विरासत बना प्रेमचंद का गांव
३१ जुलाई २०१४वाराणसी से लगे इस गांव को संरक्षित करने की कोशिशें काफी दिन से की जा रही थीं. मुंशीजी ने अपने पैतृक घर में करीब 40 वर्षों से भी अधिक साहित्य साधना की. उसे संग्रहालय बनाने की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. गांव के पोखर, तालाब और कुएं को भी संरक्षित किया जाएगा. प्रेमचंद के इस घर के सामने ही प्रेमचंद शोध संस्थान, अध्ययन केंद्र और प्रेमचंद सभागार का निर्माण लगभग पूरा होने को है.
वाराणसी शहर से लमही जाने के लिए पांडेयपुर चौराहे से बाएं आजमगढ़ जा रही सड़क पर मुड़ने से पहले ही प्रेमचंद के कथा पात्रों से परिचय होने लगता है. इस चौराहे पर उनके कथा पात्रों का सचित्र विवरण नजर आता है. आजमगढ़ रोड पर लमही के लिए बाएं अंदर जाने के लिए भव्य द्वार है. इस के दोनों तरफ भी प्रेमचंद के कथा पात्र काफी प्रमुखता से अपनी मौजूदगी दर्ज करते हैं. 'दो बैलों की कथा' के पात्र नजर आते हैं और उनके बीच शिला पट पर प्रेमचंद के बात दिखती है, "जब तक अंतःकरण दिव्य और उज्ज्वल न हो वह प्रकाश का प्रतिबिंब दूसरों पर नहीं डाल सकता". सभी की निगाहें सहसा लमही में प्रवेश करने से पहले इन पर पड़ती है और पहली बार जाने वाला इनको पढ़ता जरूर है.
द्वार की परंपरा
उत्तर प्रदेश में किसी भी गांव में प्रवेश के लिए भव्य द्वार की परंपरा नहीं है. लमही के अलावा शायद ही कोई गांव हो जिसमें दाखिल होने के लिए इतना अच्छा द्वार बना हो. इससे स्पष्ट होता है कि उनकी साहित्य साधना को उचित सम्मान अवश्य मिला है. 'लमही' नाम की साहित्य पत्रिका के सम्पादक विजय राय मानते हैं, "प्रेमचंद को वह सब कुछ मिला जो किसी भी लेखक कवि का सपना होता है." लेकिन वह यह भी कहते हैं कि ऐसे विरले कथाकार शताब्दियों में पैदा होते हैं. वे प्रेमचंद के भाई महताब राय के नाती हैं.
उस भव्य द्वार से लमही गांव तक बेहतरीन सड़क और गांव में सारी सुविधाएं भी शायद प्रेमचंद की बदौलत ही सरकारों ने मुहैया कराई हैं. प्रेमचंद मेमोरियल ट्रस्ट लमही के अध्यक्ष सुरेश दुबे बताते हैं कि उन्होंने पिछले वर्ष हेरिटेज विलेज के लिए प्रस्ताव भेजा था जिसे स्वीकार कर लिया गया है, "हेरिटेज विलेज बनने के बाद लमही में आने वाले वह काल और खंड महसूस कर सकेंगे जिसमें प्रेमचंद लिखा करते थे." उन्होंने बताया, "जिस कक्ष में मुंशीजी लिखते थे, जिस मेज पर वे लिखते थे उन चीजों को भी संरक्षित किया गया है." शोधार्थियों और युवा साहित्यकारों के लिए यह सब कुछ बहुत मूल्यवान और प्रेरणादायक है.
लेखक का सम्मान
विजय राय बताते हैं कि लमही को प्रेमचंद के हवाले से पहले वही लोग जानते थे जो प्रेमचंद पर शोध आदि करते थे, लेकिन अब साहित्य जगत का लगभग हर व्यक्ति लमही शब्द से परिचित हो चुका है. उनकी पत्रिका 'लमही' के प्रकाशन के अलावा राय पिछले पांच वर्षों से राष्ट्रीय स्तर के 'लमही सम्मान' का भी आयोजन कर रहे हैं. पहला लमही सम्मान प्रख्यात कथाकार शिवमूर्ति को दिया गया था.
उर्दू शायर आमिर रियाज कहते हैं कि यह पहला उदाहरण है कि किसी लेखक का गांव भी इतना मशहूर हुआ वर्ना कौन जानता है मिर्जा गालिब के गांव का नाम. वह कहते हैं कि किसी लेखक की जन्मभूमि को सम्मानित करना दरअसल लेखक को ही सम्मानित करना है. लमही को हेरिटेज विलेज बनाने को वह बेहद शानदार शुरुआत बताते हैं. इससे लेखक बिरादरी की गरिमा में चार चांद लगेंगे.
रिपोर्टः सुहैल वहीद, लखनऊ
संपादनः अनवर जे अशरफ