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सीरिया विवाद में आ रहा है नया मोड़

९ फ़रवरी २०१६

सीरियाई गृहयुद्ध ने अलेप्पो पर हमलों के बाद नया मोड़ ले लिया है. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि पश्चिमी देशों की उम्मीदों के विपरीत ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति बशर अल असद देश के भविष्य की बातचीत का हिस्सा होंगे.

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तस्वीर: picture-alliance/landov/al-Halbi

सीरिया के गृहयुद्ध में हाल के दिनों में कई घटनाएं महत्वपूर्ण लगती हैं. पहला तो दमिश्क शासन के पक्ष में रूस के व्यापक हस्तक्षेप के बाद भड़की लड़ाई में सालों में पहली बार राष्ट्रपति असद का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है. जेनेवा शांति वार्ताएं स्थगित कर दी गई हैं. तानाशाह असद के पास बातचीत के लिए फिलहाल कोई वजह नहीं दिखती. रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी साफ कर दिया है कि असद को उनका समर्थन है. यह रूस की परंपरागत मध्य पूर्व नीति की लाइन पर है और ईरान भी इसका स्वागत करेगा. असद अब खुद को फिर से सीरिया के भविष्य का हिस्सा देखने लगे हैं.

दूसरे, अलेप्पो पर रूसी बमबारी के बाद लोगों के भागने का एक और दौर शुरू हो गया है. तुर्की की सीमा पर हजारों शरणार्थी तुर्की में घुसने का इंतजार कर रहे हैं. यदि उन्हें घुसने की अनुमति मिलती है तो वे बालकान रास्ते से यूरोप के देशों में आएंगे और ऐसी मानवीय त्रासदी पैदा करेंगे जिससे निबटने में यूरोप सक्षम नहीं है. पहले ही पिछले साल आए दस लाख शरणार्थी खुली सीमा की शेंगेन संधि को खतरे में डाल रहे हैं. पूर्वी यूरोप के कुछ देशों ने साफ कर दिया है कि वे यूरोपीय स्तर पर इस समस्या के समाधान के पक्ष में नहीं हैं. शरणार्थी संकट का ब्रिटेन की ईयू सदस्यता की बहस पर भी असर पड़ रहा है और इसके चलते ब्रिटेन ईयू से बाहर जाने का फैसला कर सकता है. यूरोपीय संघ के भविष्य पर ही प्रश्न चिह्न लगता नजर आ रहा है.

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस खतरे को पहचाना है और सुधारों का एक पैकेज तैयार करने में मदद दी है ताकि ब्रिटेन के लिए ईयू में रहने का रास्ता आसान हो सके. यदि इस साल गर्मियों में जनमत संग्रह होता है तो आने वाले महीने महत्वपूर्ण हैं. मैर्केल को पता है कि यदि शरणार्थी संकट जारी रहता है तो ब्रिटेन में ईयू विरोधी कैंप को फायदा होगा. उन्हें ये भी पता है कि ईयू में जर्मन नागरिकों के भरोसे को बहाल करने और बढ़ते घरेलू विरोध के बीच अपनी कुर्सी बचाने के लिए भी शरणार्थी समस्या पर काबू पाना जरूरी है. मार्च में होने वाले क्षेत्रीय चुनावों में उनकी पार्टी का खराब प्रदर्शन अगले साल के संसदीय चुनावों के पहले उनके लिए भी खतरे की घंटी हो सकती है.

इसी पृष्ठभूमि में जर्मन चांसलर ने तुर्की का दौरा किया है ताकि वित्तीय मदद के बदले शरणार्थियों को तुर्की में रोकने की संधि हो सके. लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तय्यर एरदोवान को पता है कि उनके हाथों में अच्छे पत्ते हैं और वे ईयू पर दबाव बनाए रखने की कोशिश करेंगे. शरणार्थी समस्या का हल तुर्की में नहीं है.

पश्चिमी देश इस्लामी स्टेट के ठिकानों पर लगातार हमला कर रहे हैं और सोच रहे हैं कि शांति प्रक्रिया से सीरिया में असद के बिना लोकतांत्रिक शुरुआत हो सकेगी. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और दूसरे पश्चिमी देशों ने सैनिक हस्तक्षेप की संभावना से इंकार किया है. इसमें फायदे से ज्यादा जोखिम है. कोई भी 2003 के इराक युद्ध के नतीजों को नहीं भूला है. इसलिए जबकि पश्चिम दूर से देख रहा है और उसे देश में शांति लाने और शरणार्थियों की बाढ़ को रोकने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है, सीरिया के भविष्य का फैसला रूस के हाथों है. पुतिन के बमवर्षक आईएस पर उसी ताकत के साथ हमला करेंगे जिसके साथ उसने अब तक विपक्षी दलों पर किया है. इसके परिणामस्वरूप असद की सेना को खोए इलाकों पर फिर से कब्जा करने का मौका मिलेगा. और अंत में असद और उनके रूसी तथा ईरानी साथी इस विवाद के विजेता बनकर उभरेंगे. लेकिन हार सीरिया की जनता की होगी.

ब्लॉग: ग्रैहम लूकस