेदाग छवि के सवाल पर विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई लेकिन सरकार ने थॉमस को ही नियुक्त करने का फैसला लिया. अब सुप्रीम कोर्ट के सामने सरकार और थॉमस को कड़े सवालों का सामना करना पड़ रहा है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ओ सिंह