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सड़क पर सुनहरी कलई

२ जून २०१४

जर्मनी के शहरों में 600 बुलेवार हैं जहां दुकानों वाली व्यस्त सड़कें सिर्फ पैदल के लिए हैं. इतने बुलेवार दुनिया में और कहीं नहीं. पाडरबॉर्न में आर्ट प्रोजेक्ट पता कर रहा है कि शहर केंद्र में दुकानों का आज कितना महत्व है.

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तस्वीर: M+M, Martin de Mattia und Marc Weis/Tatort Paderborn 2014

जर्मनी के छोटे शहर पाडरबॉर्न में लास वेगास की एक झलक सी दिखने लगी है. मकान की दीवार पर रंग बिरंगे नियोन लाइट की नीचे एक मोर. मशीन में एक यूरो का सिक्का डालिए और मोर नीला, लाल या हरे रंग में चमकने लगता है. मोर पाडरबॉर्न शहर के लिए बहुत अहम है क्योंकि कहावत है कि वह यहां तीर्थयात्रियों के साथ आया था. फ्रैंकफर्ट की आर्टिस्ट सिल्के वाग्नर के अनुसार यह आधुनिकता और परंपरा का संगम है "क्योंकि उसका धार्मिक चरित्र कैथोलिक शहर पाडरबॉर्न में हमेशा मौजूद है और मोर इस बीच लक्जरी और दंभ का प्रतीक बन गया है."

कला या कंज्युमरिज्म

वर्षा वाला दिन. सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित कला देखने के लिए शायद ही अच्छा दिन. लेकिन फिर भी पाडरबॉर्न का बुलेवार खचाखच भरा है, लोगों की आवाजाही हो रही है.जर्मनी के किसी दूसरे शहर की तरह यहां भी वही दुकानें हैं, वहां सुपर मार्केट. सिटी सेंटर के भारी किराये सिर्फ बड़े चेन ही चुका सकते हैं.1950 के दशक में शहर के बुलेवार को देश का कैटवॉक माना जाता था, जहां शहर के संभ्रांत नागरिक दिखना चाहता था और खुद भी दुकानों की शो विंडो को निहारता था. लेकिन इस बीच यह नीरस उपभोक्ता बाजार में बदल गया है.

Tatort Paderborn Kunstprojekt 2014
पाडरबॉर्न यानि कला का शहरतस्वीर: DW/S. Oelze

पाडरबॉर्न में 100 दिनों के लिए एक टेस्ट हो रहा है जहां लोगों को यहां सामान से ज्यादा कुछ मिलेगा. दुकानों, फव्वारों और खुली जगहों के बीच या पार्किंग लॉट में 12 कलाकारों की रचनाओं का प्रदर्शन. नाम है टाटऑर्ट पाडरबॉर्न. किसी भी शहर में रात को निकल जाएं तो बुलेवार से ज्यादा शांत और भयावह कोई जगह नहीं होती. दुकान सुरक्षित इमारतों में बदल जाते हैं, खोखे और ढाबे बंद हो जाते हैं, वहां कोई भी नहीं दिखता.प्रदर्शनी के आयोजक फ्लोरियान मात्सनर इस जगह को जीवंत बनाना चाहते थे. वे बताते हैं कि इलाके में बहुत सी दुकानें खाली पड़ी हैं, खुदरा दुकानों की जगब सुपर बाजार चेन ने ले ली है.

अनजानी सी जगह

यहां आने वाला अपने को भीड़ में अकेला पाता है. ढेर सारे लोगों के बीच एक इंसान. आर्टिस्ट क्लेया श्ट्राके और वेरेना जाइब्ट दुकानों वाली इस जगह का रुतबा वापस लाना चाहती हैं, उसे फिर से पुरानी चमक देना चाहती हैं. वे जमीन पर झुक कर रास्ते के पत्थर को सुनहरा रंग दे रही हैं. वेरेना बताती हैं, "यह धातु अद्भुत है. बुलेवार पर हर बोर्ड दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है, लेकिन सोने के रंग की चमक के सामने सब फीके हैं."

Tatort Paderborn Kunstprojekt 2014
पाडरबॉर्न का एक नजारातस्वीर: DW/S. Oelze

रास्ते के सुनहरे पत्थर के बगल में कचरे के ढेर और उपभोक्ता संस्कृति विरोधी स्मारक ने रास्ता रोक रखा है.मार्कुस अम्बाख ने गैरजरूरी बोर्ड इकट्ठा किया है और एक के ऊपर एक जमा कर दिया है. रास्ता दिखाने वाले बोर्ड, कुथ करने से रोकने वाले बोर्ड, विज्ञापन वाले बोर्ड, सब एक जगह. वहां से गुजरने वाली एक महिला, जो भारी बरसात के बावजूद खरीदारी करने आई हैं, इस बात पर खुश है कि बुलेवार कुछ समय के लिए म्यूजियम में तब्दील हो गया है. "अब आप यहां से गुजरते हुए सिर्फ एक दुकान से दूसरे दुकान में नहीं जाते."

बुलेवार की नई जिंदगी

सिटी सेंटर की समस्या सिर्फ उसका व्यवसायीकरण ही नहीं है बल्कि आर्टिस्ट डोरोथी गोल्त्स की राय में यहां लोगों को धीमे होने या रुकने की कोई संभावना नहीं दिखती. इसलिए उन्होंने आसान सा नुस्खा निकाला है, चेयर्स टू शेयर. समय और विचार बांटने के लिए कुर्सियां जहां अगल बगल बैठकर आराम कर सकते हैं और एक दूसरे से गपशप कर सकते हैं. टहलने निकले लोगों के लिए मुलाकात की एक मुफ्त जगह. गोल्त्स का कहना है कि ऐसे समय में जब सार्वजनिक जगहों को बेचा जा रहा है, बुलेवार बहुत महत्वपूर्ण है. यह लोकतांत्रिक जगह है जहां हर कोई बैठ सकता है.

कम से कम पाडरबॉर्न में प्रदर्शनी में भाग ले रहे संस्कृतिकर्मी नहीं मानते कि समस्या का समाधान बुलेवार को खत्म करना है. वे इसे उपयोग के तरीके को बदलने और उसे फिर से जीवंत बनाने पर जोर दे रहे हैं. सिटी सेंटर में दुकानों के साथ साथ रिहाइशी मकानों का होना स्थिति को बदल सकता है. जर्मनी के सिटी सेंटर इन दिनों बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं. लोग अब देहातों में रहना पसंद नहीं करते. यह उनके लिए नया मौका साबित हो सकता है. और कला इसमें मददगार साबित हो सकती है.

रिपोर्ट: सबीने ओएल्से/एमजे

संपादन: अनवर जे अशरफ