मेजबानी से कतराते हैं देश
१३ जून २०१४1992 में जब बार्सिलोना को मेजबानी का मौका मिला, तो जिस तरह की धूम धाम के साथ वहां वर्ल्ड कप का आयोजन किया गया, उसने फुटबॉल को ले कर लोगों का नजरिया बदल दिया. उसके बाद से विश्व कप पर खूब खर्च करने का चलन बन गया. बात अब केवल फुटबॉल के मैदान तक सीमित नहीं रह गयी थी, बल्कि आयोजन के बहाने शहरों को नया रूप देने का भी काम होने लगा. बड़े बड़े प्रोजेक्ट के कारण अंतरराष्ट्रीय निवेश होने लगा.
11.3 अरब डॉलर का खर्च
ब्राजील में चल रहे फीफा वर्ल्ड कप को अब तक का सबसे महंगा आयोजन बताया जा रहा है. रिपोर्टों के अनुसार इस साल 11.3 अरब डॉलर खर्च किए जा चुके हैं. जानकार मानते हैं कि ब्राजील के उदाहरण ने खर्च की सीमा और उसके खतरों, दोनों को ही दिखा दिया है. ऐसे में मुमकिन है कि आने वाले सालों में इस तरह के भव्य समारोह देखने को न मिले. हैम्बर्ग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वोल्फगांग मैनिंग का कहना है, "मुझे लगता है कि हम भव्य समाहरों के इतिहास में एक मोड़ पर खड़े हैं और इस मोड़ से आयोजन से जुड़ी मूलभूत सुविधाओं की हमारी महत्वकांक्षाएं कम होंगी."
मैनिंग ने 1988 के ओलंपिक खेलों में जर्मनी को नौकायन में स्वर्ण पदक दिलवाया था. वह बताते हैं कि खेलों में इस तरह के बड़े आयोजनों में अब इतनी राजनीति जुड़ चुकी है कि निजी कंपनियां भी इनमें निवेश करने से डरने लगी हैं और देश मेजबानी करने से. 2022 के शीतकालीन ओलंपिक खेलों का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि जर्मनी के म्यूनिख और स्विट्जरलैंड के सेंट मोरिट्स और दावोस दोनों ने ही मेजबानी की पेशकश वापस ले ली.
ब्राजील से सीख
वहीं फीफा के एक सूत्र का कहना है, "हमने ब्राजील से सीख ले ली है, अब हम जानते हैं कि अगली बार हमें क्या क्या नहीं करना है." अपना नाम न बताने की शर्त पर इस सूत्र ने कहा कि फीफा को इस बात पर जोर देना चाहिए था कि ब्राजील 12 शहरों में आयोजन न करे. इससे खर्च भी बड़ा है और आखिरी समय तक तैयारियां पूरी न होने से काफी परेशानी हुईं.
ब्राजील में भी लोगों में इसे ले कर गुस्सा है और वे प्रदर्शन कर रहे हैं. इस साल फुटबॉल विश्व कप के बाद 2016 में ब्राजील में ओलंपिक खेलों का आयोजन होना है. लेकिन इस तरह के आयोजनों को बदलना कोई आसान काम नहीं. जर्मनी और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों को छोड़ कर अधिकतर जगहों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैदान नहीं हैं और न ही अच्छी मूलभूत सुविधाएं हैं.
चुनौती यही है कि विकासशील देशों को बिना दबाव डाले कैसे इन आयोजनों से जोड़ा जाए. सुविधाओं के अभाव में इन देशों को बड़े आयोजनों के लिए भारी निवेश की जरूरत है. लेकिन ब्राजील का तजुर्बा बताता है कि केवल निवेश काफी नहीं. ऐसे में एक नए कॉन्सेप्ट की जरूरत है. फीफा का कहना है कि वह इस पर काम कर रहा है ताकि देशों को खेलों के दौरान उनकी आर्थिक और सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में समझाया जा सके. इसके लिए फुटबॉल संघ, निवेशकों और मेजबान देश का एक दूसरे पर भरोसा होना बेहद जरूरी है.
आईबी/एमजी (रॉयटर्स)