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साइबर कानून की संवैधानिकता की जांच

४ फ़रवरी २०१५

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह उस विवादास्पद साइबर कानून की संवैधानिकता की जांच करेगा जो पुलिस को आपत्तिजनक सामग्री को पोस्ट करने वाले वेब यूजर को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है.

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तस्वीर: fotolia/mezzotint

अदालत ने कहा है कि इस मामले में सरकार की क्या राय है उससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है. जस्टिस जे.चलमेस्वर और रोहिंटन एफ नरीमन की खंडपीठ ने सरकारी वकील से कहा, "हमें इस कानून की आज की स्थिति को आंकना है. हमें आपके रुख से मतलब नहीं है." कोर्ट की यह टिप्पणी तब आई जब अतिरिक्त सालीसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार सुझावों के आधार पर इसमें बदलाव को सहमत है. सरकार सूचना तकनीक अधिनियम की धारा 66ए को बचाने की कोशिश नहीं कर रही.

खंडपीठ ने कहा कि आखिर एक सज्जन कितने दिन तक जेल में रहेंगे. या उन्हें तब तक जेल में रहना पड़ सकता है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट का जज या अन्य किसी अदालत का जज अपनी न्यायिक सोच को सामने न रख दे. अतिरिक्त सालीसिटर जनरल के इस्तेमाल किए शब्द मौटे तौर पर अपराध पर उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि आपके हिसाब से मौटे तौर पर अपराध जरूरी नहीं मेरे हिसाब से भी मौटे तौर पर अपराध की श्रेणी में आता हो.

खंडपीठ ने पूछा कि कौन फैसला करेगा कि मैटे तौर पर अपराध क्या है? "निश्चित तौर पर एसएचओ और दूसरे पुलिस अधिकारी. अदालत की राय थी कि इस धारा के चलते आपराधिक कानून एकरूप चलने लगेंगे. इससे न्यायिक जांच और पुलिस का कामकाज मशीनी हो जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट इस समय साइबर कानून की संवैधानिकता पर की गई कई अपीलों पर सुनवाई कर रहा है. शिव सेना नेता बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद मुंबई को बंद करने पर दो लड़कियों की टिप्पणी के बाद उन्हें इस धारा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था. इंटरनेट पर पोस्टिंग के लिए बंगाल में एक प्रोफेसर को भी गिरफ्तार किया गया था. पुलिस द्वारा इस धारा के इस्तेमाल को आलोचक अभिव्यक्ति की आजादी का हनन मानते हैं.

एमजे/आईबी (पीटीआई)

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