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विश्व फुटबाल कप 2010 शुरू

१४ जून २०१०

फुटबॉल वर्ल्ड कप 2010 पर हिंदी विभाग द्वारा दी गई रिपोर्टे, वेब साइट पर लिखे आलेखों पर श्रोताओं की प्रतिक्रियाएं, साथ ही हमारे कार्यक्रम किस प्रकार लुभा रहे है, आईए जानें अपने श्रोताओं से....

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मैक्सिकन और दक्षिण अफ्रीकी समर्थक फीफा विश्व कप 2010 के उद्घाटन समारोह परतस्वीर: picture-alliance/dpa

वेस्टवॉच में एआरडी प्रसारण नेटवर्क के जर्मनी में पिछले 6 दशकों के इतिहास पर चर्चा सुनी. जर्मनी में एआरडी चैनल का महत्व, उसका आज तक का सफ़र और उसकी संघटक प्रसारण संस्थाओं के बारे में जानकारी मिली और यह भी जानने को मिला कि डॉयचे वेले भी एआरडी के अंतर्गत ही आता है. इस सप्ताह अंतरा कार्यक्रम का नया अंक सुना. द स्टोरी ऑफ द वीपिंग कैमल यानी रोते हुए ऊँट की कहानी और द टू होर्सस ऑफ जेंगिस खान यानी चंगेज़ खान के दो घोडे जैसी फिल्मों की मंगोलियाई निर्देशक महिला को समर्पित आज का कार्यक्रम सुनकर इस महिला निर्देशक और मंगोलिया देश की काफी कुछ नई जानकारी मिली. मंगोलिया में बिना सुविधा के निर्देशक का काम करने वाली महिला का काम काफी सराहनीय लगा.

संदीप जावले और सविता जावले, मारकोनी डीएक्स क्लब, पारली वैजनाथ, (महाराष्ट्र)

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20 मई के अंतरा कार्यक्रम में प्रियाजी से काफी दिलचस्प जानकारी पाई जिसमें उन्होंने महिला पंडितों को तरजीह देने के सम्बन्ध में काफी दिलचस्प जानकारी दी. महिला पंडित होना वर्तमान समय को देखते हुए कोई गलत नहीं है. उनकी यह विशेषता कि वे मंत्रो का भावार्थ समझती हैं, अच्छी बात है. इसे पुरानी परम्पराओं व आधुनिकता का मेल कहा जायेगा.

उमेश कुमार शर्मा, स्टार लिस्नर्स क्लब, नारनौल, हरियाणा

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Vulkan
तस्वीर: AP

मैं आपका प्रोग्राम रोज़ सुनता हूं. दिनांक 09.06.2010 को आभाजी द्वारा प्रस्तुत लाइफ लाइन कार्यक्रम में ज्वालामुखी बने पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र के बारे में रोमांचक चर्चा मुझे बहुत ही अच्छी लगी. प्रकृति कितनी भी खतरनाक होने से क्या हुआ, उसका अपार रूप फिरभी कितना लुभावना होता है. इसके अलावा जापान, भारत, अमेरिका, और जर्मनी जैसे नाना देशों के ज्वालामुखीओं के बारे में भी पता चला.

पंकज बिहानी, गावं गौरंगापुर, मेदिनीपुर , पश्चिम बंगाल

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आपके प्रोग्राम का शाम का प्रसारण मैं बराबर सुन रहा हूं. डॉयचे वेले हिंदी का रिसेप्शन 9655 पर बहुत अच्छा है. खेल के प्रोग्राम में आपने फुटबाल वर्ल्ड कप के बारे में अफ्रीका की सैर करा दी. इतनी अच्छी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

जलील अहमद हाश्मी, हाश्मी लिस्नर्स क्लब, खानपुर, पाकिस्तान

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Deutsche Nationalmannschaft Mannschaftsfoto 2. Juni 2010 vor der WM in Südafrika
जर्मन फुटबॉल टीम दक्षिण अफ्रीका मेंतस्वीर: picture-alliance/dpa

फुटबॉल विश्व कप शुरू हो गया है और हमारे क्लब के सभी सदस्य तो जर्मन फुटबॉल टीम के समर्थक है. हमने जर्मनी के काफ़ी सारे झंडे और फोटो अपने इलाके में लोगों में बांटे. यहां तो सभी पुरुष जर्मन टीम के ही समर्थक हैं. सभी ओर जर्मनी के झंडे लगे हुए है. हमारा इलाका तो इस समय जर्मनी का एक शहर दिखाई दे रहा है.

