लेजर प्रिंटर से बनेगा विमान
कंप्यूटर पर डिजाइन किए गए और छापे गए कल पुर्जे तो पुरानी बात हो गई. अब बारी विमान उद्योग की. कारण एक ही इसी तरह से विमान के ऐसे हल्के ढांचे तैयार किए जा सकते हैं जो बहुत मजबूत भी हों.
नई उड़ान
विमान उद्योग में कई हिस्से अब 3डी प्रिंटर से बनाए जा रहे हैं. क्या जल्द ही पूरा विमान छापखाने में बनने लगेगा. इसी से जुड़े थे आखेन में हुई लेजर कांग्रेस के कई इनोवेशन.
नया अनुभव
आने वाले दिनों में यात्री विमान से और खूबसूरत नजारों का मजा ले सकेंगे. 3डी लेजर प्रिंटर से निकला एयरबस का ये नमूना दिखाता है कि आने वाले दिनों में विमान का ढांचा कैसा दिख सकता है.
हल्का है तो अच्छा है
लेजर प्रिंटर से निकले हल्के हिस्से ऐसे दिखेंगे. महीन लेकिन बहुत स्थिर ढांचे का वजन कम होता है. ये हिस्सा सिलेक्टिव लेजर मेल्टिंग से बनी है. पावडर में इसे परत दर परत तैयार किया गया है.
कम घर्षण
हेलिकॉप्टर की टरबाइन की ये लाइनिंग भी लेजर प्रिंटर में बनाई गई है. इससे हवा नियंत्रित की जाती है. कंघे जैसी संरचना के कारण घर्षण कम होता है क्योंकि घर्षण पैदा करने के लिए सतह ही कम होती है.
प्रिंटर का जादू
ये हिस्से भी 3डी लेजर प्रिंटर से निकले हैं. अभी ऊपरी सतह थोड़ी खुरदुरी है. इसका कारण इस्तेमाल किया गया मेटल पावडर है. अंदर हालांकि मेटल पूरी तरह फ्लैट और बढ़िया है.
बड़ी टरबाइन ब्लेड
बड़ी टरबाइन के हिस्से भी प्रिंट हो सकते हैं. यात्री विमान की टरबाइन ब्लेड को बहुत ज्यादा तापमान झेलना होता है. इसके लिए 3डी प्रिंटर एक दम आदर्श हैं क्योंकि वो हर संभव मिश्रधातु के साथ काम कर सकते हैं.
हिला मिला कर
दो बर्तनों में अलग अलग धातु के पावडर हैं. ये लेजर वेल्डिंग के दौरान काम आते हैं. इंजीनियर इनसे मिश्रधातु का अनुपात बदल सकते हैं. इस तरीके से बने उत्पाद में कई गुण और आ जाते हैं.
आसान रिपेयर
टरबाइन ब्लेड के पुराने होने या घिस जाने पर लेजर से इसे ठीक भी किया जा सकता है. छोटे डब्बे लेजर किरणों के फोकस में धातु छिड़कते हैं और छेद देखते देखते बंद हो जाते हैं.
इनोवेशन पुरस्कार
2014 में लेजर टेकनोलॉजी में इनोवेशन पुरस्कार फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्टम्स, फ्राइबुर्ग के राल्फ प्रॉय को दिया गया है. उन्होंने ऐसा तरीका बनाया जिससे सौर सेल का पिछला हिस्सा सिलिकन वेफर से अच्छे से जुड़ जाता है.
और ज्यादा बिजली
इस शोध के कारण प्रॉय एक वर्ग सेंटीमीटर के हिस्से में इस तरह के चार सौ कॉन्टैक्ट प्वाइंट बना सके. फायदा ये हुआ कि इन सेलों की बिजली बनाने की क्षमता सामान्य इलेक्ट्रोड की तुलना में पांच फीसदी बढ़ गई.