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विदेशी लड़ाकों की कहानी

२६ फ़रवरी २०१५

एक ओर पिछले सालों में आईएस के लिए लड़ने पश्चिमी देशों से भी हजारों विदेशी लड़ाके पहुंचे, वहीं दूसरी ओर बोको हराम के साथ ऐसा नहीं हुआ. इसके पीछे विशेषज्ञ कई कारण देखते हैं.

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Islamischer Staat IS Video Social Media Twitter
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo

असोसिएट प्रेस की एक ताजा रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया भर के 20,000 से भी ज्यादा विदेशी लड़ाके "इस्लामिक स्टेट" कहे जाने वाले मध्यपूर्व के आतंकी समूह के साथ जुड़े. इनमें से करीब 3,400 लड़ाकों का संबंध पश्चिमी देशों से बताया जा रहा है. इसके विपरीत, आईएस से करीब एक दशक पहले ही अस्तित्व में आ चुके नाइजीरियाई आतंकी समूह बोको हराम ने उनके मुकाबले शायद ही किसी विदेशी लड़ाके को अपनी साथ जंग के लिए आकर्षित किया है.

सोशल मीडिया से बनाई पहुंच

कई विशेषज्ञों का मानना है कि आईएस ने रिक्रूटमेंट में जो सफलता हासिल की है उसके पीछे सोशल मीडिया का बड़ा हाथ है. इस आतंकी संगठन ने यूट्यूब, ट्विटर और वाइन जैसे तमाम प्लेटफार्मों पर अपनी एक व्यापक और निरंतर मौजूदगी स्थापित की है और इसी कारण वे अनगिनत संभावित रंगरूटों तक पहुंच पाए हैं.

बोको हराम का मामला थोड़ा अलग रहा. हाल के दिनों में अपनी ताकत का प्रचार करने की कोशिशों को छोड़ दें तो ज्यादातर वे ऑनलाइन मीडिया प्लेटफार्मों से दूर ही रहे. इसके बजाए उन्होंने ज्यादा परंपरागत तरीका अपनाते हुए कई प्रोपेगैंडा वीडियो बनाकर मीडिया के माध्यमों से बंटवाया.

Abubakar Shekau
बोको हराम का नेता अबूबकर शेकाऊतस्वीर: picture alliance/AP Photo

नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर मैक्स एब्राहम्स बताते हैं, "हमें आईएस से सोशल मीडिया के अभूतपूर्व इस्तेमाल की उम्मीद है क्योंकि वे आज के समय में काम कर रहे हैं जब सोशल मीडिया पहले से काफी बेहतर हो चुका है." वे आगे कहते हैं, "आप देखेंगे कि बोको हराम में सोशल मीडिया का कम असर होने के कारण ही उनके पास आईएस के मुकाबले विदेशी लड़ाकों का बेहद छोटा हिस्सा है."

यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स-लॉवेल में सेक्योरिटी स्टडीज की प्रोफेसर मिया ब्लूम बताती हैं, "सच तो ये है कि आईएस बना ही इस आधार पर है कि वह विदेशी लड़ाकों को आकर्षित करे और इसके लिए उसने एक पूरा का पूरा सोशल मीडिया तंत्र स्थापित किया हुआ है. वहीं बुनियादी तौर पर बोको हराम काफी हद तक एक स्थानीय अभियान जैसा है, जिसके मुद्दे भी काफी स्थानीय हैं (अल शबाब जैसे समूहों की तरह)."

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ ग्लोबल अफेयर्स की मेरी बेथ आल्टियर बताती हैं, "बोको हराम का लक्ष्य उत्तरी नाइजीरिया में इस्लामिक स्टेट की स्थापना करना है. हालांकि उसने नाइजर, चाड, कैमरून और केन्या जैसे देशों में भी कई वारदातों को अंजाम दिया है. दूसरी ओर आईएस उन जगहों पर अपना दावा ठोक रहा है जो उसके हिसाब से ऐतिहासिक इस्लामिक साम्राज्य का हिस्सा थे. इस ऐतिहासिक पहलू के चलते भी उन्हें विदेशों में रहने वाले तमाम मुसलमानों के सामने अपने अभियान को सही ठहराने का आधार मिल रहा है." आल्टियर ने ईमेल में भेजे अपने संदेश में आगे लिखा है, "इसके अलावा बोको हराम के काफी स्थानीय होने के कारण उसके ज्यादातर लोग स्थानीय भाषा हैसा बोलते हैं. यह भाषा इस क्षेत्र के बाहर के मुस्लिम समाज में बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं है. दूसरी ओर, आईएस के सदस्य अंग्रेजी और अरबी बोलते हैं, वे भाषाएं जो पश्चिम में रहने वाले ज्यादातर मुसलमान समझते हैं."

नीतिनिर्माताओं के लिए आईएस जैसे समूहों में विदेशी लड़ाकों की बाढ़ चिंता का एक बड़ा कारण है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के जाने माने विशेषज्ञ प्रोफेसर स्टीफन वॉल्ट बताते हैं, "तुलनात्मक रूप से देखें तो आईएस के साथ आने वाले विदेशी लड़ाकों की संख्या काफी कम है. इससे आईएस की क्रूर हरकतों को किसी भी तरह कम नहीं आंका जा सकता, लेकिन इससे यह समझने में मदद जरूर मिलती है कि क्यों कुछ लोग ऐसे संगठनों के साथ आने का कदम उठाते हैं. इनसे सहानुभूति रखने वाले लोग पूरे विश्व की मुस्लिम आबादी का एक बहुत ही छोटा हिस्सा हैं. ऐसे भी कई संकेत मिले हैं जब आईएस के असली कारनामों के बारे में जानने के बाद कई रंगरूटों का मोहभंग हुआ."

श्टेफान कालाब्रिया/आरआर