शादी पर बेइंतहा खर्च रोकना जरूरी: रंजीत रंजन
२८ फ़रवरी २०१७इस तरह के विधेयक को पेश करने के पीछे आपका मुख्य उद्देश्य क्या है?
इसका मुख्य उद्देश्य शादियों पर किये जाने वाले बेइतंहा खर्च को रोकना है. देश की नौजवान पीढ़ी, यहां तक कि निम्न मध्यवर्गीय परिवारों ने भी शादियों को भव्यता के साथ मनाना शुरू कर दिया है और ये चिंताजनक है. ये हमारा दुर्भाग्य है कि अब इसे स्टेटस सिंबल की तरह देखा जाने लगा है और युवा वर्ग अपनी शादियों को शानदार बनाने की होड़ में लगा हुआ है. जिंदगी भर की अपनी कमाई से जो पैसा आदमी जोड़ता है उसका करीब पांचवा भाग वह ऐसी शादियों में खर्च कर देता है. कभी तो जमीन जायदाद गिरवी रखकर भी लोग पैसे लेते हैं. बहुत से अमीर परिवार बेहिसाब पैसा खर्च करते हैं इसलिए इस तरह के विधेयक को लाने की आवश्यकता है.
इस विधेयक के खास बिंदु?
अगर किसी परिवार को पांच लाख तक रुपये शादी पर खर्च करने हैं तो उन्हें इस खर्च की घोषणा पहले से करनी होगी और इसका 10 फीसदी हिस्सा वेलफेयर फंड में देना होगा और उस पैसे को गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों की बेटियों की शादी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. विधेयक के मुताबिक सरकार शादियों में आने वाले मेहमानों की संख्या तय कर सकेगी. साथ ही इस अवसर पर पेश किये जाने वाले व्यंजनों की सीमा को भी निश्चित किया जा सकेगा ताकि खाने की बर्बादी को रोका जा सके.
जिन लोगों के पास पैसा है वे इसे अपने बच्चों की शादी पर खर्च करना चाहते हैं. वे आपकी इस पहल का विरोध कर सकते हैं?
जहां लोग दो वक्त के खाने के लिए तरसते हैं और बहुत से परिवार दो वक्त का खाना भी नहीं जुटा पाते वहां ऐसी शादियों की अनुमति देना किसी ढोंग से कम नहीं है. सरकार के नोटबंदी के फैसले के बाद कर्नाटक के मंत्री जनार्दन रेड्डी अपनी बेटी की शादी में 500 करोड़ रुपये खर्च कर डालते हैं. इसलिए जरूरी है कि ऐसे खर्च पर लगाम लगे. जब सरकार महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए खाते खोल सकती है तो शादी के लिए क्यों नहीं.
अगर विधेयक कानूनी रूप ले लेता है तो क्या शादियों के खर्च को लेकर लोगों के नजरिये में बदलाव आयेगा?
जम्मू कश्मीर सरकार शादियों में मेहमानों की संख्या और इस मौके पर पकाये जाने वाले व्यंजनों पर 1 अप्रैल से ऐसा ही कानून लागू करने जा रही है. बेटी और बेटे की शादियों में 400-500 मेहमानों की संख्या तय कर दी गई है और सगाई जैसे छोटे कार्यक्रमों में अधिकतर 100 मेहमानों को बुलाने की सीमा रखी गई है. अगर ऐसे कानून जम्मू कश्मीर में लागू हो सकते हैं तो पूरे देश में क्यों नहीं.
इंटरव्यू: मुरली कृष्णन