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सऊदी अरब बनाम कतर या ईरान

७ जून २०१७

खाड़ी देशों का कतर पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाना और उसके बाद कतर के साथ राजनयिक संबंधों को समाप्त कर लेना. क्या इसे वाकई आतंकवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता माना जाये या किसी और सोची-समझी रणनीति का हिस्सा.

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Katar Die neuen Hochhäuser der Innenstadt von Doha
तस्वीर: Picture alliance/AP Photo/K. Jebreili

व्हाइट हाउस के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप खाड़ी देशों के बीच पैदा हुये तनाव के जल्द समाप्त होने की उम्मीद कर रहे हैं. हाल ही में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र ने कतर के साथ सभी राजनयिक संबंध तोड़ लिये हैं. अमेरिका ने कहा है कि वह उम्मीद करता है कि खाड़ी देश साथ आकर सही दिशा में आगे बढ़ेंगे. हालांकि वह ट्रंप ही थे जिन्होंने मई में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिये रियाद को चुना था और वहां यह जाहिर भी किया कि सऊदी अरब, अमेरिका का समर्थक है.

रियाद में अपने भाषण के दौरान ट्रंप ने सऊदी अरब के कट्टर प्रतिद्वंद्वी ईरान पर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया. ट्रंप ने कहा कि ईरान हथियारों पर पैसा खर्च करता है और आतंकवादियों, लड़ाकों और अन्य उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षित करता है. इसके अलावा, ट्रंप ने इस बात भी जोर दिया था कि अरब राष्ट्रों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी जमीन पर आतंकवादियों को कोई संरक्षण न मिले.

आतंकवाद का समर्थन

ट्रंप के इस बयान के बाद सऊदी अरब, ईरान के खिलाफ नया मोर्चा बनाने को लेकर काफी उत्साही था और यह कहना गलत नहीं होगा कि कतर इस नये उत्साह को महसूस करने वाला पहला देश बना. अब सवाल उठता है क्यों? आधिकारिक बयान के मुताबिक दोहा से संबंध खत्म करने की सबसे बड़ी वजह है, उसका इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी समूह और सऊदी अरब और बहरीन में कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों को कथित तौर पर समर्थन देना.

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, बहरीन और मिस्र ने कतर को खाड़ी क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा माना है. हालांकि ये भी स्पष्ट है कि खाड़ी देशों के इस फैसले में आतंकवाद कोई कारण नहीं है बल्कि कतर के ईरान के साथ संबंध, सऊदी अरब को हजम नहीं हो रहे.

तेहरान से नजदीकी

यह पूरा मामला कुछ हफ्ते पहले शुरू हुआ, जब कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी ने कथित रूप से ईरान की भूमिका के बारे में सकारात्मक राय व्यक्त की. इसके बाद सऊदी मीडिया ने कतर के विदेश मंत्री की ईरानी रेवॉल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख से मुलाकात के बारे में लिखा. इतना ही नहीं कतर ने ईरान में राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले हसन रोहानी को बधाई भी दी थी.

फिलहाल अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप सऊदी अरब के लिये बहुत ही अहम हैं, क्योंकि वह ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति है जिनका मत सऊदी अरब के साथ मेल खाता है. लेकिन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा का रुख इसके विपरीत था और यही कारण था ओबामा कार्यकाल के दौरान तेहरान के साथ परमाणु समझौता किया गया.

पुराने दुश्मन, नये दुश्मन

सालों से सऊदी अरब ईरान पर अपने यहां हस्तक्षेप कर उसे अस्थिर करने के आरोप लगाता रहा है. सऊदी अरब का आरोप है कि ईरान मध्य पूर्व में अपना दबदबा बढ़ाना चाहता है. उसे यह भी आशंका है कि ईरान उसके पूर्वी इलाकों में रहने वाले शिया अल्पसंख्यकों को भड़का सकता है, जबकि यह क्षेत्र सऊदी अरब के तेल कारोबार के लिहाज से भी बहुत अहम है.

इस बीच ईरान ने इराक और सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में सक्रिय भूमिका निभाकर अरब देशों को चिंता में डाल दिया है और शायद यही कारण है कि सऊदी अरब स्वयं को पहले से ज्यादा घिरा हुआ महसूस कर रहा है. सऊदी अरब अपने निकट पड़ोसी और सहयोगी संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन पर भरोसा करता रहा है. मिस्र भी वित्तीय मामलों को लेकर बहुत हद तक रियाद पर निर्भर है लेकिन हाल के सालों में तेहरान के साथ मिस्र की नजदीकी ने सऊदी अरब को झुंझला दिया है.

राजनीतिक स्वतंत्रता

करीब 30 लाख की आबादी वाले कतर की राजनीतिक स्वतंत्रता भी रियाद के लिये परेशानी का सबब है. हालांकि कतर और ईरान शेख हमद बिन खलीफा अल-थानी के शासन के दौरान साल 1995 से 2013 के बीच एक दूसरे के बेहद करीब आये और दोनों देशों ने मिलकर एक प्रमुख गैस क्षेत्र पर दावा भी जताया, लेकिन आधिकारिक रूप से दोनों सहयोगी नहीं है.

इस कारण भी सऊदी अरब कतर पर निजी हित साधने के आरोप लगाता रहा है क्योंकि सऊदी अरब और कतर दोनों ही गल्फ कॉरपोरेशन काउंसिल के सदस्य हैं लेकिन ईरान इसमें शामिल नहीं है. इन सब के इतर, कतर की मीडिया कंपनी अल-जजीरा ही वह चैनल था जो अरब क्रांति से दुनिया को रूबरू करा रहा था. इसका अरब चैनल खुले आम मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता नजर आता है और मुस्लिम ब्रदरहुड को सऊदी शासक अपनी सत्ता के लिये खतरा मानते हैं.  

अब क्या?

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और मिस्र आदि देशों का कतर से संबंध तोड़ने का फैसला महज एक धमकी नहीं है बल्कि इसका मकसद कतर को घेरना है, जो भोजन जैसी अहम वस्तुओं के लिये भी आयात पर निर्भर करता है. साल 1971 में आजाद हुआ कतर फिलहाल अब तक के सबसे गंभीर कूटनीतिक संकट का सामना कर रहा है.

वहीं सऊदी अरब ट्रंप के दौरे से इतना आत्मविश्वास महसूस कर रहा है कि वह अमेरिका के कतर से अपना विशाल हवाई बेस हटाने के बारे में बात कर रहा है. लेकिन अब सवाल यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इस संकट को लेकर कितने प्रतिबद्ध है.

दियाना होडाली/एए