विषमता का देश अंगोला
दक्षिण अफ्रीकी देश अंगोला को 1975 में पुर्तगाल से आजादी मिली. लेकिन 2002 तक देश में गृहयुद्ध चलता रहा. जानिए आज कैसे हैं वहां के हालात.
स्लमों में कटती जिंदगी
अंगोला की राजधानी लुआंडा के करीब काजेंगा में 40 वर्ग किलोमीटर के इलाके में 400,000 लोग रहते हैं. रास्ते पक्के नहीं हैं, सभी घरों में बिजली नहीं है. सत्ताधारी एमपीएलए पार्टी के बहुत से नेता इस इलाके से आते हैं, लेकिन किसी ने काजेंगा की सुध नहीं ली है.
एक पार्टी, एक नेता
"एमपीएलए राष्ट्रपति की पार्टी है. वे गृहयुद्ध के बाद से सत्ता सौंपने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लोग उन्हें ही चाहते हैं. इसलिए वे सत्ता में बने हुए हैं." यह कहना है कि 27 वर्षीय यूरीक्लेरिवाल वास्को का, जिन्होंने 2012 में इस पार्टी को चुना. आलोचकों का कहना है कि दोस सांतोस ने अब तक कोई वादा पूरा नहीं किया है.
बेरोजगार लोग
करीब 40 प्रतिशत अंगोलावासी 1 डॉलर प्रति दिन पर जी रहे हैं. बहुत से लोगों को देश में मिले तेल से होने वाली आमदनी से रोजगार मिलने और जिंदगी के बेहतर होने की उम्मीद थी. लेकिन वह उम्मीद ही क्या जो पूरी हो जाए. वे रोज कमा खा रहे हैं. इस विक्रेता की तरह जो बिस्कुट बेचकर अपने परिवार का गुजारा चलाता है.
लुआंडा की लग्जरी
तेल से होने वाली आमदनी राजधानी लुआंडा तक ही पहुंची है. यह इस बीच दुनिया के सबसे खर्चीले शहरों में शामिल हो गया है. एक अपार्टमेंट का किराया 5000 डॉलर तक है. यहां की सबसे ज्यादा अमीरी खासकर समुद्र तट पर बसे इलाके बाया दे लुआंडा में दिखती है. पूरे शहर में बहुमंजिली इमारतें खड़ी होती जा रही हैं.
अंगोला का कैपिटल हिल
बाया दे लुआंडा में ही अंगोला का नया संसद भवन बन रहा है. सत्ताधारी एमपीएलए पार्टी के पास संसद में 220 में से 175 सीटें हैं. गृहयुद्ध में वामपंथी एमपीएलए के खिलाफ लड़ने वाली यूनीटा सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. उसकी 32 सीटें हैं. अंगोला के राजनीतिक परिदृष्य पर एमपीएलए का सख्त शिकंजा है.
अंगोला के दबंग
राष्ट्रपति होसे अदुआर्दो दोस सांतोस की तस्वीर चुनावी पोस्टर से झांक रही है. आलोचकों का कहना है कि उनका कार्यकारी से लेकर न्यायिक और विधायी सत्ता पर नियंत्रण है. वे 33 साल से अंगोला पर शसासन कर रहे हैं. 1979 में वे गृहयुद्ध में फंसे अंगोला में आगुस्तिन्यो नेटो की जगह पर पार्टी और सरकार के नेता बने थे.
रिकॉर्ड पुनर्निर्माण
राजधानी से दूर देहाती इलाकों में गृहयुद्ध के समय की बारूदी सुरंगे हर कहीं छितरी दिखाई देती हैं. 2002 में गृहयुद्ध समाप्त हो गया लेकिन सोयो का इलाका अभी भी युद्ध की छाप लिए है. लेकिन प्रांतों को सड़कों के साथ जोड़ दिया गया है. 2002 से पहले सड़कों से देश में सफर करना नामुमकिन था.
समुद्र से आई समृद्धि
अंगोला की समृद्धि सिर्फ तेल भंडारों में नहीं है. समुद्र तट के पास ही से प्राकृतिक गैस भी निकलती है. हालांकि अंगोला अपने तेल पर बुरी तरह निर्भर है.
प्राकृतिक तेल कोष
2012 में सरकार ने देश के अंदर और बाहर निवेश करने के लिए एक प्राकृतिक तेल कोष शुरू किया. इस कोष की मदद से सरकार तेल के बढ़ते घटते दामों के असर को कम करने की उम्मीद कर रही है. तेल के भंडार तीस साल ही रहेंगे, विकल्प कृषि क्षेत्र का विकास है.
विदेशी निवेश
अंगोला में अकसर चीनी कंपनियों के विज्ञापन देखे जा सकते हैं. देश में रहने वाले विदेशियों में सबसे ज्यादा तादाद चीनियों की है. उसके बाद यूरो संकट से निबट रहे पुर्तगालियों और सांस्कृतिक रूप से निकट ब्राजील के लोगों की बारी आती है. चीनी निवेशकों से प्रतिस्पर्धा में असमर्थ ब्राजील तकनीकी प्रशिक्षण पर ध्यान दे रहा है.
बेघर शिक्षक
शिक्षक फर्नांडो पिंटो डोंडी का कहना है कि अंगोला की सरकार को सड़कों के बदले लोगों में निवेश करना चाहिए. उनका मासिक वेतन 300 डॉलर है जिससे वे पांच बच्चों वाले परिवार का खर्च चलाते हैं. वे बेघर हो गए हैं और वायना के इलाके में रहते हैं. उनका लुआंडा का पुराना घर सरकारी सड़क परियोजना के हत्थे चढ़ गया.
कहां जा रहा है धन?
अंगोला 182 देशों की ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्टाचार सूची में 168वें नंबर पर है. सरकार पर गबन और धोखाधड़ी के आरोप हैं. उनका कहना है कि 2007 से 2010 के बीच सरकारी तेल कंपनी सोनंगोल की 32 अरब डॉलर की आमदनी संरचना विकास पर खर्च हुई. वह यह नहीं बता रही कि किन परियोजनाओं पर.