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सऊदी अरब पर नीति बदलें पश्चिमी देश

ग्रैहम लूकस/एमजे१० जून २०१५

सऊदी अरब की सर्वोच्च अदालत ने ब्लॉगर रइफ बदावी को 10 साल कैद और 1000 कोड़े की सजा के अलावा 266,000 डॉलर के जुर्माने की सख्त सजा बरकार रखी है. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि पश्चिम को अपनी सऊदी नीति बदलनी चाहिए.

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तस्वीर: DW/K.-A. Scholz

सऊदी उच्च अदालत का फैसला उम्मीद के अनुरूप था. कोर्ट के विचार जजों और देश के संभ्रांत वर्ग की मानसिकता को दिखाते हैं. सऊदी समाज का ऊपरी हिस्सा असहिष्णु और पिछड़े विचारों वाला है जिसकी बुनियाद वहाबी धार्मिक कट्टरपंथ में है. सऊदी सरकार मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति का पूरा निरादर करती है और अपनी हैसियत को बचाने के लिए इस्लाम का दुरुपयोग कर रही है जो सहिष्णुता और क्षमा के विचार को बहुत महत्व देता है. इसके अलावा वह इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या को दूसरे मुस्लिम देशों में फैला रहा है जिसका वहां के मानवाधिकारों पर भयानक असर हो रहा है.

यह इस बात का सबूत है कि सऊदी अरब समय के साथ चलने में नाकाम रहा है. अपने यहां वह शरियत के सख्त कानून को लागू कर रहा है जिसकी वजह से इस साल दर्जनों लोगों का सर कलम किया जा चुका है. वह लोगों को बोलने की आजादी तो नहीं ही दे रहा है, महिलाओं को भी समाज में उनकी उचित जगह नहीं दे रहा है. पुलिस द्वारा सख्ती से लागू किए जा रहे धार्मिक विचारों के कारण महिलाओं को कार चलाने की भी इजाजत नहीं दी जाती है.

इसीलिए बदावी इस भ्रष्ट सरकार के लिए खतरनाक हैं. उन्होंने सरकार और धर्म के बीच पृथकता का समर्थन किया है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी है. इन मूल्यों को दूसरे हिस्सों के मुस्लिम देशों में आसानी से स्वीकार किया जाता है लेकिन सऊदी अरब में वह प्रतिबंधित है. अब तक बदावी के हाल पर पश्चिमी देशों में आंशिक दिलचस्पी रही है. उन्हें अरब देशों में भी बहुत समर्थन नहीं मिला है. इसे बदलना होगा. 1000 कोड़ों की सजा पर अमल से उनकी मौत हो सकती है. यह इस उथल पुथल वाले इलाके में पश्चिम के सहयोगी देश में कानूनी हत्या होगी. सऊदी अरब इराक और सीरिया में कट्टरपंथी आईएस के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण सहयोगी होने का दावा कर रहा है. पश्चिम को ऐसे सहयोगी नहीं चाहिए.

स्वीडन की विदेश मंत्री मारगॉट वालस्ट्रोम ने बदावी को दी गई सजा को मध्ययुगीन बताया है. उनका इस शब्द का प्रयोग करना सही है क्योंकि यह सचमुच ऐसा ही है. इस शब्द का इस्तेमाल सऊदी समाज के रवैये के लिए भी किया जा सकता है. इसे पाखंड भी कहा जा सकता है. जबकि बदावी बोलने की मौलिक आजादी के लिए लड़ रहे हैं, सऊदी अरब का धनी संभ्रांत वर्ग अमेरिका और यूरोप में पश्चिमी आजादी का मजा ले रहा है. पश्चिम खुश होकर मेजबानी कर रहा है क्योंकि उनका मानना है कि तेल और खर्च करने की क्षमता के कारण उनसे रिश्ते जरूरी है. पश्चिमी देशों को अपनी नीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है. यह पश्चिमी लोकतंत्र की नैतिक हैसियत पर धब्बा है.