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सदिच्छा का संकेत है भारत से मदद लेना

२७ अगस्त २०१०

जर्मनी ने बाढ़ से हुए नुकसान का जायजा लेने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भेजी है लेकिन जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं नुकसान का आयाम बढ़ता ही जा रहा है. पाकिस्तान में बाढ़ की विभीषिका जर्मन अखबारों में सुर्खियों मे रही.

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मदद ला सकता है करीबतस्वीर: AP

लाखों बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत की जरूरत के साथ प्रभावित इलाकों की स्थिति पर भी रिपोर्ट की गई. देश का बीस फीसदी क्षेत्र पानी के नीचे है, 60 लाख लोग बेघर हैं और नष्ट हुई संरचना को बनाने में अरबों डॉलर लगेंगे. लंबी ना नुकर के बाद अमेरिकी दबाव में पाकिस्तान की सरकार ने अंततः भारतीय मदद स्वीकार कर ली. फ्रैंकफर्ट से प्रकाशित दैनिक फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग इसके बारे में लिखता है

पाकिस्तान सरकार ने फैसला लेने में कई दिन लगाए, क्योंकि दोनों देशों में गंभीर विवाद है. पाकिस्तानी विदेश मंत्री कुरैशी ने मदद की पेशकश के बारे में कहा कि धनराशि का "अत्यंत स्वागत है, हम इसके लिए शुक्रगुजार हैं." आपदा के बीच में , जिसमें 2 करोड़ लोग प्रभावित हैं, यह सदिच्छा और दो देशों के करीब आने का संकेत है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के फैसले का स्वागत किया है. वे और मदद करने को भी तैयार हैं. भारत ने 2005 के भयानक भूकंप के समय भी पाकिस्तान की मदद की थी. उसमें 70 हजार से अधिक लोग मारे गए थे.

आपदा में लोगों की लंबे समय से मदद कर रहे राहतकर्मी भी पाकिस्तान में बाढ़ की विभीषिका से परेशान हैं. देश के उत्तरी हिस्से में बाढ़ से हुए नुकसान का पता चल रहा है तो दक्षिणी भाग अब डूबता जा रहा है. बर्लिन से प्रकाशित दैनिक टागेस्श्पीगेल मौके पर मदद कर रहे राहतकर्मियों के बारे में लिखता है

मौके पर मदद कर रहे लोग जानते हैं कि ऐसे खस्ताहाल देश में उनका सामना किस बात से होगा. लोग खुले दिमाग वाले, आभारी, सहायता को तैयार और नया जानने को बेकरार हैं. पाकिस्तान में काम कर रहे बहुत से राहतकर्मी थके हुए लेकिन संतुष्ट हैं. प्रांतों में आपादा सुरक्षा में लगे अधिकारियों के साथ सहयोग अच्छा है. राहत सामग्रियों का बंटवारा राहत संगठन कर रहे हैं. उत्तर के दूर दराज के इलाकों में लोग हेलिकॉप्टरों से फेंके जाने वाले फूड पैकेटों पर निर्भर हैं. ये स्वाभाविक रूप से अव्यवस्थित है, क्योंकि सभी भूखमरी से बचने के लिए पैकेट्स के पीछे भाग लेते हैं. जब डॉक्टर्स विदाउट बोर्डर्स जैसे अनुभवी संगठन अपने 100 विदेशी और 1100 स्थानीय डॉक्टरों और नर्सों के साथ कुछ बांटते हैं तो वह अच्छी तरह संगठित होता है.

2 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हैं. स्थिति नाटकीय है. कहा जा रहा है कि ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टरों की कमी है और बीमारियों के फैलने का खतरा है. टागेस्श्पीगेल लिखता है

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 8 लाख बाढ़पीड़ितों को सिर्फ हेलिकॉप्टरों की मदद से खाना पहुंचाया जा सकता है. इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से 40 बड़े ट्रांसपोर्ट हेलिकॉप्टर मुहैया कराने की अपील की है. सहायता की अपील नाटकीय लगती है क्योंकि बहुत सी जगहों पर मदद नहीं पहुंच रही है, ऐसी जगहों पर भी नहीं, जहां सड़क के रास्ते मदद पहुंच सकती है.

ज्युड डॉयचे त्साइटुंग ने लिखा है कि बाढ़ के कारण पाकिस्तान की आर्थिक विकास की दर अनुमानित 4.5 फीसदी से घटकर 2 फीसदी रह जाएगी. अब सरकार राजकीय राजस्व बढ़ाना चाहती है, क्योंकि उसके विचार में तभी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से और कर्ज की उम्मीद की जा सकती है. अख़बार लिखता है

सरकार की उम्मीद वित्त मंत्री अब्दुल हफीज़ शेख की सौदेबाजी क्षमता पर टिकी हैं. वे मुद्रा कोष के प्रतिनिधियों के साथ वित्तीय सहायता के बारे में बातचीत के लिए वाशिंगटन गए हैं. इस्लामाबाद सरकार के लिए यह भेंट बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उसे सेना और इस्लामी कट्टरपंथियों के बीच प्रभावी सहायता के लिए चल रही प्रतियोगिता में फौरी सफलता और नए धन की जरूरत है. शेख मुद्रा कोष को आश्वासन देंगे कि जुलाई से वैट को बढ़ाकर 15 फीसदी किए जाने के फैसले को अक्तूबर से लागू किया जाएगा और मुद्रा कोष को फैसला करना है कि क्या नवम्बर 2008 से दिए गए 5.6 अरब यूरो के कर्ज में और 2 अरब यूरो की वृद्धि की जाएगी, जैसा कि पाकिस्तान चाहता है.

फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग ने अफगानिस्तान के सुरक्षा सलाहकार रंगीन स्पांटा के लेख पर भी टिप्पणी की है जिसमें उन्होंने पाकिस्तान पर सीमापारीय आतंकवाद को समर्थन जारी रखने का आरोप लगाया है. अखबार लिखता है,

स्पांटा लिखते हैं, यह विचार कि पाकिस्तानी सेना आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में सहयोगी है "एक घातक सामरिक भूल है". पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ सिर्फ अमेरिकी दबाव में आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहबंध में शामिल हुए - बाहर की ओर और दरअसल में दिखावे के लिए. स्पांटा क्षेत्र में सैनिक लड़ाई में विस्तार नहीं चाहते हैं, लेकिन वे पाकिस्तान के प्रति तुष्टिकरण की नीति की समाप्ति और आतंकवाद को बसेरा और प्रशिक्षण देने वाले तथा उनका विदेशनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाले देशों के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साफ रवैये की मांग करते हैं.

26 अगस्त को दुनिया ने मदर टेरेसा की 100वीं जयंती मनाई. 18 साल की उम्र में भारत चली गईं मदर टेरेसा के बारे में फ्रांकफुर्टर रुंडशाउ ने लिखा है

10 सितंबर 1946 को मदर टेरेसा ने एक सपना देखा, जीसस ने उनसे स्कूल छोड़कर स्लम में जाने की सलाह दी. श्कोप्ये की नन की जिंदगी में यह एक मोड़ था. 1948 में वे भारतीय नागरिक हो गई और 1950 में उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की. आज मिशनरी की 133 देशों की 710 शाखाओं में 3000 सिस्टर और 500 ब्रदर हैं. मदर टेरेसा जीवन के लिए नहीं बल्कि पीड़ित जीवन के लिए काम करती थीं. यही उनकी शक्ति और उनका सम्मोहन है.

संकलन: यूलिया थिएनहाउस/मझा

संपादन: आभा मोंढ़े