विरोध का सामना करते नवाज शरीफ
२७ अगस्त २०१४1999 में सेना ने नवाज शरीफ की सरकार का तख्तापलट कर दिया था, शरीफ को जेल हुई और फिर बाद में पाकिस्तान से निर्वासित किए गए. पिछले साल आम चुनाव में शरीफ ने जबरदस्त वापसी की, भारी जीत के साथ वे तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए. मतदाताओं को उम्मीद थी कि शरीफ पूर्व के प्रधानमंत्रियों के मुकाबले बेहतर साबित होंगे, कमजोर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बिजली कटौती की समस्या सुलझाएंगे और बुनियादी ढांचे को बेहतर करेंगे जिससे 18 करोड़ की आबादी वाले देश का भला होगा.
आलोचकों का कहना है कि उनकी सुधारों को लेकर धीमी गति, स्पष्ट अलगाव और सेना के साथ कमजोर रिश्ते ने उनकी चुनौतियों को और बढ़ा दिया. साथ ही सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को प्रोत्साहन मिला है. निर्दलीय सांसद मोहसिन लेघारी कहते हैं, "यह अहंकार और खराब शासन का एक लक्षण है. जब संसद में मुद्दों की चर्चा नहीं होगी तो वह सड़कों पर उछलेंगे ही."
विरोध भुनाने की कोशिश
इस्लामाबाद के रेड जोन इलाके में हजारों विरोधी प्रदर्शनकारी लगभग एक हफ्ते से डेरा जमाए हुए हैं. आसपास तैनात सुरक्षा कर्मियों ने अब तक भीड़ को तितर बितर करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है. प्रदर्शन इसी जोश से जारी रहेंगे या हिंसक होंगे, यह सेना के हाथ में है. अगर सेना ने प्रदर्शनों को खत्म करने के कदम उठाए तो हो सकता है कि शरीफ को इससे नुकसान हो और पाकिस्तान में लोकतंत्र को एक बार फिर सेना के हाथ मुंहकी खानी पड़े. लेकिन कई पाकिस्तानी नागरिक मानते हैं कि शरीफ इस संकट के लिए खुद जिम्मेदार हैं.
सांसद मोहसिन लेघारी कहते हैं कि अगर शरीफ सुधारों को तेजी से लाएं तो शायद उनके खिलाफ शिकायत कम होंगी, "अगर आप लोकप्रिय हैं तो शायद सेना भी आपके हक में बोलने लगेगी." शरीफ ने सैन्य प्रमुख रहील शरीफ से बात की है. हो सकता है कि इससे विरोधी प्रदर्शनों को थामने के लिए कोई रास्ता निकले.
आम पाकिस्तानियों ने नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के बाद कोई बदलाव नहीं देखा है.
'नाराजगी'
वार्षिक बजट के अलावा कोई और बिल नवाज शरीफ के कार्यकाल के पहले साल में पास नहीं हो पाया है. शरीफ के प्रधानमंत्री बनने के 14 महीने बाद भी कई अहम पद खाली हैं. अभी भी विदेश मंत्रालय का जिम्मा किसी को नहीं दिया गया है. रक्षा, जल और ऊर्जा मंत्रालय का जिम्मा एक ही मंत्री के पास है. यही हाल सूचना और कानून मंत्रालय का है.
सरकार कुछ कामयाबी का ढोल जरूर बजा सकती है, जैसे स्थिर मुद्रा, विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना और महंगाई दर में कटौती. लेकिन इन सब ने ऐसे समय में शरीफ के लिए ज्यादा वाहवाही नहीं बटोरी जब विरोधी दल फूड सब्सिडी, मुफ्त आवास और भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई का वादा कर रहे हैं. राष्ट्रीय दैनिक एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपनी कमेंट्री में लिखा, "आम आदमी के स्तर पर बढ़ती नाराजगी को मापने में सरकार की विफलता ने ही इमरान खान और ताहिरुल कादिरी को विमुख आबादी को इकट्ठा करने में समर्थ बनाया."
एए/एमजे (एएफपी)