संकट में शरीफ ने लिया सेना का सहारा
२९ अगस्त २०१४पिछले दो हफ्तों से प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे की मांग पर अड़े तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान और धार्मिक नेता ताहिर उल कादरी ने गुरुवार देर शाम सेना प्रमुख राहील शरीफ से मुलाकात की. प्रधानमंत्री से बातचीत को लेकर दोनों सेना प्रमुख के मध्यस्थ और गारंटर के तौर पर भूमिका पर सहमत हो गए हैं.
लोकतांत्रिक तरीके से सरकार के आने के एक साल बाद ही यह चाल सेना की राजनीति में आने की संभावित वापसी के तौर पर है. पाकिस्तान में राजनीतिक उठापटक का लंबा इतिहास है, राजनीति में सेना की दखल भी कोई नई बात नहीं है. खुद शरीफ को सेना ने 1999 में तख्ता पलट कर सत्ता से बाहर कर दिया था.
इस बार उन्होंने दृढ़ता के साथ सेना से आजादी पाने के लिए पाकिस्तान के पुराने प्रतिद्वंद्वी भारत से अनुकूल नीतियों की तरफ कदम बढ़ाया. तालिबान से शांति वार्ता करने की भी कोशिश की, जिसने थोड़ी प्रगति भी की.
शरीफ कमजोर, सेना मजबूत
ऐसा माना जाता है कि पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मामला चलाने के फैसले से सेना शरीफ से नाराज हो गई है. परवेज मुशर्रफ ने ही नवाज शरीफ का तख्ता पलट किया था. लेकिन उनकी सबसे बड़ी चुनौती पिछले दो हफ्ते से जारी विरोध प्रदर्शन बनकर उभरी. राजधानी में विरोध प्रदर्शनों में लाखों लोग शामिल हुए और शरीफ के इस्तीफे की मांग की. पिछले साल के चुनावों में धांधली का आरोप लगाकर इमरान खान की पार्टी शरीफ का इस्तीफा मांग रही है.
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने मध्यस्थता के प्रस्ताव का स्वागत किया है. सेना को बातचीत के लिए शरीफ के कहने के बाद यह प्रस्ताव आया है. रक्षा मंत्री ने जियो न्यूज टीवी से कहा, "मुझे लगता है कि हमें इसे सकारात्मक रूप में देखना चाहिए कि सेना संवैधानिक और कानूनी भूमिका निभा रही है." अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि सेना दोनों के बीच कोई समझौता करा पाएगी की नहीं.
मुलाकात के बाद इमरान खान ने कहा कि जनरल ने उनसे कहा है कि सेना धांधली के आरोपों की जांच के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक जांच की गारंटी दिलवाएगी. पर साथ ही इमरान खान का कहना है कि उन्होंने साफ कर दिया है कि जब तक नवाज शरीफ प्रधानमंत्री हैं तब तक स्वतंत्र जांच नहीं हो सकती है.
एए/आईबी (एपी,रॉयटर्स)