देवन रफीक इस्लाम (राणा), फ्रैंडस रेडियो क्लब, नोगांव, बंग्लादेश

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डॉयचे वेले की हिंदी वेब साईट पर प्रेस समीक्षा ऊंची विकास दर और भारत की चुनौतियां पढ़ा. आंकड़ों की भाषा में अर्थशास्त्री भारत को वर्ष 2020 में एक विकसित अर्थव्यवस्था बताकर एकध्रुवीय विश्व में शक्ति संतुलक के रूप में स्थापित होने की बात करते हैं. शहरी और ग्रामीण क्षेत्र को मिला लें तो 15 करोड़ लोगों को रहने को घर नहीं है. अभी भी देश के एक तिहाई लोग अपना नाम तक लिखना नहीं जानते. आज भी दुनिया के एक तिहाई ग़रीब भारत में बसते हैं तो एक चौथाई सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का बसेरा भी यहीं है. पिछले 20 वर्षों में अरबपतियों की संख्या सैकड़ों में पहुंची है. मॉल और मल्टीप्लेक्सों की संख्या दस गुना बढ़ी है. कॉस्मेटिक उत्पादों की खपत कई गुना हो चुकी है. यह कैसा देश है जहां साफ्टवेयर प्रोफेशनलों और निरक्षरों की संख्या साथ-साथ बढ़ रही है? यह कैसा देश है कि जहां इंजीनियरों और बेघरों की संख्या साथ-साथ बढ़ रही है? यहां हर बजट के बाद कंप्यूटर, टीवी, फ़्रिज, एयर कंडीशनर के दाम गिर रहे हैं और गेहूं, चावल, नमक, चीनी के दाम बढ़ रहे हैं. दुनिया का हर चौथा अनपढ़ एक भारतीय है तो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में हम दुनिया के पांच अव्वल देशों में शामिल हैं. यानी कश्मीर की कड़कड़ाती ठंड से लेकर राजस्थान की कहर बरसाती गर्मी और असम के वर्षा वनों तक जितनी विविधता इस देश की जलवायु में है, शायद उतना ही गहरा फ़र्क है यहां के लोगों के जीवन स्तर में. सेंसेक्स हवा भरे गुब्बारे-सा दिन-दिन ऊंचा जा रहा है और बाज़ार, समर्थ उपभोक्ताओं के सामने तरह-तरह के सामानों का शोरूम सजा रहा है लेकिन क्या ये हमारे देश के बहुसंख्यक का यथार्थ है? क्या 17 हज़ार की जादुई ऊंचाई छूते सेंसेक्स का उस 60 फीसदी आबादी से कुछ भी ताल्लुक है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ कृषि पर आधारित है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की हालिया रिपोर्ट बताती है कि विश्व की अर्थव्यवस्था में विस्तार तो हुआ है पर रोज़गार के अवसर घटे हैं. यानी अवसर बढ़ने की बात तो दूर की है. ऐसे में सवाल उठता है कि दिनोंदिन बढ़ते बाज़ार और भूमंडलीकरण का कुल लाभ कहां जा रहा है? वह तो रिसकर पहुंचना चाहिए न नीचे तक. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है और ऐसा कभी नहीं होता. विश्व के 85 फ़ीसदी व्यापार पर कुल 500 कंपनियों का कब्ज़ा है और यह सब उनकी जेब में जाता है. देश आँखें मूंदकर उदारीकरण की सड़क पर दौड़ रहा है, जहाँ धीरे-धीरे वह आर्थिक साम्राज्यीकरण की चपेट में ज़बरन पड़ता जा रहा है. अब खुदरा बाज़ार भी खुल रहा है जिसमें लगे 12 करोड़ हाथ शीघ्र ही बेकार हो जाएंगे और उसके ठीक दूसरी ओर देश के प्रबंधन संस्थानों से निकले भावी सीईओ, अपनी तनख़्वाहों के पैकेज की नई ऊंचाइयों के मानदंड गढ़ रहे होंगे. इसके पीछे क्या कारण है कि 70 प्रतिशत छात्र हाईस्कूल से ऊपर की शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते? क्यों भारत तीसरी दुनिया की बीमारियों(पोलियो, कुष्ठ, टीबी वगैरह) का आज भी सबसे बड़ा अड्डा बना हुआ है? क्यों आधे समाज(महिलाओं) का औसत(943 से 925) दिन-ब-दिन नीचे जा रहा है? भारत में आज 26 प्रतिशत लोग ग़रीबी रेखा से नीचे हैं. क़रीब 62 प्रतिशत लोगों को पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता है. 14 अगस्त की मध्यरात्रि को जब पंडित नेहरू 'नियति के साथ संधि' कर रहे थे तब लगा कि सच में पूरब में उजाला हो गया है और उसकी रोशनी से सारी दुनिया प्रकाशित होगी लेकिन आज हम उस सच से बहुत दूर हैं. आज फिर सोचना होगा कि हम भविष्य में कैसा भारत बनाना चाहते हैं? इंडिया और भारत के फ़र्क को मिटाने के लिए हम क्या कुछ कर सकते हैं? 2020 में हमारा भारत कैसा होगा यह सोचने के साथ-साथ यह भी सोचना होगा कि ये भारत किनका होगा और किनका होना चाहिए. जहां दुनिया आर्थिक मंदी से उबरने के सपने देख रही है, भारत फिर से ऊंची विकास दर पर पहुंच गया है.

रवि शंकर तिवारी, सासाराम बिहार

रिपोर्टः विनोद चढ्डा

संपादनः आभा मोंढे