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साइंस से बेहतर होते भारत और जर्मनी के संबंध

विवेक कुमार२३ मई २०१६

जर्मन शहर पोट्सडम में भारत और जर्मनी के युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का वार्षिक सम्मेलन हुआ. इसमें बात साइंस से निकली और संस्कृति तक गई.

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तस्वीर: Indische Botschaft

भारत और जर्मनी को जो चीजें करीब लाती हैं उनमें साइंस और टेक्नोलॉजी में दोनों देशों का सहयोग एक अहम कारक है. इस बात को दोनों देशों की सरकारें समझती हैं और इसे आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए जाते हैं. जर्मनी में भारत के राजदूत गुरजीत सिंह इस सहयोग की अहमियत को सर्वोपरि मानते हैं. राजधानी बर्लिन के निकट पोट्सडम में आठवें इंडो-जर्मन फ्रंटियर्स ऑफ इंजीनियरिंग सिम्पोजियम की शुरुआत करते हुए भी सिंह ने इसी बात पर सबसे ज्यादा जोर दिया.

इंडो-जर्मन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी सिम्पोजियम भारत का साइंस और तकनीकी मंत्रालय और अलेक्जांडर फॉन हुम्बोल्ट फाउंडेशन मिलकर आयोजित करते हैं. इस बार के सिम्पोजियम में साफ तौर पर नजर आया कि भारत और जर्मनी के संबंध लगातार सुदृढ हो रहे हैं. 19 मई को सिम्पोजियम के उद्घाटन में हुम्बोल्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर हेल्मुट श्वार्त्स भी मौजूद थे.

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प्रोफेसर हेल्मुट श्वार्त्स और राजदूत गुरजीत सिंहतस्वीर: Indische Botschaft

यह सिम्पोजियम अपने करियर की शुरुआत कर रहे भारतीय और जर्मन इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को साथ लाता है. वे लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, विचार-विमर्श करते हैं और अपने-अपने आइडियाज का आदान-प्रदान करते हैं. इंडस्ट्री, यूनिवर्सिटी और रिसर्च इंस्टीट्यूशंस के इंजीनियर और साइंटिस्ट इसमें हिस्सा लेते हैं. कॉन्फ्रेंस बारी-बारी से भारत और जर्मनी में होती है. दोनों देशों के 30-30 सदस्य इसका हिस्सा होते हैं.

इस बार की कॉन्फ्रेंस में ब्रेमन स्थित फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर मैन्युफैक्चरिंग टेक्नॉलॉजी ऐंड न्यू मैटिरियल्स के डॉ. यूलियन श्वेन्त्सेल और आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर संदीप वर्मा को-चेयर थे. इस दौरान एनर्जी हार्वेस्टिंग, बायोमेकैनिक्स, स्मार्ट मैटिरियल्स, बायो-इंस्पायर्ड सिस्टम्स और अर्बन सिस्टम्स जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ.

Indien Merkel und Premierminister Modi im Bosch Ausbildungszentrum in Bangalore
प्रधानमंत्री मोदी और चांसलर मैर्केल का सहयोग पर जोरतस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

अपने उद्घाटन भाषण में हुंबोल्ट फाउंडेशन के चेयरमैन प्रोफेसर श्वार्त्स ने प्रतिभागियों से कहा कि वे अपनी-अपनी सांस्कृतिक सीमाओं के परे जाकर विषयों पर प्रेरणा लें. उन्होंने कहा कि विज्ञान और वैज्ञानिक शोध का मकसद सिर्फ निजी उत्सुकता और वैज्ञानिक सवालों के जवाब खोजना ही नहीं होना चाहिए बल्कि इसे समुदाय और संस्कृति के भीतर भी अपनी पैठ बनानी चाहिए. भारतीय राजदूत गुरजीत सिंह ने प्रतिभागियों से मौजूदा समाज की समस्याओं के व्यावहारिक हल खोजने का आह्वान किया.