"सिखाने का तरीका सीखो"
२७ फ़रवरी २०१३उनका नाम है सुगाता मित्रा. पेशे से भौतिक विज्ञानी लेकिन जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा उन्होंने झुग्गी के बच्चों को पढ़ाने के नाम कर दिया. आमेरिका में साइंस की प्रतिष्ठित संस्था टेड ने कैलिफोर्निया में उन्हें सम्मानित किया. वह बच्चों को बिना किसी झिझक के पढ़ने का मौका देना चाहते हैं.
उनकी यह करामाती तरकीब 1999 में शुरू हुई, जब उन्होंने दिल्ली में एक झुग्गी वाले इलाके में एक कंप्यूटर लगाया, यह देखने के लिए कि बच्चे उसके साथ क्या करते हैं. अपना प्रोजेक्ट शुरू करते वक्त मित्रा ने कहा, "मैंने भेड़ियों के बीच यह चीज रखी थी. मुझे मालूम था कि तोड़ फोड़ कर इसका कबाड़ा निकाल दिया जाएगा और इसे बेच दिया जाएगा."
उन दिन को याद करते हुए वह रोमांचित हो जाते हैं, "सिर्फ आठ घंटे बाद जब मैं लौटा, तो देखा कि बच्चे अंग्रेजी में इंटरनेट ब्राउज कर रहे हैं. मुझे अहसास हुआ कि गलती से ही सही, मैंने कुछ अनोखा कर दिया है."
भौतिक विज्ञानी से शिक्षाविद बने मित्रा ने बच्चों को पढ़ाने और सिखाने का ऐसा तरीका निकाला है, जिसका कई देशों ने बाद में इस्तेमाल किया. सभी समुदायों को एक ही नतीजा मिलाः बच्चों को अगर इंटरनेट की पहुंच मिल जाए, तो वह अपनी शिक्षा का तरीका खुद निकाल सकते हैं, बशर्ते कि बड़े उनकी राह में न आएं.
मित्रा का कहना है, "वे मशीन के आस पास झुंड बना लेते हैं. इसके बाद आप चुपचाप बैठ कर देखते रहें. आप उन्हें जितना शांति के साथ लाइन में बैठने को कहेंगे, उनके बीच झगड़े की संभावना उतनी ज्यादा होगी." जाहिर तौर पर वह परंपरागत क्लासरूम की मुखालफत करते हैं.
टेड ने हाल ही में अपनी पुरस्कार राशि दसगुनी बढ़ाई है, जिसके बाद यह पुरस्कार पाने वाले मित्रा पहली शख्सियत हैं. टेड समुदायों के बीच ऐसे आइडिया को तेजी से प्रचार करने की कोशिश करता है, जिसका समाज के बड़े हिस्से पर असर हो.
टेड पुरस्कार पाने वालों में नोबेल विजेता से लेकर बिल गेट्स और गूगल के संस्थापक जैसे लोग शामिल हैं. अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अल गोर को भी यह पुरस्कार मिला है.
(देखिये स्कूल में पिछड़ने के बावजूद जिंदगी में जीतने वाली प्रतिभाओं को)
ब्रिटेन में न्यू कैसल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मित्रा ने कहा कि पुरस्कार से मिली रकम से वह भारत में ऐसी प्रयोगशाला खोलने की कोशिश करेंगे, जिससे इंटरनेट क्लाउड के जरिए पढ़ाई को बढ़ावा दिया जा सके. उनके मुताबिक दुनिया भर के रिटायर शिक्षक "ग्लोबल नेटवर्क से" इन पर नजर रखेंगे और ऑनलाइन वीडियो से एक दूसरे से जुड़े रहेंगे. उनका कहना है, "मैं देखना चाहता हूं कि यह काम करता है या नहीं. अगर कर गया, तो हमें बराबरी का मौका मिल जाएगा."
उनका कहना है कि स्कूलों में परंपरागत रूप से पढ़ाई, लिखाई और गणित ऐसे वक्त की बात हो गई है, जब लोगों की महत्वाकांक्षा सरकारी पदों की होती थी. लेकिन जब तकनीक विकसित हुई, तो लोगों ने अपना व्यवसाय तैयार करने का फैसला किया और अब ऐसा वक्त आ गया है कि हमें बच्चों को उनके हिसाब से पढ़ने और सीखने का मौका देना चाहिए.
सौम्य और मृदुभाषी मित्रा ने कहा, "अगली पीढ़ी तैयार करने के दसियों तरीके हो सकते हैं. मैंने तो सिर्फ एक हिमखंड का ऊपरी हिस्सा छुआ है." वह टेड की मदद से अपने लैब को सौर ऊर्जा मुहैया कराने का प्रयास करेंगे. उनका कहना है कि जरूरत पड़ने पर उन्हें मदद की दरकार होगी.
टेड पुरस्कार के निदेशक लारा श्टाइन ने कहा, "सुगाता ने न सिर्फ खुद से सीखने का शानदार तरीका खोजा है, बल्कि उन्हें पूरी दुनिया के शिक्षकों का समर्थन हासिल है, जो इस तरीके पर आगे बढ़ना चाहते हैं."
श्टाइन ने कहा, "हमें उनकी इच्छाओं का समर्थन करते हुए बेहद खुशी हो रही है और हम इस बात से उत्साहित हैं कि भारत में उनका लैब कैसा बनेगा."
एजेए/ओएसजे (एएफपी)