सिल्क रूट का रोमांचक सफर
सैकड़ों साल तक यूरोप और एशिया के बीच सिल्क रूट के जरिये कारोबार होता रहा. अब यह रास्ता सीमाओं की भेंट चढ़ गया है. लेकिन एक जर्मन जोड़े ने सिल्क रूट को दुनिया के सामने लाने का फैसला किया. देखिये भारत तक उनका यादगार सफर.
गाड़ी में सब कुछ
जर्मनी की राजधानी बर्लिन की ये घुम्मकड़ जोड़ी अब तक कहां कहां गई है, इसका पता उनकी गाड़ी से चल जाता है. गाड़ी में उन देशों के झंडे और भाषा लिखी है. आंद्रेयास ब्लेएजे और उटे फोगल ने 1,00,000 किलोमीटर का यह सफर पांच साल में पूरा किया.
आधे ग्लोब का चक्कर
उटे और आंद्रेयास सबसे पहले बर्लिन से पोलैंड गए. फिर वहां से रूस, मंगोलिया, ईरान और चीन पहुंचे. यह तस्वीर चीनी सीमा पर ली गई. पूरी यात्रा के दौरान उन्होंने 24 देश में सफर किया.
अक्साई चीन की झलक
चीन पार कर यह जोड़ी पाकिस्तान में दाखिल हुई. यह चीन का आखिरी मील का पत्थर है. इसके बाद बफर जोन शुरू होता है.
जबरदस्त नजारे
आंद्रेयास और उटे के मुताबिक पूरी यात्रा के दौरान सैकड़ों बार उन्हें इतने जबरदस्त नजारे दिखे कि उनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. उन नजारों में से एक यह भी है.
और पाकिस्तान में एंट्री
काराकोरम दर्रे को पार करने के बाद यह जोड़ी पाकिस्तान में दाखिल हुई. जरूरी दस्तावेज दिखाने के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने उनके लिए गेट खोला.
मजा भी मुश्किलें भी
कहीं मैदान तो कहीं पहाड़, कभी बारिश तो कभी तूफान, ऐसी तमाम बाधाएं भी इस जोड़ी की हिम्मत न तोड़ सकीं. सफर जारी रहा.
नाव पर सफर
बेहद पिछड़े माने जाने वाले पाकिस्तान के हिमालयी इलाके में उन्हें नाव का सहारा भी लेना पड़ा. कुछ झीलें ऐसे ही पार की गईं.
इंसानियत का रिश्ता
भाषा और संस्कृति एक न हो के बावजूद स्थानीय लोगों ने उनकी बड़ी मदद की. जर्मन जोड़ी के मुताबिक तंग हालात में जीने के बावजूद लोगों का व्यवहार बेहद प्यार भरा था.
आ गया स्कूल
ये दोनों सैलानी सरगोदा के पास एक स्कूल को वित्तीय मदद भी दे रहे हैं. जोड़ी बच्चों के लिए कुछ तोहफे भी लेकर गई.
गांव से रिश्ता
स्कूल में बच्चियों की पढ़ाई के अलावा आंद्रेआस और उटे स्थानीय महिलाओं की भी मदद कर रहे हैं. सिलाई मशीन के जरिये वे उन्हें आत्मनिर्भर बना रहे हैं.
पाकिस्तान से भारत
पाकिस्तान में कुछ दिन बिताने के बाद आंद्रेयास और उटे बाघा बॉर्डर पार कर भारत पहुंचे. भारत का पूरा चक्कर लगाने बाद उटे और आंद्रेयास नेपाल, चीन, मंगोलिया और कजाखस्तान होते हुए जर्मनी लौटे.