वैज्ञानिकों ने सीओटू को पत्थर में बदला
१० जून २०१६आइसलैंड में वैज्ञानिकों ने 230 टन कार्बन डायऑक्साइड जमीन के भीतर मौजूद ज्वालामुखीय चट्टान में पंप किया. फिर उसके पीछे बहुत सारा पानी डाला ताकि सीओटू वापस ऊपर न लौटे. गैस और पानी को 400 से 500 मीटर की गहराई में भेजा गया. वहां मौजूद बसॉल्ट्स ने सीओटू के साथ रासायनिक क्रिया की और कोर्बोनेट मिनरल्स बनाए. वैज्ञानिकों ने प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए ट्रेसर केमिकल्स भी डाले. इसके बाद जो हुआ वो हैरान करने वाला था. दो साल के भीतर कार्बन डायऑक्साइड गैस चूनापत्थर (लाइमस्टोन) में बदल गई.
वैज्ञानिकों ने हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ भी ऐसा ही किया और वह गैस भी खनिज में बदल गई. कोलंबिया यूनिवर्सिटी भी ऐसी ही प्रयोग कर रही है. वहां के वैज्ञानिकों के मुताबिक ओमान में पाये जाने वाली चट्टान भी इसी प्रक्रिया से बनी हो सकती हैं. यह चट्टान बसॉल्ट से भी बेहतर साबित हो सकती हैं.
इसे जलवायु परिवर्तन के लिहाज से भी क्रांतिकारी खोज कहा सकता है. जैविक ईंधन जलने से पैदा होने वाली कार्बन डायऑक्साइड वातावरण को गर्म कर रही है. लेकिन अब इसे पत्थर के रूप से स्टोर किया जा सकेगा. इस प्रक्रिया को कार्बन कैप्चर ऐंड स्टोरेज (सीसीएस) नाम दिया गया है. वैज्ञानिक भी इस प्रक्रिया की तेजी से भी हैरान हैं, सब दो साल के भीतर हो गया. रिसर्च प्रमुख जुएर्ग मैटर यूके की साउथ हैम्पटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक हैं. मैटर के मुताबिक, "हमें बढ़ते कार्बन उत्सर्जन से निपटना है और यह जबरदस्त स्थायी स्टोरेज है, वापस पत्थर बना देना."
मैटर मानते हैं कि इस तकनीक को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी आड़े आ रही है. वह कहते हैं, "सीसीएस इंजीनियरिंग और तकनीक तैनाती के लिए तैयार है. लेकिन इसके बावजूद हमें इस प्रोजेक्ट में अड़चन क्यों आ रही है? क्योंकि इसमें कोई फायदा नहीं है."
आइसलैंड में चल रहे सीसीएस प्रोजेक्ट के तहत वैज्ञानिक 10,000 टन कार्बन डायऑक्साइड को साल भर में जमीन के भीतर भेज सकते हैं. बसॉल्ट रॉक दुनिया भर में जमीन से लेकर समंदर तक मिलती है. मैटर कहते हैं, "भविष्य में हम पावर प्लांट ऐसी जगह लगा सकते हैं, जहां बहुत सारा बसॉल्ट हो." ऐसा करने के पर ऊर्जा भी मिलेगी और बाहर निकलने वाली सीओटू को सीधे बसाल्ट रॉक में दबाकर चूनापत्थर में तब्दील किया जा सकेगा.
यह प्रयोग अमेरिका में भी सफलता से किया गया. वैज्ञानिकों के मुताबिक पारंपरिक ईंधन का इस्तेमाल कर रहे भारत के दक्कन के इलाके में भी बसॉल्ट भारी मात्रा में है. सीसीएस तकनीक वहां भी अपनाई जा सकती है.
फिलहाल वैज्ञानिक इस तकनीक से जुड़ी एक समस्या को हल करना चाहते हैं और वह है अथाह पानी की जरूरत. एक टन सीओटू को चूना पत्थर में बदलने के लिए 25 टन पानी की जरूरत पड़ रही है. लेकिन वैज्ञानिकों को लगता है कि समुद्र के खारे पानी से भी काम चलाया जा सकता है.