विज्ञान से क्यों भागना
२ अक्टूबर २०१३किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विज्ञान और तकनीक बहुत जरूरी है और इसलिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा प्रतिभाशाली दिमाग कम उम्र से ही विज्ञान के क्षेत्र में काम करने के लिए तैयार हों. इसके लिए बच्चों को यह बताना होगा कि विज्ञान बहुत मजेदार और बड़े फायदे दिलाने वाला होता है. इस साल यूरोपियन यूनियन कॉन्टेस्ट फॉर यंग साइंटिस्ट्स (ईयूसीवाईएस) का इनाम जीतने वाले यॉर्कशायर के फ्रेड टर्नर कहते हैं, "यह सचमुच बेहद जरूरी है कि जितना ज्यादा संभव हो सके युवा विज्ञान को लेकर रोमांचित हों. वे अगली पीढ़ी के वैज्ञानिक हैं. अगर आप उनमें इसके लिए जोश नहीं भरेंगे तो यूरोपीय संघ बाकी दुनिया से पीछे रह जाएगा."
घर में बना डीएनए फोटोकॉपियर
फ्रेड के मन में विज्ञान को लेकर बहुत रोमांच है. वह इसमें बहुत अच्छे भी हैं. फ्रेड ईयूसीवाईएस में ब्रिटेन की तरफ से शामिल हुए. वह अपने साथ पॉलीमरेज चेन रिएक्शन यानी पीसीआर मशीन लेकर आए हैं. यह ऐसा यंत्र है जिसके जरिए वैज्ञानिक डीएनए के खास हिस्सों की नकल बना सकते हैं. फ्रेड इस साल ऑक्सफोर्ड जा रहे हैं. वह लैब में रहने वाली मशीन नहीं खरीद सकते थे इसलिए उन्होंने घर में मौजूद कुछ धातुओं, माइक्रोप्रोसेसर और टचपैड के जरिए यह मशीन बना डाली. फ्रेड ने बताया, "मैं अपने घर के जेनेटिक्स लैब के लिए पीसीआर मशीन चाहता था जिससे कि मैं अलग अलग जीन्स का अध्ययन कर सकूं. मैं 3000 पाउंड की मशीन नहीं खरीद सकता था इसलिए मैंने उसे घर पर ही बनाने का फैसला किया. मेरी मशीन 250 पाउंड में बन गई."
प्रयोग को प्रोत्साहन
इस मुकाबले का मकसद इस तरह के प्रयोगों को ही प्रोत्साहन और बढ़ावा देना है. हर साल यूरोपीय संघ के 27 और 10 दूसरे मेहमान देश अपने प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिकों को पुरस्कारों की दौड़ में शामिल होने के लिए भेजते हैं. इस साल चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में मुकाबले के लिए 126 वैज्ञानिक आए. इन वैज्ञानिकों में कैंसर के इलाज पर रिसर्च कर रही तुर्की के सेकेंडरी स्कूल के छात्रों की एक जोड़ी, हंगरी का शौकिया पोकर खिलाड़ी जिसने पोकर खेलने वाला रोबोट बनाया है और लिथुएनिया का एक युवा वैज्ञानिक भी है जो जीन संवर्धित लिलि बनाने की कोशिश में हैं. ये लिलि बाल्टिक के वातावरण के लिए उपयुक्त होंगी. ईयूसीवाईएस 2013 की मैनेजर कैटरीना सोबोत्कोवा कहती हैं, "असल मकसद युवा, अच्छे, प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों को उनके काल्पनिक प्रोजेक्ट को पेश करने के लिए यहां लाना है. हम यह भी चाहते हैं कि लोग देखें कि ये इस उम्र में क्या कर सकते हैं, जो सचमुच हैरान करने वाला है. इसके साथ ही उनके साथ घुल मिल कर अंतरराष्ट्रीय दोस्ती को बढ़ावा और उनके प्रयोगों में साझीदार बनना है."
मुकाबले वाली जगह पर सफेद छोटे छोटे बूथ के पीछे से छात्र अपने विचार और प्रयोगों के बारे में जूरी के सदस्यों को बता रहे हैं. वहां से कुछ ही दूरी पर एक सार्वजनिक जगह है जहां चेक सेकेंडरी स्कूल के छात्र दूसरे लोगों से मिल रहे हैं. कई तकनीकी स्कूलों ने अपने स्टॉल लगाए हैं और तरह तरह के प्रयोग दिखा रहे हैं. कोई रसायनों की आवाज बदलने वाले गुणों को दिखा रहा है तो कहीं ऐसी आईसक्रीम बन रही है जो सूखी हुई बर्फ से बनी दिखती है.
भौतिकी का डर
चेक टेक्निकल यूनिवर्सिटी की इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग फैकल्टी से जुड़े मार्टिन सामेक बताते हैं, "इस वक्त समस्या यह है कि तकनीकी विज्ञान में ज्यादा युवा छात्र नहीं आ रहे हैं. ज्यादातर युवा अर्थशास्त्र, कानून और मेडिसिन को लक्ष्य बना रहे हैं." उनके स्टॉल पर रोबोट हैं जो उनके छात्रों ने स्कूल में बनाए हैं और यहां खूब लोकप्रिय हो रहे हैं. सामेक का कहना है, "मुझे लगता है कि छात्रों में इसे लेकर एक डर जैसा है. गणित और भौतिकी का डर और दूसरे कठिन तकनीकी विज्ञान और पाठ्यक्रम का डर. तो इन छोटे रोबोटों का यही काम है कि छात्रों का उनके विषय से मेलजोल बढ़ाना और डर दूर करना."
विस्टाविस्टे ट्रेड पैलेस में जहां यह स्टॉल लगे हुए हैं वहां डर जैसी कोई चीज नहीं दिखती और यह जगह रचनात्मक ऊर्जा से भरी हुई लगती है. हालांकि आयोजकों को लगता है कि चीन और भारत की उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने वैज्ञानिक और तकनीकी मामलों में बड़ी छलांग लगाई है और यूरोपीय युवाओं को विज्ञान में करियर बनाने के लिए ज्यादा लुभा रहे हैं.
रिपोर्टः रॉब कैमरन/एनआर
संपादनः महेश झा