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वो जीवन में पहली बार वोट डालेंगे

१५ अप्रैल २०१६

पश्चिम बंगाल के चुनावों में इस बार हजारों लोग पहली बार वोट डालेंगे. ये ऐसे लोग हैं जो सात दशकों तक दो देशों की बीच उलझे रहे.

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तस्वीर: DW/P. Tewari

सुरधनी बर्मन की उम्र 103 साल की है. उन्होंने अपने लंबे जीवन में बहुत कुछ देखा है. लेकिन एक बात का उनको हमेशा अफसोस था कि वह कभी किसी मतदान केंद्र के भीतर जाकर अपना वोट नहीं डाल सकी थीं. लेकिन अबकी पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों में उनका यह अफसोस भी दूर हो जाएगा. उनकी तरह कम से कम 10,000 लोग अबकी जीवन में पहली बार अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे.

देश की आजादी के बाद से ही भारत की सीमा में स्थित बांग्लादेशी भूखंडों में रहने वाले लोग कहने को तो बांग्लादेशी थे. लेकिन उनके पास किसी भी देश में मतदान का अधिकार नहीं था. वह न घर के थे न घाट के. भारत या बांग्लादेश में से कोई भी उनको अपना नागरिक नहीं मानता था. अब बीते साल ऐतिहासक जमीन सीमा समझौते के तहत इन भूखंडों की अदला-बदली के बाद इनमें रहने वाले 14,864 लोगों को भारतीय नागरिकता मिल गई है. इसके अलावा बांग्लादेश स्थित भारतीय भूखंडों में रहने वाले 922 लोगों ने भी सीमा पार कर भारतीय नागरिक बनने का फैसला किया. इनमें से 18 साल की ऊपर वाले 9,776 लोगों को वोटर कार्ड भी मिल गया है. अब उनको बेसब्री से उस दिन का इंतजार है जब वे मतदान केंद्र के भीतर जाकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के चुनाव चिन्ह के सामने बटन दबाकर पहली बार अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इन लोगों को चार विधानसभा क्षेत्रों में बांट दिया गया है. दिनहाटा, मेखलीगंज, शीतलकुची और सिताई विधानसभा क्षेत्रों में इन नए नागरिकों के लिए 41 नए मतदान केंद्र बनाए गए हैं.

नए वोटरों में उत्साह

इन नए वोटरों में चुनाव को लेकर भारी उत्साह है. मशालडांगा के रोशन सरकार कहते हैं, "हमें आजादी के कोई सात दशकों बाद वोट देने का अधिकार मिला है. ऐसे में हमारी खुशी स्वाभाविक है." वोट किसे देंगे ? इस सवाल पर वह कहते हैं कि जो हमारे हित में काम करने का भरोसा देगा, हमारा वोट उसी को जाएगा. इन नए वोटरों में कई काफी उम्रदराज हैं. मिसाल के तौर पर चार लोगों की उम्र सौ साल से ऊपर है. इसके अलावा 90 से 100 साल की उम्र वाले नौ वोटर हैं और 80 से 99 की उम्र वाले चार. हाल में जिला प्रशासन ने इन भूखंडो में शिविर लगा कर नए वोटरों को वोटर कार्ड बांटे थे. उस समय उन सबकी खुशी देखते ही बन रही थी. कूचबिहार के जिलाशासक पी उलंगनाथन कहते हैं, "लोगों में भारी उत्साह है. पहली बार मतदान करने के नाम पर सौ साल के बुजुर्ग भी बच्चों की तरह खुश हैं."

Indien eingestüzte Straßenüberführung in Kalkutta
मुख्य मुकाबला तृणमूल और लेफ्ट के बीचतस्वीर: P. M. Tewari

अहम भूमिका

सबसे ज्यादा लगभग पांच हजार वोटर दिनहाटा विधानसभा क्षेत्र में मतदान करेंगे और यह लोग किसी भी उम्मीदवार की किस्मत तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इस सीट पर फॉरवर्ड ब्लाक और तृणमूल कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है. इलाके में बरसों तक दिनहाटा सीट से जीतने वाले फॉरवर्ड ब्लाक के वरिष्ठ नेता कमल गुहा के पुत्र उदयन गुहा ने पिछली बार यह सीट जीती थी. वह अबकी तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं. उदयन कहते हैं, "इलाके के नए वोटर मुझे अच्छी तरह पहचानते हैं. तृणमूल कांग्रेस सरकार इन भूखंडों में रहने वालों के हित में शुरू की गई योजनाएं और तेज करेगी."

इसके बाद सबसे ज्यादा दो हजार नए वोटर सिताई विधानसभा क्षेत्र में हैं. यही वजह है कि तमाम राजनीतिक दलों के उम्मीदवार इन भूखंडों के चक्कर काट रहे हैं. एक वोटर मोहम्मद अजगर अली कहते हैं, "यह हमारे लिए एक नया और अनूठा अनुभव है. सात दशकों तक किसी ने हमारी सुध नहीं ली थी और अब हर राजनीतिक दल हमारा सबसे बड़ा शुभचिंतक होने का दावा कर रहा है. हमारी अहमियत अचानक बढ़ गई है."

वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने कूचबिहार संसदीय क्षेत्र में स्थित सात में से तीन सीटें जीती थीं. बाकी चार पर फॉरवर्ड ब्लाक का कब्जा रहा था. अबकी तृणमूल कांग्रेस का प्रचार इसी बात पर केंद्रित रहा है कि इन भूखंडों की अदला-बदली और इन बेघर लोगों को एक नई पहचान दिलाने में उसकी सरकार की अहम भूमिका रही है. इलाके में जहां-तहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पोस्टर लगे हैं जिसमें इस बात का प्रमुखता से जिक्र किया गया है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

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