सनसनाता स्पेन वर्ल्ड कप फाइनल में
८ जुलाई २०१०उस करामाती ऑक्टोपस को छोड़ दें तो किसी ने डरबन में इस नतीजे की उम्मीद नहीं की होगी. अर्जेंटीना और इंग्लैंड को हराने वाली योआखिम लोएव की टीम हर मैच के बाद बुलंद होती जा रही थी और चार चार गोल दाग रही थी. लेकिन सेमीफाइनल में उतरते ही जर्मन टीम जैसे किसी की छाया में चली गई हो.
यह लाल रंग की छाया थी. डेल बास्क की अगुवाई वाली स्पेनी टीम. डेविड विया की टीम. फर्नांडो टोरेस की टीम. खावी की टीम. रेफरी की पहली सिटी बजते ही मैदान सिमट कर जर्मन साइड में जा समाया. गेंद हाफ लाइन को पार कर ही नहीं पाती. लाल लिबास में लिपटे स्पेनी खिलाड़ी मानो जर्मनी के लिए लाल बत्ती साबित होने लगे. गेंद बूटों में टकराती थी. लेकिन बार बार जर्मन खेमे में चली आती थी.
शुरुआती 30 मिनट तक तो ऐसा ही होता रहा. स्पेन ने चार बार गोल पर निशाना साध दिया था लेकिन कभी नॉयर के दस्ताने, तो कभी गलत निशाने से गेंद भटक गई. इस दौरान जर्मनी एक बार भी स्पेन के गोल तक नहीं पहुंच पाया. मीरोस्लाव क्लोजे ने कभी कभी बड़ी तेज दौड़ लगाई लेकिन गेंद उनके पल्ले ही न आई. ओएजिल और पोडोस्ल्की का जादू नहीं चल रहा था.
स्पेन बिना किसी हड़बड़ाहट और भाग दौड़ के खेल रहा था. गेंद पर मानो उनका काबू हो चुका था. चलते फिरते पास दे रहे थे. स्पेन के अलावा एक शरारती तत्व ने भी जर्मन खेमे में सेंध लगा दी. खेल के चौथे मिनट में ही इटली का एक समर्थक वुवुजेला लेकर ग्राउंड में घुस आया और सुरक्षा गार्डों को उसे बाहर करने में थोड़ा वक्त लगा.
खेल रफ्ता रफ्ता रफ्तार पकड़ रहा था. सफेद जर्सी वाले जर्मन खिलाड़ियों ने कभी कभी लाल रंग का चक्रव्यूह तोड़ने की कोशिश की और हाफ टाइम से ठीक पहले ओएजिल गेंद लेकर स्पेनी डी तक पहुंच भी गए. लेकिन उन्हें ऐन मौके पर रोक लिया गया और स्पेन के लिए त्रासदी होते होते बच गई. रेफरी ने सिटी बजाई और दोनों खेमा बिना शिकार के 0-0 पर आराम करने निकल गया.
आराम के साथ रणनीति भी बनी. युवा खिलाड़ियों से सजी जर्मन टीम के खेवैया योआखिम लोएव ने सफलता की घुट्टी पिलाई लेकिन यह काम न आई. आम तौर पर साफ सुथरे खेल में बोआतेंग बीच बीच में लंगड़ी लगाने की कोशिश कर रहे थे और कोच ने उन्हें जल्द ही बाहर बुला लिया. थॉमस म्यूलर इस मैच में सस्पेंड किए जा चुके थे. लिहाजा लोएव को त्रोचोवस्की और क्रूज से काम चलाना था. पूरे मैच में किसी को भी कार्ड नहीं दिखाया गया.
माइकल बलाक जैसे सीनियिर खिलाड़ी का टीम में न होना किस कदर खलता है, आज की तारीख में यह बात लोएव से बेहतर कोई नहीं समझ सकता. क्रूज को एक बार जाल के सामने ऐसी गेंद मिली, जिसे बस सरका देना था. क्रूज मिस कर गए और शायद यहीं से जर्मनी ने मैच भी खो दिया. क्लोजे गेंद को तलाशते रहे लेकिन इसका बूट से मिलन नहीं हो पाया और पोडोल्स्की और ओएजिल गेंद मिलने पर उसे ज्यादा देर तक काबू में नहीं रख पाए.
दूसरी तरफ डेविड विया और खावी ने हमले जारी रखे. भला हो जर्मन गोलकीपर नॉयर का, जिन्होंने कुछ अच्छे बचाव किए और भला हो स्पेनी खिलाड़ी अलोन्जो का, जिन्होंने तीन खूबसूरत मौकों पर निशाने से बाहर शॉट लिया. जर्मनी ने आपाधापी में अपना खेल छोड़ कर स्पेन के खेल की नकल शुरू कर दी. अब शायद उन्हें इस बात का इल्म न था कि नकल तो हमेशा असल से कम रहती है.
खेल का आखिरी मोड़ आ चुका था. गेंद और जाल में मिलन नहीं हो पाया था. इसी बीच 73वें मिनट में स्पेन को कॉर्नर मिला. लंबे बालों वाले डिफेंडर पुयोल जर्मन डी में पहुंच चुके थे. कॉर्नर की गेंद उनके सिर से बस कुछ ही इंच के फासले पर थी. उन्होंने माथे की ठोकर जड़ दी. नॉयर नाकाम रहे, गेंद सीधे गोलपोस्ट पार कर गई. स्पेनी खेमे में जश्न मनने लगा. आखिरी लम्हों में गोल के बाद इसे उतारना मुश्किल होता है. एक गोल ने सब कुछ बदल कर रख दिया.
आखिरी के 10 मिनटों में फिलिप लाम के खिलाड़ियों ने जान लगा दी. अचानक सबकी कमीजें पसीने से तर ब तर हो गईं. गेंद लेकर इधर उधर भागते खिलाड़ी बस गोल उतार देना चाहते थे और स्पेन इस बढ़त को किसी भी कीमत पर पाटने नहीं देना चाहता था. जंग चलती रही. तब तक, जब तक रेफरी ने लंबी सिटी न बजा दी.
स्पेन जीत गया. दो साल पहले यूरो कप फाइनल का इतिहास दोहरा गया. उस वक्त भी जर्मनी को 1-0 से हरा कर स्पेन चैंपियन बना था. पहली बार वर्ल्ड कप फाइनल का टिकट मिल गया. एक नए टीम को वर्ल्ड कप का खिताब मिलना तय हो गया. दूसरी फाइनलिस्ट टीम हॉलैंड भी कभी वर्ल्ड कप नहीं जीती है. पहली बार किसी यूरोपीय टीम का अपने महाद्वीप से बाहर वर्ल्ड कप जीतना भी तय हो गया.
इधर, ग्राउंड पर जर्मन खिलाड़ियों के सब्र का बांध टूट गया. भावुक हो उठे बास्टियन श्वान्सटाइगर ने घुटने के बल बैठ कर सिर जमीन में धंसा दिया. पूरे टूर्नामेंट में सिर्फ तीन गोल खाने वाले गोलकीपर नोएर और फ्रीडरिश अपने आंसू नहीं रोक पाए. कप्तान लाम का चेहरा सपाट हो गया और पूरा जर्मन खेमा शांत हो गया. एक बार फिर चार साल लंबा इंतजार शुरू हो गया.