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'सक्षम' से शुरू होगी जेंडर संवेदनशीलता

७ मार्च २०१४

भारतीय शिक्षा संस्थानों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को रोकने से मानसिकताओं को बदला जा सकेगा. यूजीसी की नई रिपोर्ट इस सिलसिले में कुछ अहम सुझाव देती है.

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तस्वीर: cc-by-sa-3.0/Psubhashish

भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए जिम्मेदार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यूजीसी ने विभिन्न शैक्षिक संस्थानों के परिसर में महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति की जांच पड़ताल की है और हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की. 'सक्षम' नाम की इस रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर कॉलेज या विश्वविद्यालयों के परिसर में लड़कियां और महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. चिंताजनक बात यह है कि अधिकांश संस्थानों के अधिकारी जानते ही नहीं कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, हिंसा और यौन उत्पीड़न के मामलों का संवेदनशीलता के साथ कैसे सामना करें.

यूजीसी की रिपोर्ट में शिक्षा संस्थानों के परिसरों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के कदम सुझाए गए हैं और कैंपस में जेंडर आधारित हिंसा के विरूद्ध शून्य सहनशीलता की नीति अपनाने की सिफारिश की गई है. सभी संस्थानों में यौन उत्पीड़न रोकने के पुख्ता कदम उठाने के साथ वीमन स्टडीज को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने, लगातार मनोवैज्ञानिक सहयोग प्रदान करने, परिसर में बेहतर बिजली, टॉयलेट, यातायात और हॉस्टल की व्यवस्था करने का सुझाव दिया गया है.

महिलाओं की सुरक्षा पर पिछले महीनों की बहस के बावजूद अधिकांश संस्थानों में ‘लिंग संवेदीकरण' की दिशा में कुछ खास काम नहीं हुआ है. जेंडर समानता के लिए विद्यार्थियों और शिक्षकों को जेंडर संवेदीकरण की प्रक्रिया से जोड़ना महत्वपूर्ण होगा. यह सुझाव सबसे अहम है. कड़ी कानून व्यवस्था या काम और पढ़ने की जगहों पर सुरक्षित वातावरण देने मात्र से महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों की पूरी तरह से रोकथाम नहीं हो सकती. आवश्यकता है उस मानसिकता को बदलने की जो महिलाओं को पुरुषों से नीचे का दर्जा देती है, जो मानती है की महिलाएं कमजोर होती हैं और उनका शोषण किया जा सकता है.

सदियों से चली आ रही इस मानसिकता के खत्म होने में समय तो लगेगा लेकिन यह असंभव नहीं है. इसमें शिक्षा संस्थानों की भूमिका अहम होगी. विश्वविद्यालयों और कॉलेज की जिम्मेदारी विद्यार्थियो को पढ़ाने या रिसर्च कराने तक सीमित नहीं है. शिक्षा संस्थानों का काम ऐसे नागरिक तैयार करना भी है जो समाज में हो रहे हर तरह के शोषण और उत्पीड़न का विरोध कर सके.

कई विश्वविद्यालयों और कॉलेजों ने कैंपस में महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल पैदा करने के इरादे से कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. पुणे यूनिवर्सिटी में यौन उत्पीड़न के विरुद्ध सेल को मजबूत करने की बात हो रही है और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों और स्टाफ के लिए लिंग संवेदीकरण मॉड्यूल शुरू करने की. इन कदमों को सही ढंग से अपनाया जाए तो ये कैंपसों में सुरक्षा का माहौल बनाने में कारगर साबित हो सकते हैं.

इन्हें असरदार बनाने के लिए अधिकारियों को सुनिश्चित करना होगा कि संवेदीकरण की प्रक्रिया नियमित रूप से लागू हो और इसमें पुरुषों की भागीदारी अनिवार्य हो. विद्यार्थियों के अलावा शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों को भी इससे जोड़ा जाए. जेंडर स्टडीज के कोर्स शुरू किए जाएं. सेमिनार, वर्कशॉप और नाटकों के जरिए लैंगिक समानता के मुद्दों पर बार बार चर्चा हो ताकि व्यापक तौर पर जागरूकता लाई जा सके. निरंतर विचार विमर्श और जागरूकता फैलाने से ही संकुचित मानसिकता और पुरुषों के रवैये में बदलाव आ सकेगा.

ब्लॉग: दिशा उप्पल

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन

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