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सांप्रदायिक सदभाव बढ़ाते बंगाल के मदरसे

७ जुलाई २०१०

मदरसों का नाम सुनते ही आंखों के सामने एक ऐसे शिक्षण संस्थान की तस्वीर उभरती है जिसमें अल्पसंख्यक तबके के छात्र पारंपरिक धर्मग्रंथों के जरिए पढ़ाई करते हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के मदरसों ने यह तस्वीर बदली.

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तस्वीर: AP

अब यहां तकनीक और विज्ञान पर आधारित पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं. यही वजह है कि इन मदरसों में मुस्लिम छात्रों के मुकाबले हिंदू छात्रों की तादाद बढ़ रही है. पश्चिम बंगाल में लगभग साढ़े पांच सौ मदरसे हैं. इनकी खासियत यह है कि यहां पढ़ाई किसी धार्मिक प्रार्थना नहीं, बल्कि राष्ट्रगान के साथ शुरू होती है.

पश्चिम बंगाल मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष मोहम्मद सोहराब कहते हैं कि मूल्यों व तकनीक पर आधारित आधुनिक धर्मनिरपेक्ष पाढ्यक्रम ही इसकी प्रमुख वजह है. मदरसे में पढ़ने वाली एक हिंदी छात्रा रूपाली विश्वास बताती है कि उसके साथ जातिगत या धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता. सब लोग मिल कर रहते हैं.

बंगाल के मदरसों की इस बदलती तस्वीर की वजह से पड़ोसी बांग्लादेश से काफी छात्र यहां पढ़ने आ रहे हैं. ऐसी ही एक छात्रा रुखसाना मदरसे के माहौल की प्रशंसा करते नहीं थकती. एक मदरसे के प्रिंसिपल मोहम्मद इलियास कहते हैं कि तकनीक और विज्ञान आधारित पाठ्यक्रमों की वजह से ही मदरसों के प्रति छात्रों में आकर्षण बढ़ रहा है.

राज्य के अल्पसंख्यक विकास मंत्री अब्दुस सत्तार कहते हैं कि हमने इन मदरसों की धर्मनिरपेक्ष छवि बनाई है. यह जात-पांत और धार्मिक भेदभाव से परे हैं. इनकी पढ़ाई का स्तर भी दूसरे स्कूलों के बराबर हो गया है. मौजूदा परिदृश्य में बंगाल के यह मदरसे दो समुदायों के बीच सदभाव बढ़ाने में एक अहम भूमिका निभा रहे हैं.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: एस गौड़