सात खून माफ में मसूरी के बांड
२३ जनवरी २०११मसूरी में पहाड़ों के बीच एक लेखक का शांत जिंदगी को छोड़ रसकिन बांड आजकल बॉलिवुड की चमकीली सड़कों में घूम रहे हैं. विशाल भारद्वाज के फिल्म सात खून माफ उनकी किताब सुजैनास सेवेन हजबैंड्स पर बनी है और उसकी पटकथा लिखने के लिए बांड मुंबई में हैं. साथ ही फिल्म में उनकी एक छोटी सी भूमिका भी है. "प्रियंका चोपड़ा के साथ मेरा एक छोटा रोल है. मैंने विशाल को कहा है कि खबरदार तुम मेरा सीन काटो, मैं तुम्हारे साथ काम नहीं करूंगा. मैं प्रियंका के साथ एक सीन में हूं लेकिन मैं इसके बारे में अभी नहीं बताऊंगा."
कहानी में सुजैना अपने सात पतियों के जरिए प्रेम ढूंढने की कोशिश करती है और एक एक करके सबसे बोर होती रहती है. 76 साल के बांड ने कहा कि खून की वजहों को सोचने में उन्हें वक्त लगा. "हां, मुश्किल था लेकिन मजा भी आया. मुझे बहुत ही नई तरकीबे निकालनी पड़ीं ताकि वह एक एक कर अपने सात पतियों को बिना शक के मार सके."
बांड ने कहा, फिल्म एक ब्लैक कॉमेडी है. उनका कहना है कि वे कभी भी फिल्म को दिमाग में रखते हुए कहानी नहीं लिखते. अगर किसी को कहानी अच्छी लगती है तो वे उसे फिल्म के लिए ढाल सकते हैं. सात खून माफ के लिए उन्होंने फिल्म के स्क्रिप्ट के साथ कुछ नहीं किया और चूंकि वह विशाल को अच्छी तरह जानते हैं, दोनों ने एक साथ काम किया और तरकीबें निकलती रहीं.
बांड ने अपनी पहली कहानी रूम ऑन द रूफ 17 साल की उम्र में लिखी. अपने पसंदीदा शहर देहरा यानी देहरादून और मसूरी के बारे में उन्होंने कई कहानियां और उपन्यास लिखे हैं. उनका कहना है कि कहानियां उनके पास हमेशा रहती हैं और अगर ऐसा कभी हो कि उनके पास माल खत्म हो जाए, तो वह भूतों के बारे में लिखते हैं. आजकल बच्चों की किताबों के बारे में कहते हैं कि सारे बच्चे ड्रैकुला वाली कहानियां पढ़ रहे हैं और हॉलीवुड में तकनीक के सहारे से फैंटसी और जादू वाली फिल्में भी चलने लगी हैं. इन सब के बावजूद बच्चों के लिए कहानियां एक जैसी हैं और अलग अलग किस्म की कहानियों और लेखकों की जरूरत है.
रिपोर्टः पीटीआई/एमजी
संपादनः ए जमाल