सरकारी खर्चे को न रोकें- मनमोहन सिंह
२८ जून २०१०मनमोहन सिंह ने कहा कि आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए राहत पैकेजों को तुरंत नहीं रोका जाना चाहिए क्योंकि आर्थिक सुधार अब भी बहुत 'कमजोर' है. सुधार को प्राथमिकता देते हुए सरकारी कर्ज को कम करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे.
राहत पैकेजों से पीछे हटने को लेकर मनमोहन सिंह ने कहा कि हर एक देश को अपने हालात के मुताबिक राहत पैकेजों से पीछे हटने या उन्हें रोकने का फैसला लेना चाहिए. सिंह के मुताबिक इस वक्त महंगाई से कहीं ज्यादा अवमूल्यन का खतरा है.
यूरोप के कई देशों ने सरकारी खर्चे में कमी लाने की बात कही है और कई मामलों में ऐसा किया भी गया है. इस सिलसिले में मनमोहन सिंह ने कहा, "हमारी सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हमें विश्व में विकास को एक ऐसी स्थिति में कायम रखना हैं जहां बाजार कर्ज के टिकाऊ ढांचे को लेकर बहुत बेचैन हो गए हैं." कर्ज चुकाने में जब मुश्किल हो जाती है तो आम तौर पर सरकारें पैसे बचाना शुरू कर देती हैं. लेकिन यह स्थिति सामान्य नहीं है. आर्थिक सुधार अब भी कमजोर है और अगर सरकारें खर्चा कम कर दें, तो मांग में कमी आएगी. इससे आर्थिक मंदी और बढ़ेगी. हालांकि ग्रीस की मिसाल देते हुए कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफेन हार्पर ने कहा है कि सरकारी खर्चे में कमी लाने से बाजारों और करदाताओं में विश्वास बढ़ेगा.
उन्होंने व्यापार को लेकर विकसित देशों के संरक्षणवाद का विरोध करने की बात की, खासकर विकासशील देशों से सामान आयात करने के मुद्दे को लेकर. साथ ही बैंकों को मंदी से बाहर निकालने के लिए खास करों का प्रस्ताव रखा गया है, जिसका भारत ने विरोध किया है. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि 2011-12 तक भारत के आर्थिक विकास दर 9 प्रतिशत तक पहुंच सकते हैं. सरकारी कर्ज को भी आधा करने की उम्मीद है.
जी20 देशों की बैठक के दौरान जर्मन चांसलर अंगेला मैर्कल, फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सार्कोजी, चीन के राष्ट्रपति हू चिंताओ, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी मौजूद थे. अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर विश्व नेताओं की नजर चीन और भारत पर है. विश्व व्यापार संगठन डब्ल्यूटीओ की दोहा वार्ताओं को दोबारा शुरू करने की भी बात की गई है. माना जा रहा है कि विकसित देशों में संरक्षणवाद को कम करने से विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित किया जा सकेगा.
रिपोर्टः पीटीआई/ एम गोपालकृष्णन
संपादनः महेश झा