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समीक्षाः 30 साल लंबी लड़ाई?

Klaus Jansen१६ जून २०१४

आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के लड़ाके मध्यपूर्व में शिया और सुन्नी समुदायों को एक लंबे धार्मिक युद्ध की ओर ले जा रहे हैं. डीडब्ल्यू के मुख्य संपादक आलेक्सांडर कुडाशेफ ऐसा मानते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

मामला घबराहट पैदा करने वाला हैः 10,000 सैनिक, 10,000 लड़ाके मध्यपूर्व को चुनौती दे रहे हैं. कट्टरपंथी इस्लामी संगठन इराक और सीरिया के लिए इस्लामी राष्ट्र आईएसआईएस के 10,000 लड़ाके बगदाद पर चढ़ाई कर रहे हैं. वह इराकी राजधानी को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं, राष्ट्रपति को अपदस्थ करना चाहते हैं और इराक में शिया सत्ता को खत्म करना चाहते हैं. यह लड़ाके मध्यपूर्व में युद्ध के बाद की स्थिति को पूरी तरह बदलना चाहते हैं, वह मुस्लिम श्रद्धालुओं के समुदाय, उम्मा को दोबारा स्थापित करना चाहते हैं और एक खिलाफत बनाना चाहते हैं जो सिर्फ शरीया के आधार पर देश चलाए.

जिहाद के लिए राजनीतिक और धार्मिक रूप से तैयार होना और उसके लिए मर मिटने वाले सिद्धांत के आज भी सीरिया और इराक में कई समर्थक हैं. आईएसआईएस इन देशों के कई इलाकों में बर्बर तरीके से अपना हुक्म चलाता है. आईएसआईएस के नेता अबु बकर अल बगदादी के समर्थक सुन्नी हैं और वह बगदाद में शिया राष्ट्रपति नूरी अल मलीकी को सत्ता से हटाना तो चाहते ही हैं, साथ ही वह पूरे क्षेत्र को आग में झोंकना चाहते हैं. ईरान अपने शिया भाइयों की मदद करना चाहता है और कोशिश कर रहा है कि वह, कम से कम बातचीत के स्तर पर अमेरिका के साथ आए और इराकी राष्ट्रपति मलीकी की मदद करना चाहता है लेकिन ईरान की कोशिशों पर अभी राष्ट्रपति ओबामा ने लेकिन अपनी राय सामने नहीं रखी है.

शिया नजरिया

Alexander Kudascheff
डीडब्ल्यू के मुख्य संपादक आलेक्सांडर कुडाशेफतस्वीर: DW

बगदाद में अपने शिया बंधुओं का बचाव ईरान के लिए एक व्यावहारिक बात है, जिस तरह सीरिया में ईरान ने अलावी राष्ट्रपति बशर अल असद की लेबनान की मिलीशिया हिज्बुल्लाह से मदद की है. तेहरान को इसमें क्षेत्रीय लिहाज से दिलचस्पी है कि हिज्बुल्लाह, सीरिया, इराक और ईरान में एक निरंतरता बनी रहे ताकि उसके प्रभाव को बरकरार रखा जा सके. आयातोल्लाह वाले देश ईरान के लिए, जो अपने को आयातुल्लाह खुमैनी के मिथक की परंपरा में देखते हैं, यह असोचनीय है कि पड़ोसी देशों में शिया समुदाय को वह धोखा दें. यह जिहाद यानि धार्मिक युद्ध की एक वजह है.

सीरिया में बहुत वक्त से गृह युद्ध चल रहा है जो सब कुछ बर्बाद कर रहा है, असद विपक्ष के खिलाफ है लेकिन विपक्ष भी बंटा हुआ है, आईएसआईएस धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक आंदोलन ने खिलाफ है. करीब दो लाख मौतों और करोड़ों शरणार्थियों के बाद लगता है कि असद सत्ता में रहेंगे और गृह युद्ध जारी रहेगा. खून की नदियां बहना बंद नहीं होंगीं. और आसपास मध्यपूर्व के बाकी प्रतिद्वंद्वी, कुर्द समुदाय ने उत्तरी इराक में अपने को जमा लिया है और उन्हें आईएसआईएस से डर नहीं है. उनकी सैन्य ताकत और उनका नया राजनीतिक अस्तित्व तुर्की को चुनौती दे रहा है और तुर्की खुद सीरिया से लगी अपनी सीमा को लेकर व्यस्त है. जॉर्डन कई दशकों से लाखों फलिस्तीनी शरणार्थियों का घर बना हुआ है. संवेदनशील लेबनान की सीमा पर लगा जॉर्डन सीरिया के शरणार्थियों के एक बड़े हिस्से की जिम्मेदारी ले रहा है. और कोई नहीं जानता कि जॉर्डन की राजशाही अपने आप में कितनी स्थिर है.

वर्चस्व के सपने

और फिर सऊदी अरब. खाड़ी में वह ईरान का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है, जो मध्यपूर्व में ईरान के साथ मानसिक और धार्मिक प्रभुत्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहा है, जो धार्मिक शहरों मक्का और मदीना की रक्षा करता है. सऊदी अरब वहाबियों की धर्मनिष्ठ सीख को मानता है और खुद भी एक धार्मिक राष्ट्र है जिसके पास बहुत पैसा भी है. दुनिया भर में उसने इस्लाम के प्रचार के लिए निवेश किया है और इस काम के लिए कई इस्लामी गुट और संगठन बनाए हैं. लेकिन इस राजशाही की भी दोहरी नीति है. एक तरफ तो वह जिहाद को बढ़ावा देता है लेकिन इस उम्मीद में कि यह आंदोलन खुद सऊद खानदान के खिलाफ न चल जाए. आईएसआईल का सपना केवल सीरिया और इराक में ही नहीं, बल्कि जॉर्डन, लेबनान और सऊदी अरब में भी खिलाफत स्थापित करना है.

अगर जिहाद को खुले मैदान में भी रोक दिया जाए, तो भी उस पर जीत हासिल नहीं होगी. वह बस कुछ दिनों के लिए रोका जा सकेगा. इराक में लड़ाई, बगदाद के लिए संघर्ष शिया और सुन्नियों के लिए नए धार्मिक युद्ध की शुरुआत है. इसी के साथ क्षेत्र में 30 साल लंबा मध्यपूर्व युद्ध होने वाला है और इस्राएल का अस्तित्व पहले से कहीं ज्यादा असुरक्षित होगा. पश्चिम भी इससे अलग नहीं रह सकेगा.

रिपोर्टः आलेक्सांडर कुडाशेफ/एमजी

संपादनः अनवर जे अशरफ