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सही समय पर बात कहने की जरूरत

डागमार एंगल/आईबी१ सितम्बर २०१५

यूरोप में चल रहे शरणार्थी संकट को ले कर जर्मनी की नीति बिलकुल साफ है, बिना किसी अगर मगर के. डॉयचे वेले की डागमार एंगल का कहना है कि अंगेला मैर्केल को सही समय चुनने की जरूरत है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld

बर्लिन में चांसलर की वार्षिक प्रेस कांफ्रेंस में अंगेला मैर्केल ने शरणार्थी नीति से जुड़े सवालों पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने अपना साफ रुख रखा.

1. राजनीतिक शरण, युद्ध और उत्पीड़न से बचाव के मौलिक अधिकार का सम्मान किया जाएगा.

2. लोग किसी भी मूल के हों, उनका शरण लेने का इरादा हो या ना हो, हर हाल में उनकी मानव गरिमा की सुरक्षा के मौलिक अधिकार का सम्मान किया जाएगा.

3. जो भी व्यक्ति इन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगा, जो भी जर्मनी आने वालों का उत्पीड़न करेगा, शरणार्थी शिविरों में आगजनी करेगा, उसे कानून के अंतर्गत कड़ी सजा दी जाएगी.

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डॉयचे वेले की डागमार एंगल

मैर्केल ने उग्र दक्षिणपंथियों के विचारों का बचाव करने की कोई कोशिश नहीं की क्योंकि कोई भी दलील शरणार्थियों और विस्थापितों के खिलाफ घृणित कार्रवाई को सही नहीं ठहरा सकती. विदेशियों से नफरत करने वालों से चांसलर बात नहीं कर रहीं. उनका बस चलता, तो वे उनके बारे में भी बात नहीं करतीं. चांसलर का किसी भी रूप में उनके बारे में बात करना, केवल उन्हें बढ़ावा ही देगा. "उनसे दूर रहिए", यह कह कर मैर्केल ने ना केवल अपनी जनता को चेतावनी दी, बल्कि साथ ही एक नया सकारात्मक रास्ता भी अपनाया. मैर्केल ने उन लोगों का आभार व्यक्त किया जो शरणार्थियों की मदद के लिए आगे आए हैं. उनका कहना है कि उन्हें इस बात पर नाज है कि मदद करने वाले नागरिकों की संख्या नफरत फैलाने वाले तत्वों से काफी ज्यादा है. उन्होंने शरणार्थी संकट पर रिपोर्टिंग के लिए जर्मन मीडिया की भी तारीफ की.

लेकिन यहां मुद्दा है उनकी टाइमिंग का. काश कि ये शब्द एक सप्ताह पहले कहे गए होते. या फिर उससे भी पहले. फ्रायटाल में बनने वाले शरणार्थी शिविर के खिलाफ मोर्चे कई हफ्ते पहले निकाले गए. उसके बाद हाइडेनाउ में भी ऐसे कई प्रदर्शन हुए. शायद इन्हें तब ही रोका जा सकता था. "जब भी कोई अहम मुद्दा उठे, तो हमें उस पर बहस करनी चाहिए", यह बात भी अंगेला मैर्केल ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही. लेकिन जब बात मौलिक अधिकारों की होती है, तो उन पर किसी बहस की जरूरत नहीं होती, बल्कि केवल सही वक्त पर सही रुख दिखाने की जरूरत होती है.