वो दर्दनाक आठ साल
७ सितम्बर २०१०जमीन के नीचे बने एक कमरे में बंधक की तरह गुजरे आठ सालों ने नताशा कैम्पुश का सामना ज़िंदगी के उस पहलू से कराया जो बेहद खौफनाक है. अपहरण करने वाले वोल्फगैंग ने उसे भूखा रखा, उसकी इतनी पिटाई की वो पीठ के बल सो नहीं पाती थी और उसे अर्धनग्न अवस्था में घर की सफाई करनी पड़ती थी. इन आठ सालों के एक एक पल का हिसाब नताशा ने अपनी किताब 3096 डेज में लिखा है. जर्मन भाषा में लिखी ये किताब मंगलवार को वियना में जारी हुई. जल्दी ही इसका अंग्रेजी अनुवाद भी बाज़ार में आएगा.
नताशा अगस्त 2006 में अपहरणकर्ता के चंगुल से भागने में कामयाब हो गई. इसके कुछ ही घंटो बाद अपहरणकर्ता प्रिक्लोपिल वोल्फगैंग ने खुदकुशी कर ली. नताशा ने अपने बचपने से ही खुद को बचाए रखा. अपहरण के कुछ ही दिनों बाद उसे समझ में आ गया था कि कब वोल्फगैंग को प्यार से और कब गुस्सा दिखाकर काबू में करना है.
10 साल की उम्र में स्कूल जाते वक्त नताशा को अगवा कर लिया गया. नताशा याद करती है कि शुरुआत में बिना खिड़कियों वाले कमरे में रहने की मजबूरी में उसने खुद को चार पांच साल की बच्ची बना लिया. अब 22 साल की हो चुकी नताशा कहती है, " जब वो मेरे कमरे के करीब आता तो मैं उसे अपने साथ रहने के लिए कहती, मुझे बिस्तर पर ठीक से सुलाने के लिए कहती और रात को सोते वक्त कहानी सुनाने की फरमाइश करती. यहां तक कि मैंने उससे मेरी मां की तरह गुडनाइट किस करने को भी कहा."
नताशा कहती हैं कि वो बहुत डर गई थीं और उन्हें लगता था कि वो उनको मार डालेगा. अपनी इन हरकतों को नताशा हताशा के आलम में राहत पाने की कोशिश के रूप में देखती हैं. बाद के सालों में नताशा ने अपने पास नोटबुक भी रखा और उनमें डायरी की तरह अपने अनुभव लिखती रहीं. डरावनी कहानियां लिखने वाले दो लेखकों की मदद से अब यही डायरी नताशा की किताब का आधार बनी है.
नताशा को बंदी के रूप में यौन और मानसकि उत्पीड़न झेलना पड़ा. प्रिक्लोपिल दिन रात इंटरकॉम के जरिए उस पर चीखता रहता और अपना हुक्म पूरा करने को कहता. उसने नताशा का सिर मूंड दिया और उसके बाल जला दिए जिससे कि किसी को डीएनए सबूत ना मिल सकें. प्रिक्लोपिल उसे खाना भी नहीं देता था.
नताशा कहती हैं, "इन सब तरीकों का इस्तेमाल कर वो मुझे कमजोर और बेबस बनाए रखता था मैं उसकी बात मानने के लिए मजबूर थी क्योंकि मुझे खाना चाहिए था". नताशा ने कई बार खुद की जान लेने की भी कोशिश की. आठ सालों के दौर में कई बार ऐसा वक्त आया जब उसके बारे में दुनिया को पता चल सकता था. एक बार तो पुलिस ने प्रिकोल्पिल के कार को तलाशी के लिए रोका भी था. पुलिस की जांच में पता चला है कि नताशा को अगवा वोल्फगैंग ने अकेले ही किया उसने किसी और की मदद नहीं ली.
आखिरकार नताशा 2006 में उसकी चंगुल से भाग निकलने में कामयाब हो गई. बीते चार सालों में नताशा ने टेलीविजन पर टॉक शो किए और कई बार मीडिया के सामने भी आई. उसकी कहानी पर बनी फिल्म 2012 में रिलीज होगी. अपनी किताब में ही एक जगह नताशा ने लिखा है "अब मैं आज़ाद हूं."
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह