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लड़कियों की शिक्षा की हालत चिंताजनक

विश्वरत्न श्रीवास्तव७ जुलाई २०१६

जिस रफ्तार से भारत में आर्थिक प्रगति हो रही है, उस अनुपात में शि‍क्षा के मामले में देश अपेक्षि‍त तरक्की नहीं कर पाया है. देश में 61 लाख ऐसे बच्चे हैं जो शिक्षा से वंचित हैं. खासतौर पर बालिका शिक्षा की स्थिति चिंताजनक है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे 2014 की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 17 साल की लगभग 16 प्रतिशत लड़कियां स्कूल बीच में ही छोड़ देती हैं. आर्थिक विकास के अपने मॉडल के लिए सुर्खियाँ बटोरने वाला गुजरात इस मामले में देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है. इस रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में 15 से 17 साल की 26.6 प्रतिशत लड़कियां किसी न किसी कारण से स्कूल छोड़ देती हैं. इसका मतलब यह है कि राज्य में 26.6 प्रतिशत लड़कियां 9वीं और 10वीं कक्षा तक भी नहीं पहुंच पाती हैं. इस लिहाज से गुजरात, सर्वे में शामिल 21 राज्यों में से 20 वें स्थान पर है. स्कूल जाने वाली लड़कियों का राष्ट्रीय औसत गुजरात की तुलना में करीब 10 प्रतिशत ज्यादा है.

छतीसगढ़ में 15 से 17 साल की 90.1 प्रतिशत लड़कियां स्कूल जा रही हैं, जबकि असम में यह आकड़ा 84.8 प्रतिशत है. बिहार भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा पीछे नहीं है यहां यह आंकडा 83.3 प्रतिशत है. झारखंड में 84.1 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 79.2 प्रतिशत, यूपी में 79.4 प्रतिशत और उड़ीसा में 75.3 प्रतिशत लड़कियां हाई स्कूल के पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं. अगर 10 से 14 साल की लड़कियों की शिक्षा की बात करें तो इसमें गुजरात सबसे निचले पांच राज्यों में आता है.

61 लाख बच्चे शि‍क्षा से दूर

इस समय देश के 61 लाख बच्चे शि‍क्षा की पहुंच से दूर है. इस मामले में सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की है जहां 16 लाख बच्चों तक शिक्षा की रोशनी नहीं पहुंचायी जा सकी है. यह आंकड़े यूनिसेफ की वार्षिक रिपोर्ट द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रेन ने जारी किए हैं. रिपोर्ट के अनुसार स्कूल जाने वाले बच्चों में भी 59 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं. 2013 में मानव विकास मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष पूरे देश में 5वीं तक आते-आते करीब 23 लाख छात्र-छात्राएं स्कूल छोड़ देते हैं. लगभग एक तिहाई सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की सुविधा नहीं है जिस कारण से लड़कियां बड़ी संख्या में स्कूल छोड़ रही हैं.

डॉ. सुनंदा इनामदार कहती हैं कि भारत में लडकियों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर देना ज्यादा जरूरी है क्योंकि 22 लाख से भी ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. ऐसे में उनका स्कूल छूटना स्वाभाविक है. उनके अनुसार, शिक्षा सहित लड़कियों के अन्य मुद्दों पर भी समाज को जागरूक करना होगा. खासतौर पर ग्रामीण समाज को. यूनिसेफ की गुडविल एंबेसडर एवं फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का कहना है कि जब तक लोग लड़के और लड़की में भेदभाव खत्म नहीं करेंगे तब तक इस स्थिति में बदलाव नहीं आएगा.

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तस्वीर: DW/M. Krishnan

सर्व शि‍क्षा अभियान से फायदा

शिक्षा को लेकर सरकार के प्रयासों में भले कमी रही हो लेकिन सरकारी अभियानों से शिक्षा की स्थिति में सुधार आया है. खासतौर पर सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है. शिक्षा के अधिकार का कानून लागू करने के बाद प्राथमिक शिक्षा के लिए होने वाले नामांकनों में वृद्धि दर्ज की गयी है. इसके अलावा स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या में भी लगातार गिरावट आ रही है. वर्ष 2009 में 6 से 13 वर्ष की उम्र के स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या लगभग 80 लाख थी जबकि पांच साल बाद यानी 2014 में यह संख्या घट कर 60 लाख रह गई है. वैसे 2014 में 3 से 6 वर्ष की उम्र के बीच के 7.4 करोड़ बच्चों में से लगभग 2 करोड़ बच्चे किसी तरह की प्री-स्कूल शिक्षा नहीं ग्रहण कर रहे थे.

सरकारी स्कूलों में सुविधाओं की कमी के चलते लोग प्राइवेट स्कूलों की तरफ रुख करने लगे हैं. शिक्षकों की कमी झेलते हजारों स्कूलों के पास शौचालय तो क्या क्लास रूम तक नहीं है. एक अनुमान के मुताबिक देश में अभी भी करीब 1,800 स्कूल किसी पेड़ के नीचे या टेंटों में लग रहे हैं. देश के कुछ राज्यों में ही सरकारी स्कूलों की स्थिति ठीक ठाक है. अधिकांश राज्यों में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता रसातल में जा रही है. खासतौर पर आदिवासी अंचलों में गरीब बच्चे खाना और छात्रवृत्ति के लिए स्कूलों में दाखिला ले लेते हैं. यानी छात्रों को पढ़ने में और स्कूल प्रशासन को उन्हें पढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है. ऐसे ही छात्र भोजन और रोजगार की दूसरी व्यवस्था होते ही स्कूल को अलविदा कह देते हैं.